Tuesday, 31 January 2017

कमेन्ट(4)

कमेन्ट (4)
मिनी के पति ने कहा तो था जब तुम उन्हें देखोगी तो देखती रह जाओगी पर मिनी को यकीन नहीं था कि वाकई ऐसा होगा किन्तु उन्हें देख वास्तव में मिनी मंत्रमुग्ध हो गयी और जब उनकी आवाज सुनी तो मिनी की तो पूरी दुनिया ही जैसे बदल गयी। क्या कोई चेहरा कोई आवाज  इतनी कशिश उत्पन्न कर सकता है कि मिनी जैसी उदासीन लड़की भी अपने आपे में ना रहे।मिनी की उलझन दिनोदिन बढ़ती गयी "इतना समझदार पति,प्यारे प्यारे बच्चे उसके शांत सुखी जीवन में ये कैसी हलचल मच गयी'।एक उत्सव में मिलने पर मिनी ने उनकी धर्मपत्नी से पूछा मैं ठीक लग रही हूँ और लो जी वो झट से चहक उठे"आज तो आप बिलकुल बार्बी डॉल लग रही हैं"।मिनी कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करती उससे पहले ही एक पड़ोसन भाभी व्यंग्य करती बोल उठीं हांजी आज तो दो ही बार्बी डॉल हैं यहाँ एक मिनी और एक आपकी बिटिया।
    यकायक मिनी की आँखों के आगे से जैसे पर्दा हट गया-- ओहो उन्हें देख आती है पापा की याद उनकी आवाज में है कब के बिछड़ चुके पापा की आवाज की गूंज.....यही कारण है उन्हें पसंद करने का।मिनी प्रफ़ुल्लित - यदि कमेन्ट से मन की दुविधा मिट जाये तो कमेन्ट अच्छे हैं ना......

Monday, 30 January 2017

कमेन्ट (3)

कमेन्ट (3)
मार्च 1996 क्रिकेट विश्व कप
मिनी क्रिकेट में तल्लीन
विवाह पश्चात् पहला विश्व कप ,न पढ़ाई की चिंता न गृहकार्य की क्योंकि मायके आई हुई थी।मिनी की ममेरी बहन जिनका अभी हाल ही में विवाह हुआ था वो भी अपने मायके आई हुई थीं।मिनी उनसे मिलने अपने ननिहाल चली गयी।जीजी जीजाजी ने मिनी से अपने साथ चलने की मनुहार की जिसे मिनी ने यह कह नकार दिया पहली बार निर्विघ्न मैच देखने को मिल रहे हैं उसे नहीं जाना।उसी शाम सेमीफाइनल में भारत श्रीलंका की भिड़ंत,सब मनोयोग से मैच देख रहे थे अचानक तेज हवाओं के कारण भारत के एक के बाद एक विकेट गिरने लगे दर्शक विद्रोह करने लगे और मैच पूरा हुए बिना ही श्रीलंका को विजयी घोषित कर दिया गया।मिनी ने खराब मूड को सुधारने के लिए जीजी के साथ जाने के लिये हामी भर दी।पूरे रास्ते मिनी अनमनी रही उसकी जीजी जानती थीं उसकी क्रिकेट दीवानगी सो कुछ नहीं बोलीं।जीजी के कमरे में ऐश्वर्या रॉय का अति मनभावन कैलेंडर लग रहा था मिनी कितनी देर एकटक ऐश्वर्या को निहारती रह गयी।जब जीजी ने रात्रिभोजन के लिए आवाज दी तो मिनी की तंद्रा टूटी।भोजन के पश्चात जीजाजी ने आइसक्रीम के लिए चलने का प्रस्ताव रखा सब झट से तैयार।घर से निकलने से पहले जीजाजी ने मिनी से कहा आपको कुछ दिखाना है और मिनी को ऐश्वर्या की फ़ोटो के सम्मुख ले जाकर कहा इसमें लग रही है ना ऐश्वर्या बिल्कुल आप जैसी...
मिनी का मन प्रफुल्लित हो उठा।वो ऐश्वर्या जैसी नहीं ऐश्वर्या उसके जैसी वाह जीजाजी।उसके बाद जीजी के घर रहने का  मिनी ने खूब आनंद लिया।भाड़ में जाये क्रिकेट की हार जीत ,कमेन्ट तो अच्छे हैं ना....😊😊

Sunday, 29 January 2017

कमेंट (2)


जीजी की गृहविज्ञान प्रयोग परीक्षा ,घर और कॉलेज के मध्य बस एक गली।लो जी लग गयी मिनी की ड्यूटी घर से कभी ये ला कभी वो ला।उफ्फ्फ़ गली की धर्मशाला में भी आज ही बारात ठहरनी थी। लड़कों का जमघट और मिनी की घर से कॉलेज तक बार बार आने जाने की कवायद।असहज मिनी जल्दी जल्दी नपे तुले कदमों से आ जा रही थी।तभी आवाजें गूंजने लगीं "लेफ्ट राइट लेफ्ट राइट" मिनी ने एहसास किया वो घबराहट में वाक़ई क़दमताल करती चल रही है।मिनी प्रफ़ुल्लित...यदि कमेंट्स से वातावरण सहज हो जाये तो कमेंट्स अच्छे हैं ना......

