Wednesday, 26 October 2016

सलोनी की कहानी (3)- चूहादौड़ बनाम न.1 की हौड़



चूहा दौड़ बनाम न.वन

नवविवाहित सलोनी रिश्तेदारों से घिरी बैठी थी।चुहलबाजी चल रही थीं,उस साल ग्रह नक्षत्र इतने बुलंद थे कि सलोनी की ससुराल की जानपहचान उन्हीं दिनों में लगभग 20 शादियां हुईं थीं।सलोनी के देवर से किसी रिश्तेदार महिला ने मजाक में कहा सारी दुल्हनों में बताओ सबसे सुंदर दुल्हन कौन?
देवर ने चट कहा हमारी भाभी न.1,ये सुनते ही सलोनी का पति भुनभुनाने लगा तुम तो सभी शादियों में गये हो ना तुमने तो सबको देखा है,न.1 कह कर क्यों किसी को सर पर चढ़ा रहे हो।देवर का रुआंसा मुख देख़ सलोनी आहत मन और नम आँखों के साथ खिलखिलाते हुए बोली"अरे देवरजी मैं किसी चूहा दौड़ में शामिल नहीं हूँ मुझे दूर ही रखो ऐसे खिताबों से"।पल भर में ही माहौल पुनः हल्का फुल्का हो गया किन्तु क्या सलोनी का मन भी......

टिप्पणी: "कभी कभी यूँ भी हमने अपने मन को बहलाया है,जिन बातों को खुद ना समझे औरों को समझाया है"
औरों को समझाते समझाते सलोनी ये तो समझ ही गयी-"हँसो जीभर के जब भी गम मिले कोई विरासत में, भला रोने से भी कहीं मुश्किलें आसां होती हैं"।

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