Sunday, 16 December 2018

जब मेहंदी ने पैसे बोये (२९)

   मेहंदी के  पास  इकट्ठी हो गई थीं चंद चवन्नी उसने बड़े भैया से पूछा इनका क्या किया जाए इत्तेफाकन उसी दिन  सुबह डॉक्टर साहब ने क्यारी में डाले थे पपीते के बीज बस बड़े भैया को झट एक विचार आया उन्होंने मेहंदी से कहा इन्हें भूमि में बोते हैं और फिर उनका पेड़ निकलेगा जिस पर आएंगी बहुत सारी चवन्नी । फिर हम उनके पैसे तोड़कर खूब सारी चीजें खरीद सकते हैं मासूम मेहंदी झट से उनकी बातों में आ गयी और क्यारी में  बो दी अपनी जमापूंजी ।भैया ने समझाया रोज इसमें ध्यान से पानी डालना तो यह हो जाएंगे पौधे जल्दी-जल्दी बड़े। मेहंदी नित्य पानी डालने लगी और जल्दी निकल आए छोटे-छोटे हरे हरे पौधे जो बढ़ने लगे दिन दूनी रात चौगुनी तेजी से।मेहंदी देख देख कर फूली ना समाती उस पर आने लगे छोटे-छोटे पपीते ,मेहंदी ने भैया से कहा इस पर चवन्नी नहीं यह क्या लगा। भैया बोले यह फल है जब बड़े हो जाएंगे और हम इन को काटेंगे तब इनके अंदर से बीजों की तरह निकलेंगी चवन्नियां। मेहंदी बड़ी खुश और भी ध्यान से पौधों की देखभाल करने लगी धीरे-धीरे पपीते हो गए बड़े अब मेहंदी को लगा यह तो पपीते हैं उसने भैया से कहा ये तो पपीते हैं, भैया बोले चवन्नी के फल भी पपीते जैसे होते हैं पकने का इंतजार तो कर ।इस बार पूछा पापा से उन्होंने  बता दिया यह पपीते हैं जब पक जायेंगे तब मिलकर खाएंगे। मेहंदी गुस्से में गई बड़े भैया के पास और पूछा भैया अभी आप ने मुझे बेबकूफ़ बनाया यह पपीते नहीं हैं  कि पापा से पूछ लिया है ।मेरी चवन्नी ढूंढो। भैया हँसने लगे बोले उनकी तो मैंने उसी दिन जमीन से निकालकर टॉफी खा ली थीं खेल खत्म पैसा हजम। मेहंदी अपनी मूर्खता पर रोती बिसूरती रह गयी ।

टिप्पणी : कितने सपने कैद रहते थे उन छोटी सी चवन्नियों में, सारा जहां खरीदने की ताकत लगती थी उनमें । एक दिन ऐसा आया सारे सपने ताकत खत्म तथा लुप्त हो गयी चवन्नी।

Wednesday, 28 November 2018

वो नेट की फ्राक (२८)

