दीपावली की सफ़ाई
सोचा छुड़ा लूँ मकड़ी के जाले
पोछूँ धूल नव पुरातन सामान से
जो है व्यर्थ त्याग दूँ
जो है प्रिय सहेज लूँ
प्रत्येक कोना खंगाल लिया
बर्ष भर में क्या क्या एकत्रित किया
झाड़ी धूल कुछ किताबो की तो
गिर गया एक सूखा हुआ पुष्प
उस कुसुम की मिटी हुई सुगंध
सुबासित कर गयी कई यादेँ
खोला पुराने बक्से को तो
खुल गए यादों के पिटारे कई
कितनी शुभकामनायें कितने पत्र
कितने पल संजोये है ये अपने भीतर
खो गयी उस खजाने में भूल सफाई
पढ़ते हुए आँखे नम हो आयीं
जीवंत हो गये भूले बिसरे क्षण
दूर नजदीक के कई आत्मीय नाते
अनायस मन में विचार आया रहेगी
वंचित हमारी नयी पीढ़ी इस सौगात से
उनके घर में नहीं होगी जगह पुराने बक्से की
सम्भवत पर्याप्त होगा जेब में धरा स्मार्ट फ़ोन
गत बर्षों की भाँति आज भी सोच रही हूँ
हमारे पूर्वजों ने क्या जान बूझ कर
इस परंपरा की नीवं थी रखी
जिससे दीपावली पर ना हो
केवल घर की ही सफ़ाई
अपितु उड़ जाये जमी धूल
पुरानी रूचियों,रिश्तों व यादों से भी.........
मीनाक्षी मेहंदी
Yaadein mithai ki dabbe ki tarah hoti hai,ek bar kholo to sirf ek tukda nahi kha paaoge.
ReplyDeleteMy favourite dialogue
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