Saturday, 28 January 2017

कमेंट (1)




“कमेंट्स”
मिनी दो बर्ष पश्चात भी अपने पिता की असामयिक निधन के सदमे में थी।सजना संवरना उसे पसंद ना था।धन और चाव दोनों का अभाव था।इस मनोदशा में वो अपनी मौसी की शादी में सम्मिलित हुई उसकी मौसेरी,ममेरी बहनें नवीन वस्त्र व केश विन्यास में तितली सी उङ रही थीं।मिनी अपना दो बर्ष पुराना सलवार सूट और सादी दो चोटी देख सकुचा गई।सोलह बर्ष की उम्र में सबसे सुन्दर दिखने की चाह और वो…..
मिनी का मन अवसाद ग्रस्त हो गया।तभी मिनी की मामी ने घर से पूजा का थाल लाने भेजा।घर के समीप स्थित विवाह स्थल के आधे रास्ते में एक आकर्षक नवयुवक ने मिनी के निकट बाइक रोकी और सनग्लासेस खिसकाते हुये कहा”इस सादगी पर कौन ना मर जाए”और फुर्र हो गया।थोड़ी दूर खङी बहनों को उसने कोई तवज्जो नहीं दी।मिनी के मन की उदासी उङनछू हो गयी।खुशी खुशी विवाह समारोह का आनंद लिया।आज भी उस अन्जान नवयुवक को याद कर मिनी सोचती है जैसे कभी कभी दाग अच्छे होते है ऐसे ही कमेंट्स भी अच्छे है ना…….

Friday, 27 January 2017

अनोखा यन्त्र

काश एक अनोखा यन्त्र होता
सही गलत का पैमाना बताता
कब कैसा आचरण करना है
ये अभासित कराता रहता
समय पूर्व ही गलती भांपता
हमें चेतावनी देता रहता
कब कहाँ पग धरना है
हमें बतलाता रहता
त्रुटि विहीन व्यवहार करें
ऐसी समझ देता रहता
अज्ञानता को ज्ञान बना
हमें सुख पहुँचाता रहता
समयानुकूल कैसे बनें
बोध करवाता रहता
जीवन गति श्रेष्ठ बना
विजय दिलाता रहता
मानो ऐसा अनोखा यन्त्र
कभी कहीं जो बन पाता
त्रुटिविहिन जीवन जीना
हमें सिखलाता रहता
किन्तु तब उत्सुक मन
निष्क्रिय ना हो जाता
समस्त मौलिकता त्याग
यांत्रिक ना बन जाता
सच है मानव त्रुटियों का
पुतला भले ही कहलाता
ये भी सटीक है कि मानव
त्रुटियों से ही सीखता जाता
त्रुटि ना हो कभी तो
मानव ना सुधर पाता
अपनी बुद्धि त्याग कर
यन्त्र पर निर्भर हो जाता
संग संग भावनाओं का भी
यांत्रिकीकरण हो जाता
कैसे विकसित हो पाती
संवेदना युक्त मानवता
इंसानियत का यूँ ही
लुप्तिकरन हो जाता
अंततः तर्क वितर्क से
निष्कर्ष ये निकलता
अनोखा यन्त्र बनने से
मानव तो रहता
पर इस यांत्रिकी में
अस्तित्व मिट जाता।
            मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी: ये मेरी प्रारम्भिक रचनाओं में से एक है ।यूँ ही बैठे बैठे कुछ विचार मन में आ जाते थे और कलमबद्ध कर देती थी एक ही प्रवाह में बिना कोई शुद्धि किये।

Thursday, 26 January 2017

Wednesday, 25 January 2017

वर्जित फ़ल


                            "वर्जित फ़ल"
हे सर्वशक्तिमान! क्यूँ रचते हो ऐसी माया
बनाया वर्जित फ़ल,और खाने को मना किया
आदम और इव ने वो वर्जित फ़ल चख लिया
उसको खाते ही सृष्टि का क्रम आगे बढ़ गया
हम सबको बचपन से यही सिखाया गया
कठिनाइयों में पड़ोगे यदि ये फ़ल मिल गया
बड़ों की आज्ञा को सदा शिरोधार्य किया
लुभावने फ़ल को देख कर भी लोभ ना किया
एक दिन वो वर्जित फ़ल सर पर गिर गया
हाथ में उठाने पर खाये बिना ना रहा गया
चख कर निराला स्वाद परमानन्द छा गया
गूंगे के गुड़ की भाँति किन्तु बताया ना गया
फ़ल तो खा लिया,परन्तु बीज शेष रह गया
भारी उलझन लिये मन में उसे भूमिगत किया
मिट्टी की परतों में दबा रहेगा ये सोच लिया
तीव्र बारिश जब हुई ,उसका अंकुर फूट गया
उसकी मोहक कोपलों ने मुझको लुभा लिया
मैंने उसकी धूप,पानी का ध्यान कर लिया
फूल व शूल संग पौधा बढ़ता चला गया
मेरी आसक्ति को भी नित बढ़ाता चला गया
मनभाते पौधे को चाह कर भी ना सहलाया
भयातुर रहती क्या होगा यदि फ़ल आ गया
पहचानेंगे सब वर्जित फ़ल का पौधा उग गया
कैसे रोकूंगी,उखाड़ने को कोई हाथ यदि बढ़ गया
एक स्त्री का प्रेम वर्जित फ़ल से पौधा बन गया
पता ही ना चला कब ये जीने का सहारा बन गया।
                              मीनाक्षी मेहंदी

Tuesday, 24 January 2017

बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं...


बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
मधुर शब्दों के संस्कार उकेरता कोई है
और अन्वेषण करता कोई और ही
सुंदर लिखावट से गुण भरता कोई है
भावना विश्लेषित करता कोई और ही
स्वयं ही पता लिख करता प्रेषित कोई है
और बरसते नेह से भीगता कोई और ही
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
अब ये पाने वाले की सुरुचि पे निर्भर होता है
कि वो पढ़ कर टुकड़े टुकड़े कर फेंक दे
या यूँ ही रख दे रद्दी कागजों के ढेर में
या सहेज कर भूल जाये बरसों बरस तक
या पढ़े बारम्बार ख़ुशी,लगाव और चाव से
और पाता रहे सतत ऊर्जा निहित भाव से
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
कोई यदि पढ़ना चाहे स्वयं लिखी पाती
तो लेनी होगी अनुमति उसे पाने वाले से
अमानत बन जाती वो अन्य की सदा के लिये
अपना लेती पराये घर संसार को सदा के लिये
विस्मिय होता कि अपनी ही रचना किस कौशल से
सीचतीं एक देश की वाष्प से दूसरे देश की मिट्टी
बेटियाँ तो चिठ्ठी होती हैं
लिखता कोई है बाँचता कोई और ही
                            मीनाक्षी मेहंदी

Saturday, 21 January 2017

" अदृश्य यदि मैं हो जाती"


अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं करना चाहती मैं मुफ़्त सफ़र,
मैं तो चाहती हूँ करना रेल या बस में मुक्त सफ़र,
देखूँ खिड़की से बाहर दौड़ते हुए दिलकश नजारों को,
देखूँ किसी परिवार या बच्चे की गूंजती किलकारियों को,
ना झेलूँ,अशोभनीय घूरती निगाहें व चुभती फब्तियाँ,
ना झेलूँ,अश्लील अनचाहे स्पर्श व टोहटी कोहनियाँ,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं चाहती मैं कोई बैंक लूटना,
मैं तो चाहती हूँ बस कुछ एकांत के पल लूटना,
किसी झील किनारे या बगीचे में,कुछ पल सिर्फ अपने,
किसी कागज पर उकेरती रहूँ ,
रचनात्मक सपने,
ना झेलूँ आते जाते राहगीरों के गाने व सीटियाँ,
ना झेलूँ किसी मनचले की फड़फड़ाती अँखिया,
 अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो नहीं चाहती,
घर के सदस्यों को सताना,
मैं तो चाहती हूँ बस,
उन्हें अपना महत्व बताना,
करूंगी स्वच्छ सुव्यवस्थित,
घर का कोना कोना,
पर मेरी अनुपस्थिति अनुभव कर, आये सबको रोना,
ना झेलूँ उनकी हर समय की टोकाटोकी को,
ना झेलूँ उनकी हर बात में रोकरोकी को,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
अदृश्य हो ही क्या पूरी हो सकती हैं ये कामनाएँ,
मैं तो चाहती हूँ बस,
युवतियां भी इंसान बन जी पायें,
उनका भी हो छोटी-छोटी खुशियों पर अधिकार
वो भी रच सकें अपना मनचाहा संसार,
ना बनूँ सुंदर,सबको भाती मूक गुड़िया प्यारी,
मैं बनूं जीवन से भरी,
सम्वेदना युक्त,आत्मविश्वासी नारी,
अदृश्य यदि मैं हो जाती,
सोचो क्या क्या कर पाती,
अपनी छोटी छोटी खुशियां,
कैसे मैं परवान चढ़ाती....
               मीनाक्षी मेहंदी

Wednesday, 18 January 2017

इश्क़- किसके जैसे हो तुम....?


इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि रंग हो तो चटक क्यूँ होते जाते हो तुम
यदि नूर हो तो फीके क्यूँ नही पड़ते हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि दवा हो तो दर्देदिल बढ़ाते क्यूँ रहते हो तुम
यदि नशा हो तो खुमार उतरने क्यूँ नहीं देते तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि शहद हो तो कड़वाहट क्यूँ  देते हो तुम
यदि जहर हो तो तुरंत मार क्यूँ नहीं देते हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि मुक्त गगन हो तो प्रगाढ़ बन्धन बांधते क्यूँ हो तुम
यदि सम्बन्ध हो तो उन्मुक्त उड़ने क्यूँ नहीं देते हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि कच्चे धागे हो तो मज़बूती से क्यूँ जकड़ते हो तुम
यदि दो लोगों के मध्य डोरी हो तो टूटते क्यूँ नहीं हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि राख़ हो तो अंगारे व शोले भड़काते क्यूँ हो तुम
यदि आग हो तो जला कर ख़ाक क्यूँ नहीं करते हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

यदि निकम्मे हो तो पहाड़ में राह क्यूँ बनवा देते हो तुम
यदि कमीने हो तो मेरे प्यारे बुरे क्यूँ नहीं लगते हो तुम

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?

