Saturday, 11 March 2017

होली आयी

होली के सतरंगों के साथ साथ बन जाता है इन्द्रधनुष बचपन की हुड़दंगी होली का।कई कई दिन पहले से बच्चों की टोली चंदा इकठ्ठा करती थी,होलिका दहन के लिये।पापा लाते थे सुगंधित गुलाल,पक्के रंग और टेसू के फूल।पूरी कॉलोनी पर छा जाता था होली का खुमार----
      सभी महिलाएं मिलजुल कर बनाती थीं,गुझिये,समोसे,ख़स्ता,मठरी,लड्डू,चिप्स,आलू के पापड़ और बेसन के सेव।
       होलिका दहन के पूजन पर इकठ्ठा हो जाता था पूरा परिसर और होलिका के चारों और घूमते हुये भूने जाते थे गन्ने व होले(हरे चने) या गेहूँ की बालियाँ।
      रंग के दिन बड़े पीते थे भांग मिली ठन्डाई और बच्चे खाते ढेर सारी गुझिया व मिठाई। रात भर भिगोये टेसू की सुगन्धित जलधार से पिचकारी भर जब किसी को भिगोया जाता था तो तन के साथ उसका मन भी प्रेम से भीग कर अहलादित हो जाता था।
    वो अहसास आज भी तरबतर करता है मधुर स्मृतियों से झाँककर।
     पूरी कॉलोनी त्यौहारों विशेषकर होली पर एक वृहद परिवार बन जाती थी,गजब का खुमार छा जाता था।
     होली के बचपन के साथी बेहद याद आते हैं,जो गुम हो गये कहीं वक़्त की धारा में, कुछ मिल गये हैं सोशल मीडिया पर।
     अब भी मनाते हैं होली नये मित्रों व नये उल्लास के संग, संग ही लेकर चलते हैं परम्पराएं तथा पकवान भी।
    अब तो वास्तविक संसार के साथ साथ मचती है धूम आभासी संसार में भी जाने अनजाने मित्रों के नये नये विचारों की।
     वाह, क्या पीढ़ी है हमारी जिसने देखें हैं नवीन व पुरातन सभी रंग होली के।
                                 मीनाक्षी मेहंदी

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