रात के गहन सन्नाटे में
विशाल आंगन में बिखरी ,
चाँदनी करती रही सवाल
क्या आज मैं पुनः जागूंगी,
कहाँ खो गयी है निंदिया
कहाँ विलुप्त तेरे स्वप्न,
किसकी याद में हरदम
खोया रहता तेरा मन,
कोई अनछुआ स्पर्श
कोई अनकहा वाक्य,
कोई अनघटी घटना
क्यों करती व्याकुल तुझे,
अपने से है परे
अपनों से भी विपरीत,
यथार्थ से कोसों दूर
कहाँ पहुँची तेरी आकांक्षाएं,
जागी है या सोई है
रहती यूँ ही खोई है,
क्या कभी तू रोई है
अपनी बेबसी पे छुप कर,
क्या कंपकपाते अधरों से
निकली है कोई क्रंदित आह,
किसकी करते हैं प्रतीक्षा
तेरे नैन अनन्त काल से,
सुन कर चाँदनी की
ये मधु भरी बतियाँ,
मैं थोड़ा सा शरमाई
कुछ कहने से सकुचाई,
लगता है आज मुक्ति नहीं
इससे बच नहीं पाऊँगी,
देने ही होंगें इसके
शरारती प्रश्नों के उत्तर,
नींद ,स्वप्न,यादें,मन
सब रख दिया कहीं गिरवी,
रहना चाहती हूँ कुछ समय
मैं नितांत अकेले स्वछंद,
जो स्पर्श,वाक्य,घटना
कर जाती उत्तेजित मुझे,
वो अन्य कुछ नहीं हैं
हैं स्वयं मेरी ही परिकल्पनाएं,
मेरी प्यारी प्यारी चाँदनी
सुना मेरा हाल तुमने,
अब समस्या हल कर दो
मेरे एक प्रश्न का उत्तर दे दो,
आख़िर क्यों अंजाने लोग
प्यारे बन जाते हैं,
मेरी अपनी कल्पनाओं पर
अपना अधिकार किये जाते हैं
कल तक जो बेगाने थे
आज सर्वस्य क्यों हो जाते हैं
जिनसे कोई पहचान ना थी
वो युग युग के साथी नज़र आते हैं ,
ऐसा आख़िर क्यों
किसलिये होता है ,
मैं मेहंदी ही ऐसी
बावरी बनी रहती हूं ,
या हर कोई अपने प्रिय की,
याद में रोता रहता है।
मीनाक्षी मेहंदी
Wow, Super
ReplyDeletethanks
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