Tuesday, 13 December 2016

मेरी कसक

"मेरी कसक"
कल्पित थी चंद आकांक्षाएं ,संचित थीं चंद इच्छाएं,
था कुछ ऐसा अंतरबोध,होगा विशिष्ट वार्तालाप,
पर कर यथार्थ का बोध,मौन रह गये शब्द।

उपस्थित थे नितान्त परिचित,साथ ही कोई अपरिचित,
सुनते रहे उनकी भी,सुनते रहे आपकी भी,
श्रोता बने ,वक्ता नहीं,और मौन रह गये शब्द।

आनन्दमय था समस्त वातावरण,तस्वीरें,अनुभव,किस्से,
साथ ही गायन वादन,आत्मसात किया सबको,
पुलकित हुआ मन किन्तु,मौन रह गये शब्द।

बुझने थे अनगिनत प्रश्न,दूर करनी थी उलझन,
शने शने हुये व्यतीत पल,चले लिये अवसादी मन,
समेटते एक विस्तार को पर,मौन रह गये शब्द।

ऐसा नहीं कुछ बुरा लगा,किन्तु ना कुछ अच्छा लगा,
जूझते हैं जिस अंतरद्वंद में,कह ना सके समक्ष में
है शेष अब भी कसक क्योंकि, मौन रह गये शब्द।


                मीनाक्षी मेहंदी

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