Sunday, 4 December 2016

(एक दूजे के समांतर)
चौराहे होते हैं हर शहर की शान
सबका एक निराला नाम व आन बान
किन्तु अक्सर आपस में होते हैं अनजान
ऐसे ही हमारी भी है पृथक पहचान
उन चौराहों से निकलते हैं तमाम रास्ते
अलग अलग मंजिल पर जाने के वास्ते
रास्तों को होता है एक दूसरे से गुजरना
गुजरने का अर्थ नहीं आपस में मिलना
हम तुम मिलकर भी ना बनायें कोण
न चौकोर न आयत न ही कोई त्रिकोण
सभी अजनबी चौराहे हो जायें छूमंतर
बस यूँ ही चलें हम एक दूजे के समांतर।
                मीनाक्षी मेहंदी

No comments:

Post a Comment