जादूगर
एक जादूगर शहर में हुआ प्रविष्ठ
निराला जादुई पिटारा लाया विशिष्ठ
सूने सूने नीरस दिनों की बयार
भंग करता लाया रस की फुहार
ख़ुशी चाव से देखने गयी खेला
उमड़ा था जनजनार्दन का रेला
भाँति भाँति के कौशल दिखाता
जादूगर था सबके मन को लुभाता
यकायक दर्शक दीर्घा को कर इंगित
मुझे किया उसने संकेत से चिन्हित
हतप्रभ हुई चुना क्यों उसने मुझ को
मंच पर जादू में अपना साथ देने को
चकाचौन्ध मंच की शोभा बनने हेतु
अभिभूत हो खिंच गयी सहयोग हेतु
नये प्रयोग कर रोमांच जगाना चाहता था
चरम उत्कर्ष पर जादू ले जाना चाहता था
उसने देखी विलक्षण शक्ति मुझमें कोई
पर मैं थी उसके सम्मोहन में पूर्णयता खोई
विविध खेल दिखाते रहे उसके पारंगत हाथ
मैंने भी दिया यथा शक्ति उसका साथ
किन्तु उसको जो थी मुझसे अनोखी आस
साकार ना हुआ उसका वो अनूठा प्रयास
जादू का शो उसका धूमधाम से पूरा हुआ
कदाचित मुझसे वो अत्यंत निराश ही हुआ
मस्त मलंग यादें जादू भरी देकर
चला गया समेट अपना लाव लश्कर
क्या पता फिर मिलें है छोटी सी दुनिया
संग बिताये मंजर की संजोये हूँ स्मृतियां
चंद पलों का रोमांच बिसराया ना जाता है
दिनोंदिन प्रीत का रंग चटक होता जाता है
अपने संसार में मिलता रहे उसे सुखचैन
व्यतीत हो जायेंगे मेहंदी के भी दिन रैन
परन्तु एक टीस रहेगी दोनों के ही मन में
उसने क्यों चुना मुझे ही उस भरे पंडाल में......
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: नित नए नए खेल जिंदगी हमें दिखाती है,कुछ खेल ऐसे होते हैं कि वो और उन्हें दिखाने वाले चिरविस्मरणीय बन जाते हैं.......रह रह कर साथ याद आते हैं...
यादें जाती नहीं ... पर समय के साथ भी चलना होता है ...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ...
धन्यवाद, जी चलते हैं समय के संग एक कसक के साथ
ReplyDeleteआपको भी नववर्ष मंगलमय हो
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब।👍👍
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteयादें ही साथ रहती हैं सब कुछ पिछे छूट जाता हैं
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो