live-in relationship क्या है?
दो वयस्क व्यक्ति समान्यतः स्त्री पुरुष बिना कोई समाजिक बंधन मानते हुए अथवा बिना वैवाहिक संबंध के साथ रहते हैं उसे लिव इन रिलेशनशिप कहते हैं।
आजकल ये सम्बन्ध बढ़ते जा रहे हैं इसका कारण है उन्मुक्त जीवन की आकांक्षा।जब तक मन करा साथ रहे जब मन हो अलग हो जाओ बिना किसी क़ानूनी दावँ पेंच के, कोई किसी की आज़ादी में दखल अन्दाजी ना करे अपनी इच्छानुसार जियो।विवाह करने में तो कई बातों का ध्यान रखना होता है ,पर लिव इन में परिवारजनों और समाज की परम्पराओं का पालन करना जरूरी नही है।
कई बार किसी ऐसे व्यक्ति से प्रेम हो सकता है जिससे विवाह करने में कई पारिवारिक व सामाजिक अड़चनें होती हैं तब विवश्तास्वरूप भी जोड़े लिवइन में रहने को सुगम मार्ग समझते हैं।
क्रान्ति युगे युगे ,हर युग में पहले से चली आ रही मान्यताओं और परम्परा के विरुद्ध युवा आवाज़ उठाता रहा है अधिकतर जन विरुद्ध ही होते हैं पर परिवर्तन हर युग में अपनी जगह बनाता है,कई लोग तन से साथ होते हैं पर मन से किसी और के साथ रहते हैं ये भी तो एक लिव इन ही है........
कुछ लोगों की मान्यता है कि व्यक्ति यदि विवाह संस्था को ना माने तो पुनः जानवर या आदि मानव बन जायेगा परन्तु सभ्य बन कर भी क्या प्राप्त कर लिया मानव ने....रोज के झगड़े,तनाव.... बच्चों के कारण साथ रहने की विवशता ,इससे अच्छा है ,लिवइन में रहना,सच कहूँ तो लिव इन में ही सही मायने में स्वतंत्रता है,जिसमे कोई लिंगभेद नहीं होता दोनों इंसान बन कर रहते हैं अपनी अपनी इच्छा व रुचिनुसार जी सकते हैं,बिना किसी पाबंदी के एक दूसरे का सम्मान करते हुए।
जैसे विवाह रूपी संस्था में कुछ वचन लिए जाते हैं ऐसे ही लिव इन में भी कुछ बिन्दू स्पष्ट होने चाहिए
1 कौन किस किस मद में कितना खर्चा करेगा
2 दोनों की दिनचर्या के अनुसार कार्यों का विभाजन
3 यदि सन्तान हुई तो उसका निर्वाह और भरण पोषण दोनों करेंगे किन्तु अलग होने पर उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा
4 किसी एक के परिवारजनों को यदि कोई आपत्ति है तो दूसरे को उससे कोई मतलब नही अपने परिजनों को स्वयं समझाओ।
5 अलग होने के पश्चात एक दूसरे पर अनर्गल आपेक्ष कोई प्रत्यरोपित नहीं करेगा
इसके अलावा अन्य बिंदुओं पर भी सहमति अपनी परिस्थिति अनुसार की जा सकती है।
लिव इन से दहेज,घरेलु हिंसा,जातिप्रथा आदि दोष भी स्वतः समाप्त हो जायेंगे।
प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं, कुछ अच्छा होता है कुछ बुरा उसे किस तरह उपयोग करें ये हमारे ऊपर निर्भर करता है ।
कई कबीलाई संस्कृतियों में अब भी ये प्रथा है कि विवाह पूर्व जोड़े संग रह कर देखतें हैं कि वो एक दूसरे के योग्य हैं या नहीं यदि सहमति हुई तो विवाह सम्बन्ध तय कर दिया जाता है अन्यथा नहीं।
सबसे बड़ी बात रिश्ता चाहे समाजिक मान्यता प्राप्त हो या ना हो, यदि दिल से जुड़ा है और विश्वास पर टिका है तभी चलता है अन्यथा नही वरना सामाजिक मान्यतायों अनुसार किये गए विवाह में भी कुछ जोड़े पृथक होते ही हैं।
अब तो लिवइन से उत्पन्न हुई सन्तानों को भी क़ानूनी मान्यता व हक़ प्राप्त हैं।