"सोने की सीढ़ी"
सलोनी की दादी सास बोलीं आज बहुत अच्छा महूर्त है प्यारी बहुरिया आज तो मुझे सोने की सीढ़ी चढ़ाने की युक्ति कर ही ले।
लजाती सलोनी ने भी दादीजी का मान रखने की ठान ली।
रात को खूब परफ्यूम छिड़का माहौल को आनंदप्रद बनाने के लिये,पर दुसंयोग से एक खिड़की थोड़ी खुली रह गयी और सुगन्ध तिर गयी वायुमण्डल में।तुरन्त देवरों की नटखट आवाजें गूंजने लगी क्या हुआ भाभी?ससुरजी का मन्द स्मित देख सकुचाती सलोनी यही कह पाई "गलती से परफ्यूम बॉटल टूट गयी"। विनीत दनदनाते आये हर समय नुकसान के अलावा कुछ आता भी है तुम्हें? "एक्सपायरी डेट हो गयी थी" सलोनी यही कह पाई।भुनभुनाते हुए विनीत निद्रामग्न हो गये और सलोनी परफ्यूम बॉटल पकडे हुए दादीजी की सोने की सीढ़ी को सच कैसे करे सोचती सोने का प्रयास करती रही।
टिप्पणी: क्या कहें किससे कहें खामोश हैं खामोशियां,हर कदम पे आशियाँ पे खेलती हैं बिजलियाँ.....
कुछ बातें ना कही जा सकती हैं ना समझाई जा सकती हैं बस सलोनी की तरह भोगी ही जा सकती हैं,सलोनी एक ऐसा पात्र है जिसका पति उसे नहीं चाहता।क्यों?ये ना तो सलोनी जानती है ना कोई अन्य और सम्भवतः सलोनी का पति खुद भी नहीं....
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