काश एक अनोखा यन्त्र होता
सही गलत का पैमाना बताता
कब कैसा आचरण करना है
ये अभासित कराता रहता
समय पूर्व ही गलती भांपता
हमें चेतावनी देता रहता
कब कहाँ पग धरना है
हमें बतलाता रहता
त्रुटि विहीन व्यवहार करें
ऐसी समझ देता रहता
अज्ञानता को ज्ञान बना
हमें सुख पहुँचाता रहता
समयानुकूल कैसे बनें
बोध करवाता रहता
जीवन गति श्रेष्ठ बना
विजय दिलाता रहता
मानो ऐसा अनोखा यन्त्र
कभी कहीं जो बन पाता
त्रुटिविहिन जीवन जीना
हमें सिखलाता रहता
किन्तु तब उत्सुक मन
निष्क्रिय ना हो जाता
समस्त मौलिकता त्याग
यांत्रिक ना बन जाता
सच है मानव त्रुटियों का
पुतला भले ही कहलाता
ये भी सटीक है कि मानव
त्रुटियों से ही सीखता जाता
त्रुटि ना हो कभी तो
मानव ना सुधर पाता
अपनी बुद्धि त्याग कर
यन्त्र पर निर्भर हो जाता
संग संग भावनाओं का भी
यांत्रिकीकरण हो जाता
कैसे विकसित हो पाती
संवेदना युक्त मानवता
इंसानियत का यूँ ही
लुप्तिकरन हो जाता
अंततः तर्क वितर्क से
निष्कर्ष ये निकलता
अनोखा यन्त्र बनने से
मानव तो रहता
पर इस यांत्रिकी में
अस्तित्व मिट जाता।
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: ये मेरी प्रारम्भिक रचनाओं में से एक है ।यूँ ही बैठे बैठे कुछ विचार मन में आ जाते थे और कलमबद्ध कर देती थी एक ही प्रवाह में बिना कोई शुद्धि किये।
सही गलत का पैमाना बताता
कब कैसा आचरण करना है
ये अभासित कराता रहता
समय पूर्व ही गलती भांपता
हमें चेतावनी देता रहता
कब कहाँ पग धरना है
हमें बतलाता रहता
त्रुटि विहीन व्यवहार करें
ऐसी समझ देता रहता
अज्ञानता को ज्ञान बना
हमें सुख पहुँचाता रहता
समयानुकूल कैसे बनें
बोध करवाता रहता
जीवन गति श्रेष्ठ बना
विजय दिलाता रहता
मानो ऐसा अनोखा यन्त्र
कभी कहीं जो बन पाता
त्रुटिविहिन जीवन जीना
हमें सिखलाता रहता
किन्तु तब उत्सुक मन
निष्क्रिय ना हो जाता
समस्त मौलिकता त्याग
यांत्रिक ना बन जाता
सच है मानव त्रुटियों का
पुतला भले ही कहलाता
ये भी सटीक है कि मानव
त्रुटियों से ही सीखता जाता
त्रुटि ना हो कभी तो
मानव ना सुधर पाता
अपनी बुद्धि त्याग कर
यन्त्र पर निर्भर हो जाता
संग संग भावनाओं का भी
यांत्रिकीकरण हो जाता
कैसे विकसित हो पाती
संवेदना युक्त मानवता
इंसानियत का यूँ ही
लुप्तिकरन हो जाता
अंततः तर्क वितर्क से
निष्कर्ष ये निकलता
अनोखा यन्त्र बनने से
मानव तो रहता
पर इस यांत्रिकी में
अस्तित्व मिट जाता।
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: ये मेरी प्रारम्भिक रचनाओं में से एक है ।यूँ ही बैठे बैठे कुछ विचार मन में आ जाते थे और कलमबद्ध कर देती थी एक ही प्रवाह में बिना कोई शुद्धि किये।
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