Tuesday, 6 December 2016

बाँझ

सूरत सीरत का अदभुत मेल

थी हृदय की अति भोली

उत्साह उमंग संग पिया के

घर आँगन उतरी थी डोली

करते सभी रिश्तेदार प्रशंसा

बोलते स्नेह पगी मीठी बोली

सास ससुर की ममता ने

नित नवीन मिठास घोली

गूंजती रहती सदा रुनझुन सी

नन्द व देवर की हंसी ठिठोली

मंत्रमुग्ध हुई पिया मिलन से

तन मन की गाँठे सब खोलीं

हर रात लगती थी दीवाली

हर दिन लगता जैसे हो होली

दिवस माह बर्ष व्यतीत हुए

भर न सकी उसकी झोली

भाव परिवर्तित हो गए जग के

बातें छलनी कर मारे गोली

आंसुओं से तर रहने लगे

हरदम उसके दामन व चोली

स्नेह ममता के पुष्प झड़े

शेष रही तानों की डाली

कमी यदि है किसी जीवन में

पीड़ा समझो, न दो बाँझ गाली

मीनाक्षी मेहँदी

टिप्पणी: पीड़ित उदास नीर भरे नैना

भोर नहीं जीवन में बस अनंत साँझ

दुनिया कौंचती कह कर बाँझ

2 comments: