तुमसे मिल कर
सोचा मैंने प्रति क्षण
टटोला अपना अंतर
कौन सी बात तुम्हारी
मुझको इतना मोह गयी
साथ छोड़ा नींद ने
केवल ख़्याल शेष रहे
जागी रही सोई नहीं
तुम्हारी याद में डूब गई
कहाँ गई मेरी कल्पनायें
क्या हुईं मेरी इच्छाएं
छाया कैसा सरूर
अपनी सुध बुध खो गयी
बिसार गई अपने आदर्श
अनदेखे कर दिये सिद्धान्त
क्या हुआ तुमसे मिल कर
अपना जीवन दर्शन भूल गयी।
मीनाक्षी मेहंदी
सोचा मैंने प्रति क्षण
टटोला अपना अंतर
कौन सी बात तुम्हारी
मुझको इतना मोह गयी
साथ छोड़ा नींद ने
केवल ख़्याल शेष रहे
जागी रही सोई नहीं
तुम्हारी याद में डूब गई
कहाँ गई मेरी कल्पनायें
क्या हुईं मेरी इच्छाएं
छाया कैसा सरूर
अपनी सुध बुध खो गयी
बिसार गई अपने आदर्श
अनदेखे कर दिये सिद्धान्त
क्या हुआ तुमसे मिल कर
अपना जीवन दर्शन भूल गयी।
मीनाक्षी मेहंदी
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