Sunday, 2 October 2016

Love at first sight

“प्रथम दृशित कोई चेहरा 
मुग्ध कर सकता इतना
सोये स्वप्न को जगाता
कामनाओं को भड़काता
प्रज्जवलित प्रेम को करता
श्वांसो को गर्म सुलगाता
मस्तिष्क को कर नियंत्रित
ह्रदय को तीव्र धड़काता
प्रति घड़ी व प्रति क्षण उसे ही
निहारने की चाह जगाता
सुधबुध बिसार अपनी उसके
ख़्यालों में ही खो जाता
हाँ हाँ यही दीवानापन तो
प्रथम दॄष्टि प्रेम कहलाता”
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी:प्रेम ना तो किया जाता है ना होता है ये तो अनायास किसी घटना की तरह घटित हो जाता है जैसे हम सड़क पर चलते हुए सभी यातायात के नियम मान रहे हों एवं हमारे सामने बड़ा सा वाहन आ जाये, वो हमें दिखते हुए भी दिखाई ना दे और हम उससे टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाएं, कुछ- कुछ ऐसा ही प्रेम में होता है।उसके पश्चात जिस प्रकार कोकुन से तितली निकल आती है रूपांतरित होकर,ऐसे ही प्रेम भी व्यक्ति को बदल देता है या यूँ भी कह सकते हैं उनके अंदर का मूल स्वरूप जो दब चुका होता है समय व परिस्थतियों के कारण वो प्रस्फुठित होने लगता है और वो जीने लगता है,समझने लगता है स्वयं को पहले से अधिक……..

No comments:

Post a Comment