अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं करना चाहती मैं मुफ़्त सफ़र,
मैं तो चाहती हूँ करना रेल या बस में मुक्त सफ़र,
देखूँ खिड़की से बाहर दौड़ते हुए दिलकश नजारों को,
देखूँ किसी परिवार या बच्चे की गूंजती किलकारियों को,
ना झेलूँ,अशोभनीय घूरती निगाहें व चुभती फब्तियाँ,
ना झेलूँ,अश्लील अनचाहे स्पर्श व टोहटी कोहनियाँ,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं चाहती मैं कोई बैंक लूटना,
मैं तो चाहती हूँ बस कुछ एकांत के पल लूटना,
किसी झील किनारे या बगीचे में,कुछ पल सिर्फ अपने,
किसी कागज पर उकेरती रहूँ ,
रचनात्मक सपने,
ना झेलूँ आते जाते राहगीरों के गाने व सीटियाँ,
ना झेलूँ किसी मनचले की फड़फड़ाती अँखिया,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं चाहती,
घर के सदस्यों को सताना,
मैं तो चाहती हूँ बस,
उन्हें अपना महत्व बताना,
करूंगी स्वच्छ सुव्यवस्थित,
घर का कोना कोना,
पर मेरी अनुपस्थिति अनुभव कर, आये सबको रोना,
ना झेलूँ उनकी हर समय की टोकाटोकी को,
ना झेलूँ उनकी हर बात में रोकरोकी को,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो ही क्या पूरी हो सकती हैं ये कामनाएँ,
मैं तो चाहती हूँ बस,
युवतियां भी इंसान बन जी पायें,
उनका भी हो छोटी-छोटी खुशियों पर अधिकार
वो भी रच सकें अपना मनचाहा संसार,
ना बनूँ सुंदर,सबको भाती मूक गुड़िया प्यारी,
मैं बनूं जीवन से भरी,
सम्वेदना युक्त,आत्मविश्वासी नारी,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
मीनाक्षी मेहंदी
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