Wednesday, 1 March 2017

मेरी पीड़ा

     
                           "मेरी पीड़ा"
उत्पन्न होती हैं वातावरण में कुछ तरंगें
मेरी मानसिक तरंगों के साथ कर अनुनाद

वो कुछ ऐसा प्रभाव छोड़ जाती हैं
कि मेरा मन आन्दोलित हो उठता है

करने लगता है एक अनचाहा विद्रोह
सदियों से चली आ रही परम्पराओं का

मस्तिष्क भी हृदय का साथ देता है
ठुकराना चाहता है प्राचीन मान्यतायों को

त्यागना चाहता है समस्त रीतिरिवाजों को
पर साथ ही कुछ घटित हो अवचेतन में

आभासित कराता है कि भला बुरा जो भी है
जैसा भी है ,सब कुछ चलने दो यूं  ही ऐसे ही

अपने विचारों,सिद्धान्तों का जब कभी भी
परीक्षण करती हूँ यथार्थ की कसौटी पर

तब प्रतीत होता है कि मैं ही सर्वदा सही हूं
शतप्रतिशत खरी व शुद्धतम गणनमान हूँ

पर ना जाने कौन सा भय है जो
अवचेतन का बोध सत्य मानती हूँ

हालांकि इस प्रयास में  सदैव 
स्वयं अपने ही द्वारा उत्पादित

परिकल्पनाओं के बोझ तले कहारती हूँ
घनघोर पीड़ा से बैचेन हो जाती हूँ ......

                                 मीनाक्षी मेहंदी


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