Thursday, 6 October 2016

जाने कहाँ गए वो दिन जब मम्मी कहती थीं आज दुनिया का आठवाँ अजूबा हुआ है,पोस्टमैन आया और मीनाक्षी के नाम का पत्र लेकर नहीं आया...

टिप्पणी: पत्रों का जादू कुछ अलग ही होता था,तब ना हर हाथ में फ़ोन होता था ना तुरत फुरत सन्देश भेजने की प्रक्रिया।हालांकि नयी तकनीकों की सुविधा अलग ही है दूरियां का एहसास पल में छूमन्तर हो जाता है ,अपने प्रियजनों की जब चाहो तब देख लो,उनकी पल पल की ख़बर ,उनके सन्देश,उनका चेहरा सब ....
लेकिन पत्रों का संसार अलग ही था सबसे पहले भेजने के बाद पता नही मिला होगा या नही कब पहुचेगा फिर ज़बाब आने का इंतजार,जबाब आने बाद जल्दी से पढ़ कर पुनः उत्तर देने की शीघ्रता।जब मन करे उन सहेज कर रखे गये पत्रों को पुनः पुनः पढ़ना।जो बहुत दूर चले गए हैं उनके आशीर्वाद और प्रेम को उनकी हस्तलिपि के संग महसूस करना ये अलग ही अहसास होता है।कई पत्र एक साथ आने पर हस्तलिपि से अंदाज लगाना कि कौन सा पत्र किसका है? सबसे पहले किसे पढ़ें और सबसे बाद में किसे......
 वो मधुर अहसास वो ही समझ सकता है जिसने उन पलों को जिया होगा,आज की दुनिया भी बहुत सुखद हे इसी के द्वारा तो अपने मन के विचार आप सबके सामने प्रस्तुत कर पा रही हूँ।
 परन्तु कभी कभी बेहद याद आते हैं वो बीते हुए पल और वो पत्रों का हसीं संसार।

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