"वर्जित फ़ल"
हे सर्वशक्तिमान! क्यूँ रचते हो ऐसी माया
बनाया वर्जित फ़ल,और खाने को मना किया
आदम और इव ने वो वर्जित फ़ल चख लिया
उसको खाते ही सृष्टि का क्रम आगे बढ़ गया
हम सबको बचपन से यही सिखाया गया
कठिनाइयों में पड़ोगे यदि ये फ़ल मिल गया
बड़ों की आज्ञा को सदा शिरोधार्य किया
लुभावने फ़ल को देख कर भी लोभ ना किया
एक दिन वो वर्जित फ़ल सर पर गिर गया
हाथ में उठाने पर खाये बिना ना रहा गया
चख कर निराला स्वाद परमानन्द छा गया
गूंगे के गुड़ की भाँति किन्तु बताया ना गया
फ़ल तो खा लिया,परन्तु बीज शेष रह गया
भारी उलझन लिये मन में उसे भूमिगत किया
मिट्टी की परतों में दबा रहेगा ये सोच लिया
तीव्र बारिश जब हुई ,उसका अंकुर फूट गया
उसकी मोहक कोपलों ने मुझको लुभा लिया
मैंने उसकी धूप,पानी का ध्यान कर लिया
फूल व शूल संग पौधा बढ़ता चला गया
मेरी आसक्ति को भी नित बढ़ाता चला गया
मनभाते पौधे को चाह कर भी ना सहलाया
भयातुर रहती क्या होगा यदि फ़ल आ गया
पहचानेंगे सब वर्जित फ़ल का पौधा उग गया
कैसे रोकूंगी,उखाड़ने को कोई हाथ यदि बढ़ गया
एक स्त्री का प्रेम वर्जित फ़ल से पौधा बन गया
पता ही ना चला कब ये जीने का सहारा बन गया।
मीनाक्षी मेहंदी
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