मुझसे किसी ने जिज्ञासा की कि हम अपने जीवन काल में सभी हवन निराहार रह कर एवं दिन में करते हैं तो पाणिग्रहण का हवन (फेरों के समय)जो दो व्यक्तियों के नए जीवन की शुरुआत है उसे रात्रि में और खाना खाकर क्यूँ करते हैं,इसका कोई कारण है या गलत परंपरा...
मैंने उन्हें कहा कि ब्रह्म महूर्त में फेरे लिये जाते हैं तो उनका तर्क था तब तो हम जो विवाह की शुभ तिथि निकलवाते हैं उस दिन विवाह ना होकर अगली तिथि पर हो रहा है,
विवाह दिन में होने चाहिये रात्रि विवाह का चलन ग़लत है
यदि किसी पर उपयुक्त तर्क हो तो समाधान दें।क्या वैदिक काल से ही विवाह रात्रि में होते थे या समय के साथ विसंगति आ गयी है।
महात्माओं से परामर्श करके पता चला है,कि पहले विवाह दिन में ही होते थे।दूल्हा दुल्हन विवाह-यज्ञ पूर्ण होने से पहले निराहार रहते थे।पर अब समय के साथ विसंगति आ गयी है।
तात्पर्य यही है कि निशाकालीन विवाह उचित नहीं हैं।
मैंने उन्हें कहा कि ब्रह्म महूर्त में फेरे लिये जाते हैं तो उनका तर्क था तब तो हम जो विवाह की शुभ तिथि निकलवाते हैं उस दिन विवाह ना होकर अगली तिथि पर हो रहा है,
विवाह दिन में होने चाहिये रात्रि विवाह का चलन ग़लत है
यदि किसी पर उपयुक्त तर्क हो तो समाधान दें।क्या वैदिक काल से ही विवाह रात्रि में होते थे या समय के साथ विसंगति आ गयी है।
महात्माओं से परामर्श करके पता चला है,कि पहले विवाह दिन में ही होते थे।दूल्हा दुल्हन विवाह-यज्ञ पूर्ण होने से पहले निराहार रहते थे।पर अब समय के साथ विसंगति आ गयी है।
तात्पर्य यही है कि निशाकालीन विवाह उचित नहीं हैं।
No comments:
Post a Comment