                      वो नेट की फ्रॉक (२८)
   डॉक्टर साहब ने एक बहुत सुंदर पीच रंग की फ्रॉक जिसमें खूब सारी फ्रिल थी मेहंदी को दिलवाई ,मेहंदी जिस भी उत्सव में उसे पहन कर जाती है सब उसकी बहुत तारीफ करते हैं बिल्कुल परी लग रही हो। मेहंदी को भी वह फ्रॉक बहुत भाती, सबसे बड़ी बात उस फ्रॉक में चार जेबें लगी हुई थी लड़कियों को जेब वाले कपड़े कभी कभी ही पहनने  को मिलते हैं जब भी मिलते हैं वह खूब इतराती हैं।
        समय के साथ साथ वह फ्रॉक मेहंदी को छोटी होने लगी और मम्मी ने उसे घर में पहनाने लगी मेहंदी को वह फ्रॉक जब घर में पहनने को मिलने लगी तो उसकी कदर खत्म हो गई ।   अब उसके और नए नए कपड़े आ गए थे मेहंदी का मन उन्हें पहनने को करता था इस फ्रॉक से पीछा छुड़ाना चाहती थी किंतु मम्मी कहती थी इतनी कीमती फ्रॉक है थोड़ी दिन और पहनकर कर वसूल कर लो एक बार आसपास के बच्चों और मेहंदी के भाई बहनों ने मिल के जेल परिसर में लगे जामुन के पेड़ से जामुन तोड़ने का प्लान बनाया सब बच्चों ने खूब जामुन तोड़े जिसने भर सकते थे अपनी अपनी जेब में भरे मेहंदी ने भी फ्रॉक की जेबों में और उसके बाद भी जो जामुन बचे, उसे उन्हें फ्रॉक के घेरे में भर लिए पूरे फ्रॉक पर जामुन के रस के धब्बे पड़ गए । मेहंदी खुशी खुशी घर आई देखो मम्मी कितने सारे जामुन लायी हूं। मम्मी  का तो पारा चढ़ गया सारी फ्रॉक दाग़दार कर ली अब कैसे छूटेंगे जामुन के दाग आसानी से नहीं जाते पूरी पोशाक का सत्यानाश कर लिया ।मम्मी की डांट से रूआंसी होने के बाबजूद भी मेहंदी ने सोचा चलो अब फ्रॉक से छुटकारा मिला।अनजाने में ही सही चोखा काम हो गया ,दाग अच्छे हैं, उस दिन के बाद मेहंदी ने वो फ्रॉक कभी नहीं देखी। लेकिन कुछ समय पश्चात जब कभी मेहंदी को मूँगफली रखनी होती या बाजार से टॉफी वगैरा लानी होती तो उसे जेब की कमी महसूस होने लगी और उसे याद आती अपनी पीच फ्रॉक, अब मेहंदी अक्सर अब मेहंदी अक्सर अपनी उस फ्रॉक को याद करती , लेकिन एक बार बेकार होने के बाद पुनः वह फ्रॉक नहीं मिल सकती थी ।इन्सान की फितरत  ऐसी ही है जब तक कोई चीज उसे नहीं मिलती तब तक उसे आकर्षित करती है उसे रिझाती है जब उसे वो चीज मिल जाती है तब कुछ समय तक उसको बहुत ही ध्यान पूर्वक रखता है परन्तु आसानी से उपलब्ध होने पर वो उसकी कदर करना भूल जाता है ।और फिर जब उससे उसका बिछोह होता है तब उसे फिर से उसकी कदर होने लगती है और वह उसे याद करने लगता है ।मनुष्य के संग ऐसा क्यों होता है जब कोई चीज हमारे पास होती है तब हम उसकी कदर क्यों नहीं कर पाते? उसकी कदर तभी क्यों होती है जब वह हमसे दूर होती है ?क्यों? आखिर क्यों?

Monday, 22 October 2018

जड़ों से पुनः जुड़ना(२७)

जड़ों से पुनः जुड़ना(२८)
    डॉ साहब का  अपने गृह जनपद  में स्थानांतरण हो गया ।पुनः अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां जेल परिसर में मिला खूब बड़ा सा मकान उनका निवास बना उस मकान के चारों और खूब सारी खुली जमीन थी खूब चौड़ी चौड़ी दीवारें थी जिस पर सब बच्चे पैरों पैरों भी चल लेते थे । किराये के घर में रह कर आने के बाद बड़े से सरकारी मकान में रहना सबको बहुत सुखद लग रहा था। मकान के पास खाली  जमीन में उगाये भांति भांति के फूल और सब्जियां ।टमाटर, कद्दू ,लौकी, तुरई, प्याज व करेला भिन्न-भिन्न तरह की सब्जियां उगाई गई इसके अलावा सर्दियों के मौसम में पालक मेथी हरा धनिया प्रचुर मात्रा में उगाया गया। रोज मम्मी खूब सारे अंडे उबाल कर रख देती मेहंदी खेलते खेलते मम्मी के पास आकर कहती मम्मी एक आलू दे दो और मम्मी एक उबला हुआ अंडा दे देतीं मेहंदी उसका पीला भाग खाती थी और सफेद हिस्सा कौवे को खाने के लिए फेंक देती। मेहंदी का छोटा भाई भी अब अपने पैरों पर धीरे धीरे चलने लगा था ,कभी कभी वह दूध पीने में आनाकानी करता था तो वह तीनों भाई बहन उसे घेरकर खड़े हो जाते और उसके मुंह में शीशी लगाकर फिल्मी गाने गाना शुरू कर देते थे और फिल्मी गानों की तर्ज वह जल्दी जल्दी जल्दी मुँह चला कर सारी शीशी खाली कर देता था अपना यह छोटा सा प्रयास भाई बहनों को बड़ी खुशी देता था ।तरह तरह की शरारतें करते हुए उनका बचपन अत्यंत सुखद और आराम से गुजरने लगा कई बार तीनों बच्चे पापा के साथ जेल के अंदर कैदियों को देखने भी गए वहां बड़े-बड़े खूंखार कैदी थे।
      उनकी लाल लाल आंखें देखकर मेहंदी को तो डर भी लगने लगा लेकिन कुछ कैदी बिल्कुल ही सामान्य इंसानों की तरह थे। उनको खाना बनाने का काम सौंपा गया था, मेहंदी ने देखा एक जगह खूब सारी रोटियां एक साथ बनते हुए खूब बड़ी सी जगह पर आटा बेला जाता था और उसे गोल-गोल काट लिया जाता था फिर सेकते थे। खाने के लिए कैदियों की लाइन लगती थी।उनके द्वारा कई अन्य  तरह के कार्य यथा खेतीबाड़ी आदि भी कराये जाते ।बड़े चाव से ये सब देखते हुये जीवन में आने वाली परिस्थितियों के बारे में काफी कुछ सीखने और जानने को मिला अपने गृह जनपद में अपने दादा दादी का घर और चाचा चाची से मिलना रिश्तो से जुड़ा गया।
     कुछ कैदी डॉ साहब के घर के पास की जमीन की निराई गुड़ाई करने भी आ जाते थे तथा मम्मी के द्वारा बनी चाय पीकर ही जाते थे। जेल का सायरन बजने पर सिपाही उन्हें चलने के लिए कहता था तो वह डॉक्टर साहिबा के हाथ की चाय पिए बिना जाने को तैयार ही नहीं होते थे,कहते थे तुम तो गुड़ की चाय पिलाओगे यहाँ चीनी की चाय मिलती है ।
    मम्मी भी उनसे खूब बातें कर लेती थी। एक बार एक कैदी से उन्होंने पूछा तुम सजा मिलने से पहले क्या काम करते थे कैदी बोला मैं बाल काटता था तो मम्मी बोली कि अच्छा पहले सर की घास काटते थे अब जमीन की घास काट रहे हो। इसी तरह के हास परिहास के मध्य खूब खुशी खुशी उनके काम करते थे ।
    मेहंदी को आश्चर्य भी होता था कि मम्मी इतनी सहजता से इन अपराधी लोगों से कैसे बात कर पाती हैं पर गांधी जी ने कहा है "घृणा पाप से करो पापी से नहीं " मेहंदी की मम्मी इस बात का बखूबी ध्यान रखती थीं।

Tuesday, 25 September 2018

नादान मोनू(२६)

नादान मोनू(२६)
 सांप्रदायिक दंगे किसी देश की संपत्ति सुख-शांति प्रगति को तो भंग करते ही हैं अपितु उस देश के जनों की भावनाओं को भी कई तरीके से परिवर्तित कर देते हैं ।जो दंगों की विभीषिका में जलता है वहीं इस दर्द को समझ सकता है। इसी तरह के परिवारों में एक परिवार था मेहंदी की दूर के रिश्ते की मौसी का ।उनके पति को दंगाइयों ने खत्म कर दिया था ऐसा भी अनुमान से ही कहा जा सकता है क्योंकि जब शहर में दंगे भड़क रहे थे तब वे अपने काम से वापस आ रहे थे और कभी भी अपने घर लौट कर नहीं आ पाए हमेशा के लिए लापता हो गए ना ही उनका शव मिला ना ही उनका कोई समाचार केवल एक अनुमान ही जीवन पर्यंत लगाया जाता रहा कि दंगाइयों  द्वारा उनको समाप्त कर दिया गया होगा । एक औरत की दशा का अनुमान  कीजिए जो ना सधवा रही ना विधवा । बिना पति के अपने बच्चों को संभालना,उनका पालन  पोषण एक घरेलू भारतीय  महिलाा के लिए  बहुत ही दुष्कर कार्य था। किंतु जब सर पर कोई विपदा आ पड़ती है तो उसे सहने की शक्ति भी ईश्वर प्रदान करते हैं। रिश्ते नातों की परख भी ऐसे प्रतिकूल समय में ही होती  है।
      मौसी के दुख से सभी द्रवित थे और जितना भी बन पड़ता था उनकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते थे। मेहंदी की मम्मी भी जब अपने मायके गई तब अपनी बहन और उनकी बच्चों की सहायतार्थ कुछ सामान लेकर उनसे मिलने गयी, यह मेहंदी की मम्मी का बड़प्पन ही था कि वह कभी यह नहीं जतलाती थी कि हम तुम्हारी सहायता के लिए सामान लाए हैं अपितु वह एक बड़ी बहन द्वारा जिस तरह मिलने पर कुछ भी भेंंट इत्यादि लेकर जाते हैं उसी रूप में सब चीज लेकर जाती थीं। फल ,मिठाई वस्त्र इत्यादि जो कुछ संभव होता था प्रदान कर आर्थिक भरपाई करने का प्रयास उनके सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना करतीं।
    दोनों बहनें अपना सुख-दुख बाटनें  में व्यस्त हो गयीं और सभी बच्चे छत पर खेलने में। छत पर खेलते खेलते अचानक  ही मोनू  रुक गया और एकटक मेहंदी को देखता रहा देखता रहा देखता ही रहा। मेहंदी बहुत छोटी थी पर फिर भी वह सोच रही थी कि मुझे क्यों ऐसे देखे जा रहा है। वह लोग कोई पकड़म पकड़ाई जैसा खेल खेल रहे थे और अचानक ही मोनू नीचे अपनी मम्मी के पास चला गया। सब बच्चे आपस में फिर खेलने में व्यस्त हो गए थोड़ी देर बाद सब बच्चों को नाश्ता करने के लिए नीचे से पुकारा गया वहां जाने पर मोनू की मम्मी ने हंसते हुए बताया कि हमारा मोनू तो कह रहा है वह बड़े होकर मेहंदी से शादी करेगा । मेहंदी लजा गयी  शायद लड़कियां  बचपन से ही समझने लगती है कि  शादी विवाह जैसी बातों पर शर्माना चाहिए । खैर बचपन की मासूमियत समझ बात आई गई हो गई ,लेकिन तब से जब भी किसी को मौका मिलता वह मेहंदी को चिढ़ाने का मौका नहीं छोड़ता। बड़े होने के बाद मेहंदी  की शादी हो गई और मोनू की भी। लेकिन किसी विवाह उत्सव या अन्य पारिवारिक समारोह में मोनू मिलता तो एक बार मेहंदी से जरूर पूछता था 'तुम कैसी हो "और मेहंदी हंस करके देती "अच्छी हूं ,और तुम बताओ भाभी जी कैसी हैं ?"मोनू भी हंसकर कह देता " अच्छी है 'लेकिन उसकी आंखों का खालीपन मेहंदी कभी समझ ही नहीं पाती थी बहुत बाद में मेहंदी को यह एहसास हुआ कि एक बार केवल एक बार अगर वह भी कह देती कि तुम कैसे हो तो शायद मोनू की आंखों का वो खालीपन भर जाता ।एक बार मेहंदी ने निश्चय किया, इस बार उससे मिलने पर वह जरुर पूछेगी कि तुम कैसे हो पर नियति का परिहास ही जानिये उस  दिन के बाद किसी समारोह में मोनू  मेहंदी से मिला ही नहीं और मेहंदी टकटकी लगाए हर समारोह में सोचती है कि शायद वो आएगा और वो पूछेगी तुम कैसे हो ,और भर देगी उसके मन का वह खाली कोना जिसमें बचपन से केवल उसी के लिए जगह रिक्त है। कच्ची उम्र का आकर्षण कभी-कभी शायद बड़े होने तक जीवित रहता है जिसे बचपना समझ कर भूल जाते हैं किंतु एक स्थान रिक्त रहता है जीवन पर्यंत ही ........

Tuesday, 18 September 2018

तीर्थयात्रा(२५)

                                  तीर्थ यात्रा
   प्रत्येक भारतीय का सपना होता है कि वह गंगोत्री यमुनोत्री बद्रीनाथ केदारनाथ इन चार धामों की यात्रा अपने जीवन काल में करे,मेहंदी के नाना जी भी तीर्थाटन के लिए अपनी पत्नी के साथ प्रस्थान को तैयार हुए।अपने व्यवसायिक कार्यों को अपने पुत्रों को सौंपकर कुछ समय अपने लिए भी निकालना उन्होंने उचित समझा प्राचीन समय में तीर्थ यात्रा करना अत्यंत कठिन होता था उस समय ना तो इतने अधिक उन्नत यातायात के साधन थे ।ना ही इतने अच्छे सड़क मार्ग और रेल मार्ग थे। इसलिए उस समय तीर्थ यात्रा करना बड़ा ही दुष्कर कार्य माना जाता था। कभी-कभी तो ऐसा भी होता था कि व्यक्ति तीर्थ यात्रा करने गया और पुनः लौट कर ही ना आया। हालांकि बाद में बहुत अच्छे रेल के और यातायात के साधन विकसित हो गए जिसके कारण तीर्थ यात्रा करना अत्यंत सुगम हो गया ।किंतु फिर भी सबके हृदय में एक आशंका तो रहती थी कि पता नहीं हम तीर्थ यात्रा से वापस आ पाएंगे या नहीं इसलिए जाने से पहले समस्त परिवार एकत्रित होता था,तथा एक फोटो ग्राफ खींचकर उसे यादगार के रूप में लिया जाता था।मेहंदी के नानाजी जब तीर्थ यात्रा के लिए जाने लगे उन्होंने भी अपने समस्त पुत्र-पुत्रियों के साथ एक फोटोग्राफ खिंचवाया। मेहंदी भी अपने मम्मी पापा के साथ नाना नानी के घर उनकी तीर्थ यात्रा के उपलक्ष्य में गई समस्त परिवार का एक साथ फोटो खिंचवाना अत्यंत ही आनंदित अवसर था किंतु मन ही मन में आशंका भी थी।मेहंदी तो उस समय मात्र 5 वर्ष की बालिका की थी यह सब बातें तो उसे बड़े होने पर ज्ञात हुईं। वयस्क होने पर एक दिन उसे लाला जी की डायरी मिल गयी जिसके ऊपर शीर्षक था," तीर्थ यात्रा का वर्णन" मेहंदी की तो बाँछे खिल गयीं। उसने सोचा उसकी तो घर बैठे ही तीर्थयात्रा हो जाएगी तथा लालाजी ने किस तरीके से तीर्थ यात्रा का आनंद लिया उसकी आंखों के आगे वह सारे दृश्य भी साकार हो जाएंगे। मेहंदी ने बड़े चाव से वो डायरी खोली किंतु यह क्या वह पूरी डायरी तो उर्दू में लिखी हुई थी जी हां उस काल में व्यापारी लोग मुख्य जबान के रुप में या लिखित रूप में उर्दू का ही प्रयोग करते थे हिंदी और अंग्रेजी का प्रयोग तो बहुत बाद में शुरू हुआ।मेहंदी के लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर हो गया क्योंकि उसे उर्दू पढ़नी बिल्कुल नहीं आती थी उर्दू जबान समझने में शेर शायरी तो अच्छी लगती है काफी हदतक समझ भी आ जाती है, पढ़ने में बिल्कुल भिन्न है। उस समय लोगों की मुख्य भाषा उर्दू थी अतः उसी काल में यह कहावत बनी होगी" हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या "इन पंक्तियों के द्वारा उस समय के साक्षर व्यक्तियों की भाषा का महत्व ज्ञात होता है।

Thursday, 30 August 2018

यादों के झरोखों में पहला विवाह उत्सव (२४)

यादों के झरोखों में पहला विवाह उत्सव (२४)
   भारत में शादियां व्यक्ति के संग ही उसके पूरे समाज के लिए भी अत्यधिक हर्षोउल्लास का विषय होता है, आखिरकार जीवन मे एक ही बार शादी होती है (अमूमन)तब तो धूमधाम भी मचनी ही चाहिये और जब आर्थिक स्थिति मजबूत हो तब तो भारतीय शादियों के कहने ही क्या!
   मेहंदी ने होश सम्भालने के बाद पहली बार इतनी भीड़ भाड़ ,तड़क भड़क, शोर शराबा, तैयारियाँ देखी थीं। वो भी अपने मामा की शादी में जाने के लिए उत्साहित थी। फ्रॉक या स्कर्ट पहनने वाली मेहंदी के लिए उसकी मामी (जिनकी शादी थी उनकी भाभी) ने हल्के हरे रंग का कुर्ता और काली सलवार व काले दुपट्टे का परिधान स्वयं ही सिला था जिसे पहन वो फूली ना समा रही थी।उसके रिश्ते के भाई बहन उसे चिढ़ाने लगे पंजाबन पंजाबन ,पर वो नई तरह के परिधान पहन कर ही मुग्ध थी। उस दिन मानव मन की ये गुत्थी भी समझ आई कि किसी को चिढ़ाने में आनन्द भी तभी तक आता है जब तक वो चिढ़ता है, जहाँ कोई असर नहीं होता वहाँ से ध्यान हट जाता है। अब बच्चा पार्टी का ध्यान आकर्षित हुआ घोड़ी पर।
   सबने जिद पकड़ ली हम भी मामा/ चाचा के संग घोड़ी पर बैठेंगें । घोड़ी एक बच्चों की संख्या भरपूर ,नानाजी (जिन्हें सब लालाजी कहते थे) ने समस्या का समाधान किया कि दो घोड़ी मंगवाई जायेंगी । दो घोड़ी आयी, बड़े भैया बने सहबाला (घुड़चढ़ी की परंपरा शादी में सबसे रोमांचक रस्म होती है। इसमें पहले दूल्हे को घर के बड़े तिलक कर अपना आशीर्वाद देते हैं। भाभियां काजल लगाकर नजर न लगने की कामना करती हैं। घोड़ी को चने की दाल खिलाकर घोड़ीवाले को नेग दिया जाता है। लगाम पकड़ने पर फूफा और दामादों को दूल्हे के पिता नेग देते हैं। घुड़चढ़ी के समय ढोल-ताशे बजते हैं। दूल्हे संग सहबाला बैठाया जाता है। अग्रवाल समाज में छतर की परंपरा भी रही है। इसमें कोई चांदी का तो कई चांदी के तारों का छतर इस्तेमाल करता है। घुड़चढ़ी के बाद बहनें या बुआ दूल्हे की आरती उतारती हैं और बहनोई सेहरा और कमरबंध पहनाता है, जिसका उन्हें नेग दिया जाता है। मां लड्डू खिला कर विदा करती है। घुड़चढ़ी मन्दिर जाती है वहां से पूजन के पश्चात बारात रवानगी हो जाती है, घुड़चढ़ी के बाद दूल्हा दुल्हन लेकर ही पुनः घर आता है) 
     पूरी सजधन नाच गानों के साथ बारात पहुँची, सभी रस्मो के संग दुल्हन का आगमन हुआ। मेहंदी ने पहली बार किसी को दुल्हन बना देखा था वो तो अपनी मामी को देखती ही रह गयी, उसकी निगाहें टिकी ही रह गईं दुल्हन के रूप पर।विदाई के बाद सब दुल्हन संग ननिहाल वापस  आ गए वहां सभी महिलायें दुल्हन को घेर कर बैठीं थीं ,मेहंदी एकटक दुल्हन को निहार रही थी तभी किसी ने दुल्हन से कहा देखो तुम्हारी भांजी तुम्हें देखे ही जा रही है , मामी ने धीरे से मेहंदी का चेहरा थाम कर  कहा...अरे...! मेहंदी को तो जैसे सारे जहान की खुशियां मिल गयीं ....वो इतनी खुश थी जैसे किसी परिकथा की परी ने उसको स्पर्श किया हो।
   

Thursday, 12 July 2018

आशा का दीप (२३)

            आशा का दीप (२३)
   डॉ साहब अक़्सर किस्से कहानियां सुनाया करते थे, समय बिताने का ये उनका शगल था।अकबर बीरबल के मजेदार किस्से भी उनकी बातचीत में आ जाते, ऐसा ही एक किस्सा मेहंदी के मन में गहरा पैठ गया।
              "बीरबल की खिचड़ी"
   एक दफा शहंशाह अकबर ने घोषणा की कि यदि कोई व्यक्ति सर्दी के मौसम में नर्मदा नदी के ठंडे पानी में घुटनों तक डूबा रह कर सारी रात गुजार देगा उसे भारी भरकम तोहफ़े से पुरस्कृत किया जाएगा।
         
एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने की खातिर हिम्मत की और सारी रात नदी में घुटने पानी में ठिठुरते बिताई और जहाँपनाह से अपना ईनाम लेने पहुँचा।
बादशाह अकबर ने उससे पूछा, “तुम कैसे सारी रात बिना सोए, खड़े-खड़े ही नदी में रात बिताए? तुम्हारे पास क्या सबूत है?”
धोबी ने उत्तर दिया, “जहाँपनाह, मैं सारी रात नदी छोर के महल के कमरे में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह जागते हुए सारी रात नदी के शीतल जल में गुजारी।“
बादशाह ने क्रोधित होकर कहा, “तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम महल के दिए की गरमी लेकर सारी रात पानी में खड़े रहे और ईनाम चाहते हो। सिपाहियों इसे जेल में बन्द कर दो”
बीरबल भी दरबार में था। उसे यह देख बुरा लगा कि बादशाह नाहक ही उस गरीब पर जुल्म कर रहे हैं। बीरबल दूसरे दिन दरबार में हाज़िर नहीं हुआ, जबकि उस दिन दरबार की एक आवश्यक बैठक थी। बादशाह ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा। खादिम ने लौटकर जवाब दिया, बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और वह खिचड़ी पकते ही उसे खाकर आएँगे।
जब बीरबल बहुत देर बाद भी नहीं आए तो बादशाह को बीरबल की चाल में कुछ सन्देह नजर आया। वे खुद तफ़तीश करने पहुँचे। बादशाह ने देखा कि एक बहुत लंबे से डंडे पर एक घड़ा बाँध कर उसे बहुत ऊँचा लटका दिया गया है और नीचे जरा सा आग जल रहा है। पास में बीरबल आराम से खटिए पर लेटे हुए हैं।
बादशाह ने तमककर पूछा, “यह क्या तमाशा है? क्या ऐसी भी खिचड़ी पकती है?”
बीरबल ने कहा, “ माफ करें, जहाँपनाह, जरूर पकेगी। वैसी ही पकेगी जैसी कि धोबी को महल के दिये की गरमी मिली थी”
बादशाह को बात समझ में आ गई। उन्होंने बीरबल को गले लगाया और धोबी को रिहा करने और उसे ईनाम देने का हुक्म दिया।

        कभी कभी व्यक्ति जब उदासियों की ठंडक में कांप रहा होता है तो दूर टिमटिमाता दिया भी रात व्यतीत करने का साधन बन जाता है वो दिया जिसे पता नहीं किसने महल की प्राचीर पर रखा होगा,जिस दिये को ना वो जला सकता है ना बुझा सकता है किन्तु वो संबल बन जाता है दूर शीतल जल में खड़े व्यक्ति का।
   वो दिया जिस पर उसका कोई हक़ नही जिसे वो सिर्फ़ देख सकता है,ना छू सकता है ना पा सकता है।
  जिस तरह उस धोबी पर इल्जाम लगे कि उसने दिये की गर्माहट में रात गुजार दी उसी तरह आशा के दीप के लिए भी कई इल्जाम ये समाज लगा कर व्यक्ति को उसके हक़ से वंचित कर सकता है एवं सबके जीवन में कोई बीरबल आकर समस्या का समाधान करे ये सम्भव नहीं ।अतः वो छुपाता रहता है अपने अन्तर्मन में उस दिये की गर्माहट को .....क्योंकि जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिये किसी तरह बितानी तो है ही ये सर्द रात्रि शीतल नदी के जल में खड़े खड़े ही।

Monday, 9 July 2018

छाला (२२)

   छाला (२२)
    घरेलू नौकर के ना आने पर एक दिन मम्मी ने मेहंदी से आधी बाल्टी पानी हैण्डपम्प से भरने को कह दिया।काफी बड़ी बाल्टी थी मेहंदी को पहली बार इतनी मेहनत का काम मिला था तो उसने जोश जोश में पूरी बाल्टी भर दी....पर ये क्या उसका हाथ सूज कर फूला फूला क्यों हो गया।दर्द भरे हाथ लेकर मम्मी के पास भागी ,मम्मी इतना बड़ा छाला देख घबरा गयीं अब तो डॉ साहब से डाँट पड़नी पक्की है कि मेरी लाडली से इतना काम क्यों करवाया।उन्होंने पूरी भरी बाल्टी देखी और मेहंदी पर चिल्लाने लगीं तुझे आधी बाल्टी कही थी पूरी क्यों भरी। मेहंदी सहम कर नन्हे भाई के पास बैठ गयी तभी वहां बड़े भैया आ गये और उसके हाथ के छाले को स्नेह से सहलाते हुए उस पर मरहम लगाया और छोटे भाई के नर्म नाजुक गुलाबी तलवे दिखा कर बोले तू भी इसकी तरह सारे दिन बैठी रहा कर इसके जैसी ही नाजुक नर्म रहना।मेहंदी की समझ में भैया की बातें आयीं या नहीं पता नहीं पर मरहम से ठंडक मिली किन्तु वो सोच रही थी जैसे भैया उसे प्यार करते हैं माँ क्यों नहीं करतीं हमेशा मेहंदी में उन्हें कमियाँ ही क्यों दिखती हैं .....कुछ करो तो भी ना करो तो भी.....
   काश भैया की तरह माँ ने भी उसकी चोट सहला दी होती। ये छाला तो कुछ दिन में ठीक हो जायेगा किन्तु जो छाले मम्मी के व्यवहार से मन में उभर गये हैं वो क्या कभी भी भर पायेंगे?

Tuesday, 26 June 2018

नन्हें मेहमान का आगमन(२१)

नन्हें मेहमान का आगमन(२१)
उफ्फ भीषण गर्मी हो रही है, उस समय कूलर भी मुश्किल से दिखते थे ac तो शायद  कुछ लोग ही जानते होंगे या वो भी नही,सीलिंग फैन के सहारे ही गर्मियां कटती थीं।अगर विधुत ना हो तो सब व्यर्थ।कस्बे में बिजली भी तो आँख मिचौली खेलती रहती थी।दोपहर को ओढ़ने की चादर गीली कर ओढ़ लेते थे जो चंद मिनटों में ही सूख जाती थी फिर गीली करके ओढ़ते,इसी कवायद में दोपहर कट जाती जब बिजली आती तो राहत लाती।मेहंदी सोचती कोई ऐसी मशीन होनी चाहिये जिसमें बिजली आने पर भर लो और जब बिजली चली जाए तब इस्तेमाल कर लो।वर्षों बाद ये आस पूरी हुई इन्वर्टर के रूप में, धन्य है वो जिसने पहले ac से dc में फिर dc से ac में बिजली को बदला ।उसे शत शत नमन।
    मम्मी का पेट इतना फूलता क्यों जा रहा है, क्या हुआ है मम्मी को? मम्मी फ़्रिज से बर्फ़ की एक ट्रे निकालतीं जब तक सब भाई बहन एक टुकड़ा भी नही खा पाते थे तब तक वो पूरी ट्रे की बर्फ़ खा लेती थीं।मेहंदी को अचरज होता मम्मी को क्या होता जा रहा है।
  तब उसे पता लगा कि एक छोटा भाई या बहन आने वाला है अब तो मेहंदी को मम्मी का पेट छूने में बड़ा मजा आता।नन्हा सा भैया आने वाला है उसके साथ ख़ूब खेलूंगी।कोई चिढ़ा देता बहन आएगी तो वो वाकई में चिढ़ जाती नही भैया है और मम्मी का पेट छू कहती शूज़ पहना है भैया ही है।
   और फ़िर एक सुबह नन्हा मुन्ना भाई आया जो मेहंदी की आँख का तारा और खिलौना बन गया।

Friday, 22 June 2018

रैबीज की विभीषिका(२०)

