Friday, 13 January 2017

मनोरम जीवन


"मनोरम जीवन"
आते हैं इस जगत में हम आँखे मूंदे
नन्हीं किलकारियों से घर आंगन गूंजे
सबकी भुजाएं हमें थामती आलिंगन भर भर
सारी निगाहें हमे निहारतीं प्रेमिल दृष्टि सरस
हम देखते विस्मयी आँखों से टुकुर टुकुर
अपने अबोध चेहरे को बिगाड़ते पल पल
जग में आते ही अनुभव होने लगतीं सभी त्रासदी
भूख,सर्द,गर्म आदि की अनुभूति जागती
पर ये जीवन इतना अधिक मनोरम है कि
इसके लिए सह सकते हैं हम सब कुछ
जो कुछ भी सुंदर सुखद रसमय है
सब क्रय कर सकते हैं इस जीवन हेतु
प्रेम,संगीत,झरने,सुगन्ध व पावन विचार
कुछ समेट लिया जाये कुछ चुकाया जाये
संघर्ष के पलों के पश्चात ली जाये एक
गहरी परमानन्द से भरी उच्छ श्वास
जो भी हम पाना या सहेजना चाहते हैं
सौंप देना चाहिये इस जगत को वो ही
लौट कर आ जायेगा वो सब ही हमारे पास
लौट कर आता है वही सब हमारे पास....
                     मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: जो भी हम इस दुनिया को देते हैं वही हमें वापस मिलता है यही प्रकृति का नियम है।
" बोय पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय"

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