इश्क़ कौन हो,क्या हो,कैसे हो समझा दो आकर तुम
इश्क़ मेरी समझ में सारी उपमाओं से परे हो तुम.....

इश्क़ तुम्हें क्या लिखूं,कैसे हो,कौन हो तुम?
किस उपमा से तुलना करूँ,किसके जैसे हो तुम?
                        
                           मीनाक्षी मेहंदी

Monday, 16 January 2017

अप्सरा


                         "अप्सरा"

अप्सरा अधिकारिणी नहीं होती निज अरमानों के लिये
निर्मित किया गया है  उसे केवल भोग विलास के लिये

भेजा जाता है कभी किसी की तपस्या भंग करने के लिये
प्रयुक्त होती हैं इंद्रसभा में गान नृत्य व मनोरन्जन के लिये
साधन बनती हैं विष अमृत के बंटवारें में छल कपट के लिये

अप्सरा अधिकारिणी नहीं होती निज अरमानों के लिये
निर्मित किया गया है  उसे केवल भोग विलास के लिये

कोटि कोटि गुणवंती हों या हों ब्रह्मांड में सर्वाधिक रूप लिये
त्याग जाना ही होता है दूधमुहें बालक को ह्रदय भारी लिये
अपना नहीं सकतीं गर उपज जाये प्रेम हठी तपी के लिये

अप्सरा अधिकारिणी नहीं होती निज अरमानों के लिये
निर्मित किया गया है  उसे केवल भोग विलास के लिये

पूर्ण कर कार्य लौट कर जाना ही होता है पुनः स्वर्ग के लिये
प्यार,ममता,संवेदना,पवित्रता मात्र शब्द होते हैं उसके लिये
उसका सम्पूर्ण औचित्य है देवताओं के हित साधने के लिये

अप्सरा अधिकारिणी नहीं होती निज अरमानों के लिये
निर्मित किया गया है  उसे केवल भोग विलास के लिये

देव अपना वर्चस्व व सुरक्षा को सदा कायम रखने के लिये
यदा कदा भेज देते हैं धरा पर ,मानव को भटकाने के लिये
प्रारब्ध यही है उनका,यही लेखा नियत हुआ है उनके लिये

अप्सरा अधिकारिणी नहीं होती निज अरमानों के लिये
निर्मित किया गया है  उसे केवल भोग विलास के लिये
         
                                    मीनाक्षी मेहंदी

Sunday, 15 January 2017

सकट चतुर्थी की सभी को शुभकामनाएं


संतान की कुशलता की कामना व लंबी आयु हेतु भगवान गणेश और माता पार्वती की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए, व्रत का आरंभ तारों की छांव में करना चाहिए व्रतधारी को पूरा दिन अन्न, जल ग्रहण किए बिना मंदिरों में पूजा अर्चना करनी चाहिए और बच्चों की दीर्घायु के लिए कामना करनी चाहिए. इसके बाद संध्या समय पूजा की तैयारी के लिए गुड़, तिल, गन्ने और मूली को उपयोग करना चाहिए. व्रत में यह सामग्री विशेष महत्व रखती है, देर शाम चंद्रोदय के समय व्रतधारी को तिल, गुड़ आदि का अ‌र्घ्य देकर भगवान चंद्र देव से व्रत की सफलता की कामना करनी चाहिए.
माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत लोक प्रचलित भाषा में इसे सकट चौथ कहा जाता है. इस दिन संकट हरण गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन किया जाता है, यह व्रत संकटों तथा दुखों को दूर करने वाला तथा सभी इच्छाएं व मनोकामनाएं पूरी करने वाला है. इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं गणेशजी की पूजा की जाती है और कथा सुनने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर ही व्रत खोला जाता है.

