बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
मधुर शब्दों के संस्कार उकेरता कोई है
और अन्वेषण करता कोई और ही
सुंदर लिखावट से गुण भरता कोई है
भावना विश्लेषित करता कोई और ही
स्वयं ही पता लिख करता प्रेषित कोई है
और बरसते नेह से भीगता कोई और ही
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
अब ये पाने वाले की सुरुचि पे निर्भर होता है
कि वो पढ़ कर टुकड़े टुकड़े कर फेंक दे
या यूँ ही रख दे रद्दी कागजों के ढेर में
या सहेज कर भूल जाये बरसों बरस तक
या पढ़े बारम्बार ख़ुशी,लगाव और चाव से
और पाता रहे सतत ऊर्जा निहित भाव से
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
कोई यदि पढ़ना चाहे स्वयं लिखी पाती
तो लेनी होगी अनुमति उसे पाने वाले से
अमानत बन जाती वो अन्य की सदा के लिये
अपना लेती पराये घर संसार को सदा के लिये
विस्मिय होता कि अपनी ही रचना किस कौशल से
सीचतीं एक देश की वाष्प से दूसरे देश की मिट्टी
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
मीनाक्षी मेहंदी
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