Friday, 9 December 2016

मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ

मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ
किसी मेज पर अपने हाथों पर ठुड्डी टिकाये
अपलक देखते रहें एक दूसरे को
कुछ क्षण थम जाये समस्त सृष्टि
तुम्हारे नेत्रों से नेत्र मिलाते हुये...
बस कुछ ऐसे पल मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ

किसी सोफे पर साथ साथ पास पास
एक दूजे से सर व कंधे मिलाये
किसी कालजयी कृति को पढ़ते पढ़ते
पृष्ठ दर पृष्ठ परस्पर चर्चा करते जायें
बस कुछ ऐसे पल मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ

किसी अँधियारे हॉल के पर्दे पर
चित्रपट के प्रकाश व ध्वनियों के मध्य
तुम्हारा मधुर स्पर्श व चुलबुली सरगोशी
मुदित करे मुझे संवेदनशील दृश्य में भी
बस कुछ ऐसे पल मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ

किसी सागर की अतल गहराइयों में
देखूं अद्भुत जीवों का रोमांचक संसार
किसी पर्वत की असीम ऊँचाइयों पर
मिले तुम्हारे साथ की सुरक्षा व प्राणवायु
बस कुछ ऐसे पल मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ

किसी अरण्य के गूंजते निर्जन सन्नाटे में
वृक्ष झुरमुट में सूखे पत्तों की चरमराहट पर
किसी तालाब के दलदलीय तट पर बिछी
शैवालों की हरी दरी पर छेड़ें प्रणय क्रीड़ा
बस कुछ ऐसे पल मैं तुम्हारे संग जीना चाहती हूँ !
                             मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी:  ख्वाहिशें बहुत छोटी छोटी थीं मेरी 
              पूरी ना हुईं तो बड़ी लगने लगीं.....

1 comment:

  1. वाह अति सुन्दर कल्पना।

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