काश...!!!
नोटबन्दी की भाँति तुम्हारी स्मृतियों की भी हो पाती यादबन्दी।सबसे छिपाकर रखे नोटों की तरह तुम्हारी जो यादें संजो रखी हैं वो समेट लेती और एकत्रित कर लेती एक साथ।
प्रत्येक बटुये व वस्त्रों की तह में से जैसे खंगाल लिये पुराने नोट ऐसे ही मन व मस्तिष्क की प्रत्येक परत से निकाल लेती तुम्हारी कसमसाती यादें।सब जमा करा आती किसी बैंक में और बदल लेती उन्हें नये आभायुक्त गुलाबी पलों से।
कुछ दिन दिक्कतें तो आतीं तुम्हारी यादें बदलने में किन्तु तत्पश्चात उन नये गुलाबी रंगों में सराबोर होकर बिसार देती तुम्हारे दिये हुये हर्ष व विषाद के लम्हों की अनुभूति।
सम्भवतः तब भी प्रकट हो जाते अतीत का वार्तालाप बन कर या किसी चित्र के द्वारा....पुराने नोटों से जुड़े स्मरण तो बयां कर दिये जायेंगे किन्तु कैसे व्यक्त होंगी तुम्हारी स्मृतियां बेबाकी से...
पुराने नोट बन्द होकर भी चलते रहेंगें हमारी बातचीत,क़िस्सों तथा हासपरिहास में....
ऐसे ही तुम्हारी यादें भी झाँक ही जायेंगी यदा कदा अतीत के झरोखों से ....
परन्तु तब भी मन में एक विचार आ रहा है बार बार....
काश !!!
इतना ही सरल होता यादबंदी करना ठीक नोटबंदी की भाँति.....!!!!!
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