Friday, 16 December 2016

(निर्भया- तुम्हारी याद में)



(निर्भया- तुम्हारी याद में)

लोग कहते हैं नहीं बदला तुम्हारे जाने से कुछ
वो आक्रोश वो पीड़ा ठहर गया है सब कुछ
कितनी जिंदगियाँ अब भी हो रहीं हैं बेमानी
तुमको याद करते हैं जैसे कोई  बिसरी कहानी
वक़्त के साथ हर जख़्म भर नहीं पाते हैं
तुम्हारे साथ बीते मंजर अब भी दहलाते हैं
तकती रहती हूँ मैं बार बार सड़क का मोड़
चैन आता जब दिखती बेटी आती घर की ओर
बिटिया के ज़माने संग बढ़ते कदम ना रोक पाऊँगी 
पर अपने उद्देलित मन को भी ना समझा पाऊँगी
आशंका व डर पावँ पसार चुके हैं मेरे भीतर
दिखता नहीं ये बदलाव आया हर माँ के अंदर
आज सुना पा रहा है वो किशोर रिहाई
निर्भया तुम्हारी याद में पुनः आँख भर आई
क्या वास्तव में वो सुधरा हुआ जीवन बिताएगा
अपने कुकृत्य का लेशमात्र भी प्रायश्चित कर पायेगा
जिसने किया था कुछ काल पूर्व मानवता को निर्वस्त्र
अपेक्षा करते पहनायेगा वो अब सिलकर वस्त्र
भयंकर अपराधी से करते सुधरने की आशा
सहिष्णु देश की इससे बेहतर क्या होगी परिभाषा।
                मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी :  आज चार साल हो गये ,क्या बीते समय में समाज की सोच में कोई बदलाव आया है,क्या ऐसे हादसे होने बंद हो गये हैं? 

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