Tuesday, 10 January 2017

गणित- प्यार व स्वीकृति का

एक धारणा बहुप्रचलित है कि अरेंज मैरिज अधिक सफल होती हैं लव मैरिज के बनस्वित.......
   ऐसा क्यों है? जो रिश्ता प्रेम से बना है वो अधिक सफल होना चाहिये..उनका जीवन सुखी एवं सुचारू चलना चाहिये किन्तु सर्वाधिक विसंगतियाँ लव मैरिज में ही क्यों उजागर होती हैं?
       सर्वप्रथम अरेंज मैरिज व लव मैरिज के हिंदी शब्द प्रयुक्त करते हैं।लव मैरिज का तो अर्थ है "प्रेम विवाह"
 अरेंज मैरिज के लिये व्यवस्था विवाह या तयशुदा विवाह शब्द अटपटे लग रहे हैं।मेरे अनुसार "स्वीकृत विवाह" शब्द अधिक उपयुक्त रहेगा।
  प्रेम विवाह जैसा कि नाम से स्पष्ट है,दो लोगों ने एक दूजे को पसंद किया,प्रेम का अहसास किया तथा विवाह कर लिया।
 स्वीकृत विवाह का गणित अलग है,इसकी समीकरण बनाने में माता पिता का अहम योगदान होता है।वो सामाजिक मान्यताओं तथा अपनी पृष्ठभूमि अनुसार वर/ वधू का चयन करते हैं और उनकी संतान भी आज्ञा शिरोधार्य करके उन्हें जीवनसाथी बनाने हेतु स्वीकार करती हैं।सभी के द्वारा स्वीकार किया गया ये विवाह मेरी दृष्टि में स्वीकृत विवाह कहना ही उचित है।
  बस इस प्यार और स्वीकार के गणित में ही सफल व असफल विवाह का सूत्र छिपा हुआ है।
  दोनों ही तरह के विवाह असफल होने के पारिवारिक,सामाजिक व आर्थिक पहलू हो सकते हैं।स्वीकृत विवाह में माता पिता एवं अन्य परिचित साथ देते हैं किंतु प्रेम विवाह कदाचित स्वीकार करते हुये भी माता पिता का रवैया उदासीनता लिये हुये ही होता है।माता पिता की भूमिका का भी सफल/असफल वैवाहिक जीवन में अहम योगदान होता है।
 मेरी विवेचना है कि प्यार धन आवेशित होता है तथा स्वीकार ऋण आवेशित जो मिलकर निम्न समीकरण बनाता है।

         +प्यार+प्यार = + प्रेमविवाह

दोनों पक्ष जब एक दूसरे से प्यार करते हैं,विशुद्ध प्रेम जिसमे पाना या खोना मायने नहीं रखता।अगर वियुक्त होना पड़ता है तो वियोग में जान देकर अमर प्रेम कहानियों के कालजयी पात्र बन जाते हैं।यदि जीवित रहे तो किसी अन्य के साथ जीवन बिताते हुये भी अपना प्यार जीवन पर्यंत ह्रदय में दबाये रहते हैं।यदि इन प्रेमी युगल का विवाह हो जाये तो अत्यंत सफल रहता है,मिसाल योग्य हो जाता है।

       -स्वीकार  - स्वीकार = + स्वीकृत विवाह

इस विवाह में माता पिता द्वारा तय किया हुआ साथी दोनों पक्ष स्वीकार करते हैं जो है जैसा भी है। संग रहते रहते दोनों को एक दूजे की आदत हो जाती है।कभी कभी दोनों में प्यार भी हो जाता है अन्यथा पारिवारिक या सामाजिक बन्धन ना तोड़ पाने की विवशता अथवा बच्चों के सुखद भविष्य व ख़ुशी को ध्यान में रखते हुए अधिक अपेक्षा रखे बिना अपना भाग्य समझ जीवन पर्यन्त साथ रहते हैं।ये खुशहाल विवाह ही किवदंती बन जाते हैं कि स्वीकृत विवाह अधिक सफल होते हैं।

         +प्यार -स्वीकार = - प्रेम विवाह

एक को दूसरे से प्यार हो जाता है तथा दूसरा ये सोच अभिभूत हो जाता है कि कोई मुझे इतना चाहता है।एक प्यार का इजहार करता है एवं दूसरा उसे ही सपनों का राजकुमार/ सपनों की रानी समझ परिणय प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है।ये युगल जब कल्पना जगत से निकल यथार्थ से टकराते हैं तो उनकी अपेक्षाएं टकराव बन जाती हैं।प्यार करने वाला दुनियादारी में उलझने लगता है तो स्वीकार करने वाला ताने उलाहने देने लगता है कि अब तुम बदल गए हो पहले जैसा प्यार नहीं करते और प्यार करने वाले को लगता है मुझे प्यार के बदले प्यार नहीं मिल रहा।  धीरे धीरे ये एक पक्षीय प्यार लुप्त होने लगता है।ये विवाह शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं अथवा शिकवे शिकायतों के साथ विवाह कायम तो रहता है किंतु विशुद्ध प्यार कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है।ऐसे युगल को देख कर ही लगता है कि प्रेम विवाह सफल नहीं होते।
      प्यार तो प्यार ही होता है विवाह सफल हो या ना हो प्यार तो सदा ही रहता है,अपेक्षाओं का बोझ प्यार को भले ही दबा दे पर प्यार तो अक्षुण्ण बना ही रहता है।

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