क्या महत्व है धनतेरस का
***** २८ अक्टूबर २०१६ ** जिस प्रकार देवी लक्ष्मी
सागर मंथन से उत्पन्न
हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत
कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी
लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी
कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और
लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली
दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही
दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन
ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि
को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी
जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा
कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर
प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने
की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के
अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन
(वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस
अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर
में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग
अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है।
अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे
यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का
प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में
संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को
सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है
वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।
भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं
उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए
संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस
दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की
पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
प्रथा
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और
आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के
पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी
समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव
कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |
ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई
तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन
होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को
प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत
दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज
दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े।
दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी
और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और
उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने
आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस
राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत
राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त
नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर
उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के
अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज
को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक
ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई
ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से
मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से
यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति
है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें
बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की
त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके
दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है
उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण
है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा
की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और
चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए
चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही
महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक
कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से
पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते
समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता
क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि
वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा
का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन
का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक
बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते
समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप
सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि
के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर
सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न
किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है
क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा
कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर
दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी
अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के
अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता
के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम
देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि
की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और
सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का
कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का
सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें
दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी
लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
सभी को धनतेरस की अनन्त शुभकामनाएं
***** २८ अक्टूबर २०१६ ** जिस प्रकार देवी लक्ष्मी
सागर मंथन से उत्पन्न
हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत
कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी
लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी
कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ्य और
लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली
दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही
दीपामालाएं सजने लगती हें।
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन
ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि
को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी
जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा
कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर
प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने
की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के
अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन
(वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस
अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर
में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग
अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है।
अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे। इसके पीछे
यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का
प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में
संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को
सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है
वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।
भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं
उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए
संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस
दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की
पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
प्रथा
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और
आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के
पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी
समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव
कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |
ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई
तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन
होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को
प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत
दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज
दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े।
दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी
और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और
उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने
आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस
राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत
राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त
नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर
उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के
अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज
को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक
ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई
ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से
मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से
यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति
है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें
बताता हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की
त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके
दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है
उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण
है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा
की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
धन्वंतरि
धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और
चिकित्सा के देवता माने जाते हैं इसलिए
चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही
महत्व पूर्ण होता है। धनतेरस के संदर्भ में एक लोक
कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से
पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते
समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता
क्या। दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि
वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा
का पालन करते हें परंतु जब यमदेवता ने दूतों के मन
का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक
बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते
समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप
सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया लेकिन विधि
के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर
सके।
एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न
किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है
क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा
कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर
दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी
अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के
अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता
के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम
देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि
की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और
सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का
कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का
सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें
दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी
लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
सभी को धनतेरस की अनन्त शुभकामनाएं
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