Sunday, 19 March 2017

वयःसंधि


वयःसंधि मानव में उस कालखंड को कहते हैं जिसमें बच्चा बढ़ कर जवान बन जाता है,इस अवस्था को किशोरावस्था भी कहा जाता है,समान्यतः ये 12 से 19 वर्ष की आयु तक रहती है।इस समय मानसिक शक्ति प्रबल होती है।शारीरिक और भावनात्मक बदलाव चरम पर होते हैं।इस आयु में बालक असाधारण कार्य करना चाहता है ,यदि वो सफल हो जाये तो उसी क्षेत्र में आगे बढ़कर उसे अपना जीवनोपर्जन का माध्यम भी बनाना चाहता है,यदि असफल हो जाये तो उसे अपना जीवन अर्थहीन लगने लगता है।
वयःसंधि बेहद खतरनाक होती है इस समय व्यक्ति बन भी सकता है और बिगड़ भी सकता है,इस समय उसे जो परिवेश मिलता है उसी पर उसका भविष्य निर्भर करता है।इस समय लिये गये निर्णय उसके पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।
       इस वयःसंधि के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है किंतु एक वयःसंधि और होती है जिसके बारे में अधिक सुनने पढ़ने को नहीं मिलता वो है युवा से प्रौढ़ होने के मध्य की अवस्था जिसे अधेड़ावस्था भी कहते हैं।ये समान्यतः 45 से 60 के मध्य की आयु मानी जाती है।    इस काल में भी कई हार्मोनल बदलाव होते है साथ ही साथ उत्साह,रोमांच व शारीरिक क्षमता भी पहले जैसी नहीं रहतीं।रोग भी शरीर में बसने हेतु आतुर होने लगते हैं।पारिवारिक उत्तरदायित्व पूरे होने लगते हैं।उस समय अकेलेपन और नीरसता का वातावरण उत्पन्न होने लगता है,तब मानव के मन में पहले की दबी हुयी कुंठाएँ उभरने लगती हैं उसे लगता है उसने पूरा जीवन दूसरों की प्रसन्नता हेतु समर्पण कर दिया है अपने लिये तो जिया ही नहीं।यदि उसने अपना पूर्व का जीवनकाल अपनी इच्छानुसार जिया है तब तो वो सहज रूप से अपने इस जीवनकाल में भी नई ऊर्जा के साथ नये पथ (भौतिक,बौद्धिक या अध्यात्मिक) पर अग्रसर हो जाते हैं।किन्तु अधिकांश स्वयं को एकाकी मानने लगते हैं,उनमे नया कार्य करने की ना तो रूचि रहती है ना ही साहस ।इस समय उनके पास बुद्धिमानी और अनुभव की अदम्य ऊर्जा होती है तो भी वो निर्भीक हो निर्णय नहीं ले पाते और जैसा जीवन चल रहा है वैसा ही चलने देने को अपनी नियति मान लेते हैं ।
      इसका नतीजा ये होता है कि वो कटु और चिड़चिड़े होने लगते हैं जिसका प्रभाव उनके साथ साथ उनसे जुड़े सभी लोगों पर होने लगता है जिसके कारण कई बार उन्हें उपेक्षा का दंश भी झेलना पड़ता है।
      यदि हम जीवन की हर अवस्था को एक नवीन रूप माने तो प्रत्येक अवस्था का आनंद ले सकते हैं।
     कोई भी कार्य करने की यदि अदम्य इच्छा जोर मार रही हो तो उसे केवल आयु के विषय में सोच कर ना करना बुद्धिमानी नहीं है।अपने मन की सुनने के लिए और उसे कार्यन्वित करने के लिए आयु की आड़ नहीं लेनी चाहिये,आयु तो केवल एक संख्या है जो वर्ष दर वर्ष बढ़ती ही जायेगी.......
    आपके नूतन प्रयासों को आपके सिवा कोई रोक नहीं सकता,यदि आप जीवनपर्यंत एक ही परिपाटी पर चले हैं तब भी आप जब चाहे अपनी धारणा को बदल सकते हैं।आपमें अभी भी बहुत ऊर्जा है जिसके द्वारा आप जीवन का आनन्द ले सकते हैं ,ये जीवन एक बहुमूल्य उपहार है इसे ऐसे कार्य में लगाइये जो आप हमेशा से करना चाहते थे,साथ में अपने सामाजिक दायित्व भी निभाइये।
     आप पायेंगें कि आप पुनः तरोताज़ा हो गये हैं तथा
नीरस व उबाऊ जीवन काटने के स्थान पर जीवन का  रसास्वादन कर रहे हैं ।
                                    मीनाक्षी मेहंदी

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