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1988=2016
आये थे सहारनपुर से मुरादाबाद तक का सफ़र करके मुझे bday surprise देने
सर्दी सहन नहीं होती थी उनसे ,पर रात का सफर कर शायद पैसेंजर ट्रेन में ही ,खड़े थे मेरे सामने जन्मदिन पर सुबह ही ,
मैं भोली सी सीने से लग गयी उनके और कहा आज मेरा जन्मदिन है
वो हँस दिये इसीलिये तो आया हूँ क्या उपहार चाहिए
मुझे तो सारे जहान की खुशियाँ मिल गयी थीं, उनके आने से भला और क्या चाहिये था।
पर उन्होंने मुझे नये कपड़े दिलाये केक ऑर्डर किया मेरी मित्रों को बुलाया ननिहाल में तो मैं रह ही रही थी तो सब हमउम्र बहनें,भाइयों,मामा और मामियों के साथ
खूब बढ़िया bday celebration हुआ।
बहुत खुश थी मैं पहली बार मेरा जन्मदिन इतनी धूमधाम से मना था
 तब क्या पता था अपने पापा के साथ ये मेरा अन्तिम जन्मदिन होगा 
किसी के जाने से समयचक्र रुकता है क्या,साल आते रहे साल जाते रहे जन्मदिन मनाती रही पर कुछ कमी के साथ आँखों में नमी के साथ
"12 साल बाद घूरे के भी दिन फिरते हैं" पर भगवान ने मिलाया एक मित्र से 18 साल बाद जिन्हें देखती हूँ जब भी कौंध जाती है आँखों में पापा की छवि,हालाँकि याद नहीं अब कैसी थी पापा की आवाज़ पर उनकी आवाज में अनुभव होती है पापा की आवाज़ की गूँज
पिछले साल जन्मदिवस पर अपने जन्मसमय पर उनके सामने उनके साथ चाय पी रही थी मीठे से उलाहने के बाद कि सुबह से शुभकामनाएं भी नही दी गयीं
इस साल प्रतीक्षा कर रही थी शुभकामनाएं आएंगी उनकी तो लगेगा मिल गया पापा का आर्शीवाद
रात के 12 बजे से ही परिजनों और मित्रों की शुभकामनाएं आनी शुरू हो गयीं 
मन में एक इच्छा ये भी थी कि कोई कुछ पंक्तियों के साथ शुभकामनाएं दे 
दोपहर के 12 बज गये बार बार संदेश देख रही थी कि उनका संदेश भी हो पर नहीं 
कई मित्रों के संदेश आ रहे पर बिना किन्हीं पंक्तियों के
बस आखिर बार inbox देख लूं फिर नही देखूंगी शाम तक और उनका सन्देश था कविता के रूप में शुभकामनाओं के साथ
ख़ुशी से आँखें छलछलना क्या होता है ये भी मालूम हो गया मैं ये बात उन्हें व्यक्तिगत भी भेज सकती थी पर आप सब को भी अपनी ख़ुशी में शामिल करना चाहती थी आख़िर कल खूब सारी खुशियाँ आप सब से भी तो मिली हैं 
प्रभु से यही कामना है कि आप सब के जीवन में सभी खुशियां आयें और कई जन्मदिवस हम सब साथ में मनाते रहें।
"सबका जीवन मंगलमय हो"

Saturday, 14 January 2017



मकर संक्रांति के पर्व पर देशवासियों को हार्दिक बधाई। भारतीय परंपरा में मकर सक्रांति का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य, धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण में आता है और इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। आप सभी इस पर्व को पूर्ण हर्ष उल्लास और श्रद्धा से मनाएं।हमारे कृषि प्रधान देश में नई फसल आने की ख़ुशी मनाई जाती है जो बन जाता है उत्सव आनन्द का।देश के विभिन्न भागों में मकर संक्रान्ति को अलग अलग नाम से मनाते हैं, उद्देश्य एक ही है नई फसल आने और ऋतु परिवर्तन की खुशियां मनाना।पोंगल,लोहड़ी बिहू,घुघूती व संक्रान्त आदि नामों से ये पर्व मनाया जाता है।दान पुण्य करके समाज के सभी वर्गों को खुशियों में शामिल किया जाता है।गौ का हमारी कृषि व संस्कृति में अहम स्थान है अतः भिन्न भिन्न रूपों में गाय की पूजा अर्चना भी की जाती है।पतंगबाजी भी इस त्यौहार की शान है किंतु चायनीज मांझे का बहिष्कार करते हुए और पतंग लूटने में होने वाली दुर्घटनायों से सावधानी बरतते हुए इस त्यौहार का आनन्द उठाइये।सभी को इस पर्व की अनेक बधाइयाँ।

Friday, 13 January 2017

मनोरम जीवन


"मनोरम जीवन"
आते हैं इस जगत में हम आँखे मूंदे
नन्हीं किलकारियों से घर आंगन गूंजे
सबकी भुजाएं हमें थामती आलिंगन भर भर
सारी निगाहें हमे निहारतीं प्रेमिल दृष्टि सरस
हम देखते विस्मयी आँखों से टुकुर टुकुर
अपने अबोध चेहरे को बिगाड़ते पल पल
जग में आते ही अनुभव होने लगतीं सभी त्रासदी
भूख,सर्द,गर्म आदि की अनुभूति जागती
पर ये जीवन इतना अधिक मनोरम है कि
इसके लिए सह सकते हैं हम सब कुछ
जो कुछ भी सुंदर सुखद रसमय है
सब क्रय कर सकते हैं इस जीवन हेतु
प्रेम,संगीत,झरने,सुगन्ध व पावन विचार
कुछ समेट लिया जाये कुछ चुकाया जाये
संघर्ष के पलों के पश्चात ली जाये एक
गहरी परमानन्द से भरी उच्छ श्वास
जो भी हम पाना या सहेजना चाहते हैं
सौंप देना चाहिये इस जगत को वो ही
लौट कर आ जायेगा वो सब ही हमारे पास
लौट कर आता है वही सब हमारे पास....
                     मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: जो भी हम इस दुनिया को देते हैं वही हमें वापस मिलता है यही प्रकृति का नियम है।
" बोय पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय"

