Wednesday, 7 December 2016

स्मरण तुम आते हो


स्मरण तुम आते हो
प्रातःकाल सूर्य रश्मियाँ
जब झाँकती झरोखों से
तब मेरे पूरे घर में
तुम आलोक बन छा जाते हो
मैं जाती सुबह सैर पर
मेरी पदचाप बन जाते हो
योग के ओंकार में
श्वास निश्वास बन जाते हो
जब करती हूँ पूजा अर्चना
आरती में समाहित हो
शंख,घंटा व करतल ध्वनि
बन कर्ण को गुंजाते हो
भोजन पकाती हूँ तो
रोटी में वाष्प बन जाते हो
जिह्वा को रसना देकर
मुझे ऊर्जा पहुंचाते हो
भिगती हूँ जब बारिश में
नयन में अश्रु बन जाते हो
मिट्टी की सौंधी सुगंध बन
नासिका को महकाते हो
गर्मी की झुलसाती धूप में
पसीने से होती लथपथ
मंद समीर बन कर तुम
मेरे गेसु उङाते हो
सर्दियों की कंपकपाहट में
ऊन का गोला बन जाते हो
फंदा फंदा बुनती तुम्हें
मुझे ऊष्मा पहुंचाते हो
बसंत के आगमन पर
नव पल्लव बन जाते हो
खिल जाते हो पुष्प बन
मेरी अंखियों को लुभाते हो
सम्मिलित होती उत्सव में
संगीत लहरी बन जाते हो
कदमताल मिलाते मुझसे
नृत्य सहचर बन जाते हो
पढ़ती हूँ जब कोई क़िताब
शब्द शब्द बन जाते हो
लिखती हूँ जब कोई कविता
अक्षर अक्षर बन जाते हो
दिन भर के श्रम से क्लांत
बिखर जाती हूँ शैया पर
तब मादक स्पर्श बन कर
मेरा रन्ध्र रन्ध्र सहलाते हो
निद्रा देवी की बाहों में
जब मैं झूल रही होती
तब भी आकर चुपके से
सवप्न मेरा बन जाते हो
प्रति पल प्रति क्षण प्रति घङी
स्मरण तुम आते हो
विस्मरित कभी होते नहीं
सदैव स्मरण तुम आते हो
स्मरण तुम आते हो!!!!
                 मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: विरहणी नायिका किस प्रकार अपने प्रिय को अपनी इंद्रियों द्वारा व ऋतु अनुसार अपने पास अनुभव करती है।उसके अंतस में उससे अधिक बस वो.......

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