Monday, 2 January 2017

जादूगर


जादूगर

एक जादूगर शहर में हुआ प्रविष्ठ
निराला जादुई पिटारा लाया विशिष्ठ

सूने सूने नीरस दिनों की बयार
भंग करता लाया रस की फुहार

ख़ुशी चाव से देखने गयी खेला
 उमड़ा था जनजनार्दन का रेला

भाँति भाँति के कौशल दिखाता
जादूगर था सबके मन को लुभाता

यकायक दर्शक दीर्घा को कर इंगित
मुझे किया उसने संकेत से चिन्हित

हतप्रभ हुई चुना क्यों उसने मुझ को
मंच पर जादू में अपना साथ देने को

चकाचौन्ध मंच की शोभा बनने हेतु
अभिभूत हो खिंच गयी सहयोग हेतु

नये प्रयोग कर रोमांच जगाना चाहता था
चरम उत्कर्ष पर जादू ले जाना चाहता था

उसने देखी विलक्षण शक्ति मुझमें कोई
पर मैं थी उसके सम्मोहन में पूर्णयता खोई

विविध खेल दिखाते रहे उसके पारंगत हाथ
मैंने भी दिया यथा शक्ति उसका साथ

किन्तु उसको जो थी मुझसे अनोखी आस
साकार ना हुआ उसका वो अनूठा प्रयास

जादू का शो उसका धूमधाम से पूरा हुआ
कदाचित मुझसे वो अत्यंत निराश ही हुआ

मस्त मलंग यादें जादू भरी देकर
चला गया समेट अपना लाव लश्कर

क्या पता फिर मिलें है छोटी सी दुनिया
संग बिताये मंजर की संजोये हूँ स्मृतियां

चंद पलों का रोमांच बिसराया ना जाता है
दिनोंदिन प्रीत का रंग चटक होता जाता है

अपने संसार में मिलता रहे उसे सुखचैन
व्यतीत हो जायेंगे मेहंदी के भी दिन रैन

परन्तु एक टीस रहेगी दोनों के ही मन में
उसने क्यों चुना मुझे ही उस भरे पंडाल में......

                 मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी:  नित नए नए खेल जिंदगी हमें दिखाती है,कुछ खेल ऐसे होते हैं कि वो और उन्हें दिखाने वाले चिरविस्मरणीय बन जाते हैं.......रह रह कर साथ याद आते हैं...

6 comments:

  1. यादें जाती नहीं ... पर समय के साथ भी चलना होता है ...
    नव वर्ष मंगलमय हो ...

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  2. धन्यवाद, जी चलते हैं समय के संग एक कसक के साथ

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  3. आपको भी नववर्ष मंगलमय हो

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  4. वाह! बहुत खूब।👍👍

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  5. यादें ही साथ रहती हैं सब कुछ पिछे छूट जाता हैं
    नववर्ष मंगलमय हो

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