Tuesday, 10 January 2017

गणित- प्यार व स्वीकृति का

एक धारणा बहुप्रचलित है कि अरेंज मैरिज अधिक सफल होती हैं लव मैरिज के बनस्वित.......
   ऐसा क्यों है? जो रिश्ता प्रेम से बना है वो अधिक सफल होना चाहिये..उनका जीवन सुखी एवं सुचारू चलना चाहिये किन्तु सर्वाधिक विसंगतियाँ लव मैरिज में ही क्यों उजागर होती हैं?
       सर्वप्रथम अरेंज मैरिज व लव मैरिज के हिंदी शब्द प्रयुक्त करते हैं।लव मैरिज का तो अर्थ है "प्रेम विवाह"
 अरेंज मैरिज के लिये व्यवस्था विवाह या तयशुदा विवाह शब्द अटपटे लग रहे हैं।मेरे अनुसार "स्वीकृत विवाह" शब्द अधिक उपयुक्त रहेगा।
  प्रेम विवाह जैसा कि नाम से स्पष्ट है,दो लोगों ने एक दूजे को पसंद किया,प्रेम का अहसास किया तथा विवाह कर लिया।
 स्वीकृत विवाह का गणित अलग है,इसकी समीकरण बनाने में माता पिता का अहम योगदान होता है।वो सामाजिक मान्यताओं तथा अपनी पृष्ठभूमि अनुसार वर/ वधू का चयन करते हैं और उनकी संतान भी आज्ञा शिरोधार्य करके उन्हें जीवनसाथी बनाने हेतु स्वीकार करती हैं।सभी के द्वारा स्वीकार किया गया ये विवाह मेरी दृष्टि में स्वीकृत विवाह कहना ही उचित है।
  बस इस प्यार और स्वीकार के गणित में ही सफल व असफल विवाह का सूत्र छिपा हुआ है।
  दोनों ही तरह के विवाह असफल होने के पारिवारिक,सामाजिक व आर्थिक पहलू हो सकते हैं।स्वीकृत विवाह में माता पिता एवं अन्य परिचित साथ देते हैं किंतु प्रेम विवाह कदाचित स्वीकार करते हुये भी माता पिता का रवैया उदासीनता लिये हुये ही होता है।माता पिता की भूमिका का भी सफल/असफल वैवाहिक जीवन में अहम योगदान होता है।
 मेरी विवेचना है कि प्यार धन आवेशित होता है तथा स्वीकार ऋण आवेशित जो मिलकर निम्न समीकरण बनाता है।

         +प्यार+प्यार = + प्रेमविवाह

दोनों पक्ष जब एक दूसरे से प्यार करते हैं,विशुद्ध प्रेम जिसमे पाना या खोना मायने नहीं रखता।अगर वियुक्त होना पड़ता है तो वियोग में जान देकर अमर प्रेम कहानियों के कालजयी पात्र बन जाते हैं।यदि जीवित रहे तो किसी अन्य के साथ जीवन बिताते हुये भी अपना प्यार जीवन पर्यंत ह्रदय में दबाये रहते हैं।यदि इन प्रेमी युगल का विवाह हो जाये तो अत्यंत सफल रहता है,मिसाल योग्य हो जाता है।

       -स्वीकार  - स्वीकार = + स्वीकृत विवाह

इस विवाह में माता पिता द्वारा तय किया हुआ साथी दोनों पक्ष स्वीकार करते हैं जो है जैसा भी है। संग रहते रहते दोनों को एक दूजे की आदत हो जाती है।कभी कभी दोनों में प्यार भी हो जाता है अन्यथा पारिवारिक या सामाजिक बन्धन ना तोड़ पाने की विवशता अथवा बच्चों के सुखद भविष्य व ख़ुशी को ध्यान में रखते हुए अधिक अपेक्षा रखे बिना अपना भाग्य समझ जीवन पर्यन्त साथ रहते हैं।ये खुशहाल विवाह ही किवदंती बन जाते हैं कि स्वीकृत विवाह अधिक सफल होते हैं।

         +प्यार -स्वीकार = - प्रेम विवाह

एक को दूसरे से प्यार हो जाता है तथा दूसरा ये सोच अभिभूत हो जाता है कि कोई मुझे इतना चाहता है।एक प्यार का इजहार करता है एवं दूसरा उसे ही सपनों का राजकुमार/ सपनों की रानी समझ परिणय प्रस्ताव स्वीकार कर लेता है।ये युगल जब कल्पना जगत से निकल यथार्थ से टकराते हैं तो उनकी अपेक्षाएं टकराव बन जाती हैं।प्यार करने वाला दुनियादारी में उलझने लगता है तो स्वीकार करने वाला ताने उलाहने देने लगता है कि अब तुम बदल गए हो पहले जैसा प्यार नहीं करते और प्यार करने वाले को लगता है मुझे प्यार के बदले प्यार नहीं मिल रहा।  धीरे धीरे ये एक पक्षीय प्यार लुप्त होने लगता है।ये विवाह शीघ्र ही समाप्त हो जाते हैं अथवा शिकवे शिकायतों के साथ विवाह कायम तो रहता है किंतु विशुद्ध प्यार कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है।ऐसे युगल को देख कर ही लगता है कि प्रेम विवाह सफल नहीं होते।
      प्यार तो प्यार ही होता है विवाह सफल हो या ना हो प्यार तो सदा ही रहता है,अपेक्षाओं का बोझ प्यार को भले ही दबा दे पर प्यार तो अक्षुण्ण बना ही रहता है।

Friday, 6 January 2017

शैलबाला


"शैलबाला"

  हे सागर लहरों !

