Tuesday, 7 March 2017

सलोनी की कहानी(6)- सलोनी की होली (दृश्य-1)

"सलोनी की होली"
सलोनी: सुनो,इस होली भी मुझे रंग नहीं लगाओगे।
विनीत: क्या रंग लगाना पहले रंगों फिर घण्टों छुड़ाते रहो मुझसे नहीं होती ये बेवकूफ़ी।अब जल्दी से होली में पहनने के कपड़े दो।
सलोनी:पहले तो आपको होली खेलना पसंद नही था किंतु अब तो आप होली खेलते हो तो मेरे साथ भी...
विनीत:मेरा मन नहीं होता 
सलोनी:क्यों नहीं होता इतने साल हो गये शादी को आपका मन क्यों नहीं होता मुझसे होली खेलने का।
विनीत:नहीं होता तो नहीं होता,तुम तो जानती हो मेरा कुछ मन नहीं होता।
सलोनी:बच्चों को संग ले जाओ और बाहर से ताला लगा दो मुझे किसी के साथ होली नहीं खेलनी।

विनीत:कॉलोनी की महिलायों के साथ खेल लेना बुलाने आयेंगी तो....
सलोनी:क्या फायदा पहले रंग लगवाओ फिर छुड़ाओ मेरी त्वचा भी ख़राब हो जाती है।
सुनो.... जब मैं मर जाऊंगी तो मेरी खूब सारी मांग भर देना नाक से लेकर सर तक वही हमारी सच्ची होली होगी।
विनीत:बकबक भरी डायलॉग बाजी बन्द करो ,जा रहा हूँ देर हो गयी तो भाभियों को मुझसे पहले कोई और रंग लगा देगा।
विनीत बच्चों के साथ बाहर से तालालगाकर चला जाता है।
सलोनी पूरे वर्ष अवसादग्रस्त रहती है चिड़चिड़ी बात बात पर ताने सुनाने वाली,अनमने ढंग से सभी काम करती बच्चों को हरदम फटकारती नारी।प्रतीक्षा करती है शायद अगली होली पर विनीत उसे रंग लगायेगा और वो होली कभी नहीं आती।

टिप्पणी: सामाजिक दृष्टिकोण से सलोनी एक अच्छी नारी है जो अपने पति का प्रेम पाना चाहती है,जिसकी सभी खुशियां अपने पति से जुड़ी हैं

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