" ख़ुशी का पैमाना"
कल एक मूवी देखी,पांच दोस्तों की कहानी जिनके लिये ख़ुशी की परिभाषा अलग अलग थी।एक के लिए शक्ति,दूसरे के लिये प्रसिद्धि ,तीसरे के लिए धन ,चौथे के लिए सफलता और पाँचवे के लिए दुःख का अभाव ही ख़ुशी का पैमाना था।वो अपनी अपनी खुशियों को पाने के लिए निकल पड़ते हैं ,5 साल बाद फिर मिलने के लिए और अपनी अपनी मंजिल को पाने के बाद जब वो पुनः मिलते हैं तो पाते है कि कोई भी खुश नहीं है क्योंकि अपना लक्ष्य पाने हेतु उन्होंने जो कार्य किये थे वो उनकी अंतरात्मा को कचोट रहे थे।
दुःख का अभाव भी ख़ुशी का पैमाना नहीं है।जीवन में ख़ुशी पाने की लालसा में शायद व्यक्ति ख़ुशी से और भी दूर होता चला जाता है।ख़ुशी तो अंतरनिहित होती है जो परिस्थितिजन्य होती है।कभी कभी समान परिस्थिति हमे सुख देती है और मन के दुःखी होने पर पर वही हमें दुःखद प्रतीत होती है।
कुछ लोगों का मानना है कि ऊपरवाला कभी किसी को पूर्ण सुख नहीं देता कुछ ना कुछ अभाव जीवन में अवश्य होता है।मनुष्य की फितरत है कि वो उस कमी को सोच सोच कर ही दुःख प्रतीत करता रहता है जो मिल गया उसे नहीं देखता।
लेकिन परमपिता परमात्मा हमें बहुत दुखी भी नहीं देख सकता है जब भी हम अत्यधिक कष्ट या दुःख में होते हैं तो वह हमारे कष्ट हरने के लिये किसी ना किसी रूप में हमारी सहायता के लिए प्रयास करता है और किसी को माध्यम बनाता है सहयोग के लिये,अब ये हमारी योग्यता पर निर्भर होता है कि हम उस माध्यम को पहचान अथवा समझ पाते हैं या नहीं।
पूर्ण सुख या पूर्ण दुःख जैसी कोई अवधारणा नहीं होती एक के होने में ही दूसरे का होना पाया जाता है, सुख का महत्व तभी ज्ञात होता है जब दुःख को अनुभव किया हो ,बिना दुःख की अनुभूति के सुख की अनुभूति भी नहीं होती।
अतः ख़ुशी का कोई निश्चित पैमाना नहीं है,ख़ुशी को सब अपनी अपनी मनोस्थिति अनुसार प्रतीत करते हैं।कहते हैं ना कोई खुश हुआ गुब्बारे बेच कर और कोई खुश हुआ गुब्बारे खरीद कर।
मीनाक्षी मेहंदी
कल एक मूवी देखी,पांच दोस्तों की कहानी जिनके लिये ख़ुशी की परिभाषा अलग अलग थी।एक के लिए शक्ति,दूसरे के लिये प्रसिद्धि ,तीसरे के लिए धन ,चौथे के लिए सफलता और पाँचवे के लिए दुःख का अभाव ही ख़ुशी का पैमाना था।वो अपनी अपनी खुशियों को पाने के लिए निकल पड़ते हैं ,5 साल बाद फिर मिलने के लिए और अपनी अपनी मंजिल को पाने के बाद जब वो पुनः मिलते हैं तो पाते है कि कोई भी खुश नहीं है क्योंकि अपना लक्ष्य पाने हेतु उन्होंने जो कार्य किये थे वो उनकी अंतरात्मा को कचोट रहे थे।
दुःख का अभाव भी ख़ुशी का पैमाना नहीं है।जीवन में ख़ुशी पाने की लालसा में शायद व्यक्ति ख़ुशी से और भी दूर होता चला जाता है।ख़ुशी तो अंतरनिहित होती है जो परिस्थितिजन्य होती है।कभी कभी समान परिस्थिति हमे सुख देती है और मन के दुःखी होने पर पर वही हमें दुःखद प्रतीत होती है।
कुछ लोगों का मानना है कि ऊपरवाला कभी किसी को पूर्ण सुख नहीं देता कुछ ना कुछ अभाव जीवन में अवश्य होता है।मनुष्य की फितरत है कि वो उस कमी को सोच सोच कर ही दुःख प्रतीत करता रहता है जो मिल गया उसे नहीं देखता।
लेकिन परमपिता परमात्मा हमें बहुत दुखी भी नहीं देख सकता है जब भी हम अत्यधिक कष्ट या दुःख में होते हैं तो वह हमारे कष्ट हरने के लिये किसी ना किसी रूप में हमारी सहायता के लिए प्रयास करता है और किसी को माध्यम बनाता है सहयोग के लिये,अब ये हमारी योग्यता पर निर्भर होता है कि हम उस माध्यम को पहचान अथवा समझ पाते हैं या नहीं।
पूर्ण सुख या पूर्ण दुःख जैसी कोई अवधारणा नहीं होती एक के होने में ही दूसरे का होना पाया जाता है, सुख का महत्व तभी ज्ञात होता है जब दुःख को अनुभव किया हो ,बिना दुःख की अनुभूति के सुख की अनुभूति भी नहीं होती।
अतः ख़ुशी का कोई निश्चित पैमाना नहीं है,ख़ुशी को सब अपनी अपनी मनोस्थिति अनुसार प्रतीत करते हैं।कहते हैं ना कोई खुश हुआ गुब्बारे बेच कर और कोई खुश हुआ गुब्बारे खरीद कर।
मीनाक्षी मेहंदी
वाह, बहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय
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