आज सलोनी ने काँच की खनखनाती चूड़ियाँ उतार दीं और सोने की चूड़ियाँ ही हाथ में रहने दीं जिससे विनीत की नींद ख़राब ना हो।तभी शयनकक्ष के द्वार पर दस्तक हुयी,सासु माँ कैप्सूल लिए खड़ी थी कि ये विनीत को रोज खिला दिया करना।तभी वो नाराज होने लगीं काँच की चूड़ियाँ उतार दीं? सिर्फ सोने की चूड़ियाँ तो विधवा महिला पहनती हैं।माँ की आवाज सुन विनीत ने सलोनी को आग्नेय नेत्रों से घूरा और आँगन में जाकर सो गया।सलोनी असमंजस के संग हाथ में थामे हुए लाल लाल कैप्सूल देखते हुये सोच रही थी कि मांजी ने बद्दुआ उसे दी या अपने बेटे को।
टिप्पणी: बहु पराई होती है किंतु तुम्हारे घर से वो तन,मन व धन से समर्पित हो जुड़ती है,उसे आत्मीय समझ कर व्यवहार करके तो देखो ,अपनेपन की महक बिखरा कर तो देखो,एक नया रंग जीवन में बिखर जायेगा।
No comments:
Post a Comment