कहाँ लुप्त हो गयी वो शैलबाला
बैठी रहती थी लिये रूप निराला

ज्ञात नहीं होता था प्रतिमा जैसी है चट्टान
या लड़की ही बन गयी है एक चट्टान

खोई खोई लगती थी जगत से निर्लप्त
तुम्हें देख नेत्रों में होते थे दीप प्रज्वलित

पूछा क्या करती हो निर्जन में हे रमणी?
दिखाये कर में दबे चंद शंख,सीप व मणि

नहीं सौंप पाती इन्हें कुछ भी, हैं मेरे कर रीते
किन्तु ये बिन मांगे दें देतीं मुझे जीवंत सौगातें

जी चाहे इन लहरों में सदा के लिये समा जाऊँ
पुनश्चहः जग में चाहे लौट कर ना आ पाऊँ

बतलाओ तो कहाँ चली गयी वो शैल बाला
जिसका पर्याय लगती थी ये पाषाण शिला

कहीं सच में हुई तो नहीं समुद्र में समाहित
उमड़ते घुमड़ते उफनते वेग से हो विचलित

या तुमने किया हो ज्वार युक्त जल में विलुप्त
डूब गयी हो अनजानी प्यास को करने तृप्त

खारे सागर सुलझाओ मेरी ये उत्सुक जिज्ञासा
निगल लिया उसे क्या बुझाने अपनी पिपासा

हे सागर लहरों! मन में उठती है चाह यही
पुनः दिखे वो रमणी विचरती हुयी यहीं

उन्मुक्त हो तुम्हारे संग खेलती तथा तैरती हुई
ना की किसी चट्टान से एकरूप होती हुई

हे सागर लहरों! करना कुछ ऐसी चपलता
अब मिले तो भिगो उसे दे देना अपनी चंचलता।
             
                 मीनाक्षी मेहंदी

Tuesday, 3 January 2017

रचना वही- रूप नया


"मिलूंगा तो हूँ ही मैं तुमसे"

मिलूंगा तो हूँ ही मैं तुमसे
इस जन्म नही तो अगली बार
नही जानता कब किस रूप में
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

ग्रीष्म की तप्त ऋतु में
प्रकट हूंगा जल स्रोत बन
तुम्हारी तृषा समेटने को
या शीतल छाया बन छाऊँगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

क्या पता बन जाऊँ कोई वृक्ष
तुम्हारी पसन्द अमलतास सा
या निहारो दृष्टि भर वो गुलाब
तुम्हारे आंगन में बन जाऊंगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

कभी बिन बुलाए ही बनूँगा गुनगुनी धूप सर्द मौसम की
गर्माहट भरा विश्राम देकर
झमेले तुम्हारे सभी भूलाऊंगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

ओढ़ा दूँगा मेघों का आवरण
बदली बन तुम्हें भिगो जाऊंगा
खिल जाऊंगा इंद्रधनुष बनके
बिखर कर भी रंग दिखाऊंगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

यदि हो प्रकृति की अनुकम्पा
तो सहचर बन मिल जाऊंगा
अर्पण और समर्पण से प्रीत अपनी सदियों तक निभाऊंगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे

वादा रहा मिलूंगा अवश्य
कुछ पल या सदा के लिये
मूर्त या अमूर्त किसी भी
रूप में तुम्हारे पास आऊंगा
किन्तु तुम पहचान लेना मुझे...

टिप्पणी: मेरी एक रचना का male version मेरे एक मित्र द्वारा....☺☺

Monday, 2 January 2017

जादूगर


जादूगर

एक जादूगर शहर में हुआ प्रविष्ठ
निराला जादुई पिटारा लाया विशिष्ठ

सूने सूने नीरस दिनों की बयार
भंग करता लाया रस की फुहार

ख़ुशी चाव से देखने गयी खेला
 उमड़ा था जनजनार्दन का रेला

भाँति भाँति के कौशल दिखाता
जादूगर था सबके मन को लुभाता

यकायक दर्शक दीर्घा को कर इंगित
मुझे किया उसने संकेत से चिन्हित

हतप्रभ हुई चुना क्यों उसने मुझ को
मंच पर जादू में अपना साथ देने को

चकाचौन्ध मंच की शोभा बनने हेतु
अभिभूत हो खिंच गयी सहयोग हेतु

नये प्रयोग कर रोमांच जगाना चाहता था
चरम उत्कर्ष पर जादू ले जाना चाहता था

उसने देखी विलक्षण शक्ति मुझमें कोई
पर मैं थी उसके सम्मोहन में पूर्णयता खोई

विविध खेल दिखाते रहे उसके पारंगत हाथ
मैंने भी दिया यथा शक्ति उसका साथ

किन्तु उसको जो थी मुझसे अनोखी आस
साकार ना हुआ उसका वो अनूठा प्रयास

जादू का शो उसका धूमधाम से पूरा हुआ
कदाचित मुझसे वो अत्यंत निराश ही हुआ

मस्त मलंग यादें जादू भरी देकर
चला गया समेट अपना लाव लश्कर

क्या पता फिर मिलें है छोटी सी दुनिया
संग बिताये मंजर की संजोये हूँ स्मृतियां

चंद पलों का रोमांच बिसराया ना जाता है
दिनोंदिन प्रीत का रंग चटक होता जाता है

अपने संसार में मिलता रहे उसे सुखचैन
व्यतीत हो जायेंगे मेहंदी के भी दिन रैन

परन्तु एक टीस रहेगी दोनों के ही मन में
उसने क्यों चुना मुझे ही उस भरे पंडाल में......

