Saturday, 24 December 2016

नाम का प्रभाव.....सोच अपनी अपनी...


शेक्सपियर की उपरोक्त पंक्तियाँ बहुत चर्चित हैं किंतु भारतीय चिंतन कुछ अलग ही धारणा प्रस्तुत करता है - कहा  जाता है - यथा नाम तथा गुण।
तभी जीवन के महत्वपूर्ण संस्कारों में नामकरण संस्कार एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।हमारे समाज में बालक का नाम अधिकतर महापुरुषों और भगवान के नाम पर रखने का रिवाज इसीलिये है कि हमारी मान्यता है व्यक्ति पर नाम का प्रभाव पड़ता है। यद्धपि आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति का जो नाम हो उसके ऊपर  उसका वही प्रभाव पड़े,कई भगवान के नाम वाले लोग अपराधी प्रवृति के पाये जाते हैं।भिखारी नाम के लोग सेठ भी है तथा करोड़ीमल नामक निर्धन भी होते हैं।काका हाथरसी की प्रसिद्ध कविता भी है" नाम - रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ?
नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और
शक्ल - अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने
बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने
कहँ ‘ काका ' कवि , दयाराम जी मारें मच्छर
विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर'
आजकल एक सेलिब्रिटी कपल के द्वारा अपने बच्चे के नामकरण पर चर्चाएं सुर्ख़ियों में हैं।कोई अपने बच्चे का नाम कुछ भी रखे पर मशहूर लोगों की जिंदगी से आम व्यक्ति स्वयं को जुड़ा पाता है अतः उनके निजी निर्णयों पर टीका टिप्पणी करता है।अपने बच्चे का नाम रखने हेतु स्वतन्त्रता है किंतु नाम ऐसा होना चाहिए जिसे सुनते ही अच्छी छवि आँखों के समक्ष उपस्थित हो।सम्भवतः इसी कारण हमारे देश में रावण,कैकयी,मन्थरा,कंस, सुर्योधन व सुशासन इत्यादि नाम नहीं रखे जाते हैं।और तो और प्राण साहब ने चलचित्र में खलनायक के जो विभिन्न रूप साकार किये उनका जनमानस पर कुछ ऐसा रूप अंकित हुआ कि कई दशक से प्राण नाम किसी ने नहीं रखा जबकि बाद में प्राण साहब ने चरित्र अभिनेता के रूप में भी कई फिल्में कीं।
    मैंने भी अपनी रिश्तेदारी में कई बच्चों के नाम रखे हैं ,किसी नवजात को देखते ही मन में जो भाव सर्वप्रथम उत्पन्न होता है वही मेरे द्वारा किये नामकरण का आधार बन जाता है और सुखद लगता है जब परिजन मेरा सुझाया नाम ख़ुशी ख़ुशी अपना लेते हैं, कई बार उलझन होने पर हमने साबुन घी आदि के नाम सोचते हुए रिया,गगन,रुची नाम रखे तो कभी गणित की किताब में डुबकी लगा कर परिधी,व्यास आदि नाम खोज लिये।किसी से स्नेह जागा तो स्नेहा व अतिरेक ख़ुशी होने पर हर्षी।एक भाई का नाम शक्ति रखा तो भतीजे का आराध्य।मेरा नाम भी शुरू में कुछ और रखा गया था किंतु जब मेरे पिता को ज्ञात हुआ कि ये विदेशी नाम है तो उन्होंने बदल कर स्वदेशी नाम रख दिया।आज भी अपने नाम के संग पिता की भावनाएं स्वयं से जुड़ी पाती हूँ।
 नाम कुछ भी हो किसी भी भावना से रखा जाये किन्तु इतना तो ध्यान रखना ही चाहिये कि जनमानस को क्षति पहुँचाने वाली छवि साकार ना हो तथा नाम सुनते ही मन में सकारात्मक भाव उत्पन्न हों।यही कारण है कि प्रभु भक्त होने पर भी विभीषण नाम कभी सुनने में नहीं आता।बाकि जिसकी जैसी इच्छा आख़िरकार हम लोकतान्त्रिक देश के वासी हैं........

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