एकतरफ़ा पत्र
एकतरफ़ा पत्र भी एक पूरा दस्तावेज होते हैं।
ऐसे ही पत्रों का पुलंदा मिल गया यकायक,वो पत्र जो लिखे हैं एक पति ने अपनी परिणीता को।उनके नवविवाहित जीवन से शुरू होते हुए उन पत्रों का उनके जीवन की बगिया में खिलने वाले फूलों के संग संग अंदाजे बयान भी बदलता जाता है।एक नवयुवक ,एक आतुर प्रेमी से जिम्मेदार पिता और सुयोग्य पति बनने की यात्रा का दस्तेवाज हैं वो पत्र।
सोच बदलती है,प्राथमिकताएं बदलती हैं किंतु पत्रों में एक भाव नहीं बदलता वो है रुमानियत। कुदरत की इच्छा कहो या नियति का विधान उन दोनों का साथ अधिक नहीं रहा,पत्र लेखक विलीन हो गया इस दुनिया से दूर पता नहीं कौन से जहान में।
पीछे छूट गयी साथी ने सजाया संवारा सब बिखरे तिनकों को और सहेज कर रखा घोंसले को ।सारी जिम्मेदारियां अल्प आयु में निभाते निभाते जाने कितनी बार घबराई होगी वो कितनी बार त्रसित हुई होगी ,तब शायद यही पत्र बार बार उसका सम्बल बने होंगे,जब भी एकाकीपन महसूस हुआ होगा इन पत्रों में ही अनुभव कर लिया होगा अपने साथी को और पुनः पुनः जीवनी शक्ति प्राप्त की होगी।
कभी कहीं पढ़ा था कि अतीत अच्छा हो या बुरा हो उसे भूल जाना ही श्रेयस्कर है क्योंकि अतीत यदि बुरा हो तो उसे याद कर कर हम दुखी होते रहते हैं और यदि सुखद हो तो भी दुखी होते हैं कि हमारे हालात पहले से कितना बदल गए हैं।अतीत को भूला तो नहीं जा सकता किन्तु उससे चिपक कर रहना भी उचित नहीं है,अतीत से सबक जरूर ले सकते हैं, इतिहास पढ़ाये जाने का औचित्य भी यही है कि अतीत में हुई गलतियों से सबक लो और जो अच्छा किया है उसे सँजो कर गर्व महसूस करो।इन पत्रों को पढ़ते हुए मैं भावविभोर हो उठती हूँ , ये पत्र जो किसी के जीवन की संजीवनी बूटी रहे होंगे उन्हें पढ़ते हुये मैं सोच रही हूँ इन्हें जला दूँ ,गंगा में बहा दूँ या सँजोये रखूं किसी विरासत की तरह।
टिप्पणी: एक पत्र लिखा जाता होगा फिर उसके पहुँचने के बाद उसका जवाब आने की प्रतीक्षा होती थी,कितने दिन तो यूँ ही व्यतीत हो जाते होंगें ।कितनी खुशनसीब है हमारी पीढ़ी जो इस युग में है जहाँ पलक झपकते ही सन्देश पहुँच जाते हैं साथ ही फ़ोन पर त्वरित वार्तालाप भी हो जाता है,हमारी पीढ़ी इस मायने में विलक्षण है कि हमने पत्रों का रसास्वादन भी किया है तथा आधुनिक संचार साधनों का भी उपयोग कर रही है।
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