प्रथम दृष्टि प्रेम
जब तुम पर पड़ी प्रथम द्रष्टि
कैसे बताऊँ दशा अपनी
मुग्ध हो निहारती रह गयी
बिसरा गयी सुध बुध अपनी
साँस सुलगने लगी
जागृत हुई प्रेमकामना अपनी
मस्तिष्क पर नियंत्रण न रहा
तीव्रतर हुई धड़कन अपनी
निहारती रहूँ तुम्हे यूँ ही
बनी यही चाह अपनी
हृदय उद्देलित हुआ प्रथम ही
प्रथम ही जगी इच्छाएं अपनी
सभी गीत और ग़जल लगे यूँ
लिखे गए हालत पर अपनी
प्रथम दॄष्टि प्रेम समझ गयी
समर्पित हुई तुम्हें न रही अपनी l
मीनाक्षी मेहंदी
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: प्रेम को जितने भी शब्दों और कल्पनाओं से अच्छादित करने का प्रयत्न किया जाये ,यह पूर्ण नहीं हो पाता है,जो इसके अहसास की स्निग्ध छाया का रसपान करता है ,वही इसकी विशालता को समझ सकता है।
वाह अतिसुन्दर......
ReplyDeleteवाह अतिसुन्दर......
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