(आभास - तुम्हारे होने का)
मैं मुग्ध बाबरी सी निहारती रह गयी
प्रथम बार जब देखा था तुम्हें झरोखे से
चाहा तुम दिखो नित्य दिन बार बार मुझे
सच्चे हृदय की पुकार सुनते हैं ईश्वर भी
खुले आँगन में थाली भर जल रख दिया
और दिखा दिया मेरा चन्द्रमा पास में मेरे
किलकारियां मार प्रसन्न थी पा मनचाहा खिलौना
यकायक आई अमावस लुप्त हो गए तुम
तब हुआ प्रतीत ये था केवल आभास-तुम्हारे होने का
अगले दिन पुनः उतरे तुम थाली में महीन फ़ाँक से
अब सजग हूँ कि बस निहारना ही है तुम्हें
छूते ही होगे विलुप्त जल की हिलोरों में
समझ गयी हूँ चन्द्रमा नहीं मिलता किसी को
ऐसे ही तुम ना हो पास ना ही साथ मेरे
पर मुदित हूँ तुम्हारे प्रतिबिंब को निहार कर ही
और बतियाती तुम्हारे प्रतिबिंब से निरंतर।
मीनाक्षी मेहँदी
टिप्पणी: एक प्रसिद्ध चलचित्र का प्रसिद्ध संवाद है "किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी क़ायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है" ऐसा असल में होता भी है अगर हम प्रबलता से कुछ पाना चाहे तो बृह्मांडिय शक्तियां सक्रिय होकर हमें उससे मिलाने में जुट जाती हैं, किंतु हमारी प्रार्थना या चाहत में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वो हमारे आभामण्डल (ora) को भेद कर पहुँच सके सर्वशक्तिमान तक..........
शेष उस शक्ति पर निर्भर है कि वो हमें कब किस रूप में हमारा मनचाहा हम तक पहुँचाये।
मैं मुग्ध बाबरी सी निहारती रह गयी
प्रथम बार जब देखा था तुम्हें झरोखे से
चाहा तुम दिखो नित्य दिन बार बार मुझे
सच्चे हृदय की पुकार सुनते हैं ईश्वर भी
खुले आँगन में थाली भर जल रख दिया
और दिखा दिया मेरा चन्द्रमा पास में मेरे
किलकारियां मार प्रसन्न थी पा मनचाहा खिलौना
यकायक आई अमावस लुप्त हो गए तुम
तब हुआ प्रतीत ये था केवल आभास-तुम्हारे होने का
अगले दिन पुनः उतरे तुम थाली में महीन फ़ाँक से
अब सजग हूँ कि बस निहारना ही है तुम्हें
छूते ही होगे विलुप्त जल की हिलोरों में
समझ गयी हूँ चन्द्रमा नहीं मिलता किसी को
ऐसे ही तुम ना हो पास ना ही साथ मेरे
पर मुदित हूँ तुम्हारे प्रतिबिंब को निहार कर ही
और बतियाती तुम्हारे प्रतिबिंब से निरंतर।
मीनाक्षी मेहँदी
टिप्पणी: एक प्रसिद्ध चलचित्र का प्रसिद्ध संवाद है "किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो सारी क़ायनात तुम्हें उससे मिलाने में लग जाती है" ऐसा असल में होता भी है अगर हम प्रबलता से कुछ पाना चाहे तो बृह्मांडिय शक्तियां सक्रिय होकर हमें उससे मिलाने में जुट जाती हैं, किंतु हमारी प्रार्थना या चाहत में इतनी शक्ति होनी चाहिए कि वो हमारे आभामण्डल (ora) को भेद कर पहुँच सके सर्वशक्तिमान तक..........
शेष उस शक्ति पर निर्भर है कि वो हमें कब किस रूप में हमारा मनचाहा हम तक पहुँचाये।
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