समाचार पत्रों के विज्ञापन निहारता
फटेहाल चलता चप्पलें फटकारता
घर में खामोश बना रहता
कठिनाई पूर्वक भोजन निगलता
नींद में भी मानो जागता
कब तक रहेगा रोज़गार तलाशता
बचपन बीता खेलता कूदता
बड़ा हुआ डिगरियां कमाता
निषिद्ध कर्म किया ना जाता
व्यापार हेतु धन ना भ्राता
बोझ समझने लगे हैं पिता
कहाँ गया पूर्व स्नेह माता
भेद ये समझ ना आता
कहीं पर चैन ना पाता
ऐसे ही एक बेरोजगार भटकता
जीवन दौड़ जीत नहीं सकता।
मीनाक्षी मेहंदी
फटेहाल चलता चप्पलें फटकारता
घर में खामोश बना रहता
कठिनाई पूर्वक भोजन निगलता
नींद में भी मानो जागता
कब तक रहेगा रोज़गार तलाशता
बचपन बीता खेलता कूदता
बड़ा हुआ डिगरियां कमाता
निषिद्ध कर्म किया ना जाता
व्यापार हेतु धन ना भ्राता
बोझ समझने लगे हैं पिता
कहाँ गया पूर्व स्नेह माता
भेद ये समझ ना आता
कहीं पर चैन ना पाता
ऐसे ही एक बेरोजगार भटकता
जीवन दौड़ जीत नहीं सकता।
मीनाक्षी मेहंदी
No comments:
Post a Comment