खामोशियाँ
सोचती थी अक्सर,
मिलोगे तो ये पूछूँगी वो जानूँगी
तुम एक बार मिलो तो सही,
सब बयाँ करवा लूँगी
मिले तुम एक बार ही नहीं,
कई कई बार निरंतर
पर कह नहीं पाई,
जो घुमड़ता मन के अंदर
तुम्हें देख तीव्र हो जाती,
धक धक करती धड़कन
निगाहें झुक जाती,
थरथराते होंठ करते कम्पन
जानना चाहती क्या है राज,
पहली बार बजा तुम्हे देख दिल का साज़
सच है मुख बंद होने पर,
आँखे बात करती हैं
सही है भाव भंगिमा भी,
वार्तालाप करती है
मुझे नहीं दिख रहा था ,
ये सब कुछ
पर जो जानना चाहा,
जान लिया सब कुछ
अनायास तुम चुप्पी साध गए,
मुझे मर्यादा स्मरण करा गये
क्या है मेरा दायरा बता दिया,
मित्रता से किनारा कर लिया
जो तुम्हारे क़िस्सों में सुन न पाई,
आज यकायक बात वो समझ में आई
तुम्हारी ख़ामोशी ने सब बयाँ कर दिया,
बरसों की जिज्ञासा का समाधान कर दिया
खामोशियों का अंदाज़ कितना अच्छा होता है,
ध्यान से सुनो बिन बोले सब बयाँ कर देता है।
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: कभी कभी खामोशियाँ हमें वो सब बता देती हैं जो हम शब्दों में नहीं सुन पाते।ख़ामोशी सुनना एक कला है,जिससे प्रत्येक राज पता चल जाता है।
खामोशियां मान लिया बहुत बेहतर हैं,
ReplyDeleteमिल के चुप रहें, ये भी अच्छा तो नहीं।