                 मीनाक्षी मेहंदी

टिप्पणी:  नित नए नए खेल जिंदगी हमें दिखाती है,कुछ खेल ऐसे होते हैं कि वो और उन्हें दिखाने वाले चिरविस्मरणीय बन जाते हैं.......रह रह कर साथ याद आते हैं...

Sunday, 1 January 2017

नया साल - क्या वाकई नया???


नए साल की संध्या कुछ नया नही लाई
वही सर्द मौसम उसमें लिपटी तन्हाई
फिर वही सुरमई शाम घिर आई
ऐसे में फिर तेरी याद ने ली है अंगड़ाई.....
                       Mm

नववर्ष का स्वागत है


नववर्ष का स्वागत है,सभी को सुख व समृद्धि मिले यही कामना है।
 माना कि इस नववर्ष में कुछ नहीं बदलता सिवाय कैलेंडर के पर मन हो रहा है एक नज़र घूमा ली जाये बीते वर्ष क्या खोया क्या पाया।जनवरी से दिसम्बर तक अनेक उतार चढ़ाव आये हर वर्ष की भांति ही उसमें क्या नया है जो विश्लेषण करने बैठी हूँ । नया तो हुआ....मिला एक प्रिय का साथ जिसके साथ छोटी बड़ी सभी बातें साँझा करने लगी उसके लिये एक प्रसिद्ध फ़िल्मी संवाद की पैरोडी कह सकती हूँ" मैं जो बोलती/लिखती हूँ वो समझता है,जो मैं नहीं बोलती/लिखती उसे वो डेफिनेटली समझता है।किसी नारी के अन्तर्मन को समझ सका है क्या कोई .....????
  किन्तु ऐसा कोई मिले तो सुखद अहसास होने लाज़मी है मुझे भी उसका सानिध्य भाने लगा और उसे मेरी बकबक ,जब हम परिचय के दौर में ही थे तभी मुझे मातृ शोक की पीड़ा को सहना पड़ा तब उसके सन्देश व बातचीत मुझे राहत देती रही कि माँ नहीं रही किन्तु कोई तो है इस जगत में जो मुझे समझता है इस दुःखद क्षण में मेरे साथ है।उसने बहुत मदद की मेरी अपनी माँ के विछोह को स्वीकारने में....होई वही जो राम रची राखा...!!!
  दिन,सप्ताह व महीनों के साथ हमारी बातचीत बढ़ने लगी और हमारा स्नेह सम्बन्ध भी ।दिन में जब तक एक दूसरे से बकवास ना कर लें मुझे चैन नहीं पड़ता था (शायद उसे भी) ऐसा मुझे लगता था क्योंकि वो अपनी भावनायें नहीं बताता था और मैं उसकी तरह अंतरयामी नहीं जो बिन बताये उसे समझ जाऊँ।किन्तु फिर भी कुछ कुछ तो समझ आता ही है और मैं समझने लगी कुछ कुछ उसे भी ...पता नहीं कितना सही कितना गलत।वो मेरे लिए ख़ास है क्योंकि वो मुझे महसूस कराता है कि मैं कितनी ख़ास हूँ मेरा भी कोई अस्तित्व है,वो मैं जैसी हूँ वैसी ही स्वीकार करता है पर वो मुझे तराशना भी चाहता है और इसके लिए मुझे प्रेरित भी करता है उसने मेरी निराशा के दिनों में मुझको आत्मविश्वास की पूंजी प्रदान की है ,वो मुझे हर विषम परिस्थिति में हँसा देता है,उसका एक संदेश मुझे पूरे दिन ऊर्जा से  लबालब भर देता है पर मैं शुक्रगुजार होकर कम नहीं करना चाहती अपनी मित्रता की चमक को।लिखने को तो बहुत कुछ है पर उसी के शब्दों में कहूँ तो कई क्षण ऐसे होते हैं जिसकी अभिव्यक्ति सम्भव नहीं ,और वैसे भी जो मैंने लिखा है वो समझ गया होगा ,जो नहीं लिखा है उसे डेफिनेटली समझ गया होगा.....☺☺...!  सन् 2016 खुश हूँ कि तुमने मुझे ऐसा प्रिय मित्र दिया जो सदैव मेरी स्मृतियों में रहेगा यदि रब ने चाहा तो उसका साथ इस वर्ष भी बना रहेगा ।मेरी तो ईश्वर से यही गुजारिश है कि मेरी उसकी मित्रता चिरकाल क़ायम रहे।शेष जो विधान का लेखाजोखा क्योंकि..."होई वही जो राम रची राखा"


टिप्पणी: If old friends are gold....... then new ones are definitely diamonds...........