Sunday, 23 October 2016

अहोई अष्टमी पर विशेष

अहोई अष्टमी सन्तान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत।माँ बनने से किसी भी नारी को लगता है वो पूर्ण हो गयी,पर क्या माँ बनना ही जीवन का परम् लक्ष्य है,यदि कोई नारी किसी कारणवश माँ नही बन पाती तो उसे शुभ कार्यों से दूर रखना और कदम कदम पर तिरस्कृत करना उचित है।क्या केवल माँ बनना ही उसके नारीत्व का परिचायक है,उसके अंदर जो सुभार्या और संस्कारी बहू के लक्षण विधमान हैं उनका कोई मोल नहीं यदि वो माँ नहीं बन पाती है तो...
यदि कोई दिव्यांग है तो उसकी कमी को पुनः पुनः इंगित ना किया जाये यही सिखाया जाता है हमें बचपन से,तब ये शिक्षा देने वाली नारी स्वयं की गृहलक्ष्मी को क्यों औरों की निगाह में गिराती है बार बार एक कमी को सुना सुना कर।हो सकता है उसमें कोई कमी ना हो और वो तुम्हारे घर की इज़्ज़त ही बचा रही हो सब चुपचाप सुन और सहन करके ,उसकी इस भावना को ही समझ लो ।उस पर तुर्रा ये कि बाहर वालों से कहा जाता है हम तो कुछ नही कहते और कोई सास नन्द होती तो हर समय ताने ही मारती रहतीं,अरे और क्या ताने होते हैं...
हर नारी के अंदर स्वाभाविक रूप से ममता होती है वो अपने नारीत्व की पूर्णता चाहती है अतः वो तो वैसे ही दुःखी है उसे और कौंच कौंच कर उसकी पीढा बड़ा कर तुम क्यों अपना सम्मान खोते हो उसकी नज़रों में।
  एक लड़की जो अपना सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे घर को अपना घर समझ हिलमिल रहने आयी है,उसे खुद ही दूर कर रहे हो वो भी तिरस्कृत करके..
    ये कैसा दस्तूर है,कैसी इंसानियत है।
   कम से कम इंसानियत के नाते ही उसकी पीढ़ा को समझो और अच्छा व्यवहार करो ,अपना बड़प्पन बनाये रखो और संजोये रखो रिश्तों की गरिमा को,जिससे कल को यदि उपचार से उसकी" व्याधि" दूर हो जाये तो फिर वो अपने हृदय से आपसे दूर ना हो जाये।कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता यदि कोई नारी भी पूर्ण नहीं है तो उसे स्वीकार करो ....यही रिश्तों को बचाने का सही तरीका है।
    अहोई अष्टमी की शुभकामनाएं सभी मातृ शक्ति को बन्दन और जो इस सौभाग्य से वंचित हैं अहोई माता कथा की नायिका की तरह उसकी भी कोख़ खोलें...यही सुभेच्छा है।

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