रैबीज की विभीषिका(२०)
  मेहंदी एक दिन विद्यालय से आयी तो मम्मी की आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे,पापा बहुत तसल्ली से कह रहे थे शशि हिम्मत रखो तैयार हो जाओ।मम्मी ने हरी काइया साड़ी पहनी जिस पर सफेद फूलों की कढ़ाई थी ये साड़ी मेहंदी को बहुत पसंद थी लेकिन इस के साथ मम्मी का रोता मुखड़ा बिलकुल सही नहीं लग रहा था।पहली बार मेहंदी ने मम्मी को रोते हुये देखा था,बड़ा विचित्र लग रहा था अपनी हंसमुख मम्मी को रोते हुये देखना।मम्मी पापा ने सभी बच्चों को भी तैयार कर दिया,मेहंदी की समझ में ही नहीं आ रहा कि रोते हुए कहाँ जाने का कार्यक्रम है।बड़े भैया ने उसे बताया कक्कू मामा नहीं रहे। नहीं रहे अर्थात? मर गये- कैसे? कुत्ते के काटने से, कुत्ते के काटने से भी कोई मरता है क्या भला? कई सवालों के ज़बाब तो वक्त के प्रवाह संग बाद में मिले।कक्कू मामा पालतू गाय के लिये चारे पानी की व्यवस्था कर रहे थे तभी एक सड़क के कुत्ते ने आकर उन्हें काट लिया नानी ने डॉ को बुलाया, उन्होंने 14 एन्टी रैबीज इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी।नानी कक्कू मामा को अपने साथ ले जाकर इंजेक्शन लगवाने लगीं। वो इंजेक्शन बेहद दर्दनाक होते हैं,एक या दो इंजेक्शन के बाद मामा ने कह दिया कि वो खुद जाकर इंजेक्शन लगवा लिया करेंगें नानी को परेशान होने की जरूरत नहीं है।उन्होंने इंजेक्शन का कॉर्स पूरा नहीं किया, इससे रैबीज वायरस उनके शरीर में पनपते रहे।उनके कॉलेज का टूर आगरा गया वहां रस्ते में यमुना नदी के अथाह जल को देख उन्हें दौरा पड़ गया( रैबीज में जल देख कर फिट पड़ते हैं) उनकी बुरी हालत हो गयी जीभ बाहर लटकने लगी, प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना था कि उनकी शक्ल भी कुत्ते जैसी लगने लगी थी। आनन फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया वहाँ डॉ ने उन्हें एक इंजेक्शन दिया उसके बाद वो चिरनिद्रा में लीन हो गये। कक्कू मामा सभी मामाओं में से बच्चों को बहुत प्यार करते,अपनी बाइक पर घुमाते ,77 (कोला) पिलाते तथा अन्य कई मनोरंजन करते। उनके जाने का ख़ालीपन बहुत समय तक सबको सालता रहा, शायद बहुत समय से भी अधिक किन्तु वक़्त के गुजरने के साथ  हम दुःखद स्मृतियों का जिक्र करना बंद कर देते हैं तथा उस दुःख के साथ जीना सीख जाते हैं।

Tuesday, 29 May 2018

विषधर से सामना(१९)

विषधर से सामना(१९)
   सन्ध्या समय माँ रसोई में व्यस्त,दोनों भाई पढ़ाई में,मेहंदी ने सोचा टीवी देखा जाये जैसे ही टीवी के पास गई उसके नीचे पीत मोटी रज्जु जैसा हिलता डुलता कुछ दिखा उत्सुकतावश माँ को आवाज दी देखो यहाँ क्या है, माँ और भाई भागे आये,मम्मी चिल्लाई जल्दी से बच्चों बेड पर चढ़ जाओ ये नाग है।नाग? ये जीव पहली बार देखा।मेहंदी की उत्सुकता और बढ़ गयी।माँ की आज्ञा का पालन करते हुए तीनों बेड पर चढ़ सर्प को निहारने लगे।मम्मी ने किसी को बुलाया और नाग दिखाया।उसने कहा ये तो विषैला सर्प है सपेरा बुलाना होगा वो ढूंढ कर सपेरा लाया,सब बच्चों को दूसरे कमरे में भेज कर उसने बीन बजाई,जब बच्चे बाहर आये तो सर्प बोतल में बंद था।सपेरे ने बताया ये बेहद जहरीला साँप है।यदि डस लेता तो बचना मुश्किल था।सांप व इनाम लेकर वो चला गया।जब पापा आये तो उन्होंने मेहंदी को खूब शाबाशी दी कि अनजान जीव देख उसे छुआ नहीँ वरन मम्मी को बुला लिया।फिर एक किताब में साँप के कई फोटो दिखाये और तरह तरह के सर्पों की जानकारी दी।उनके जहर व काटने से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में भी बताया।

Friday, 25 May 2018

विभिन्न पशुओं से परिचय(१८)

         विभिन्न पशुओं से परिचय(१८)
     बंदर से तो आम का धमाल हो ही चुका था।एक बार पूरा परिवार आँगन में बैठा हुआ गोलगप्पे खा रहा था,मेहँदी धीरे धीरे खा रही थी और सारा परिवार अंदर चला गया,एक बन्दर जल्दी से आया और सभी की तरह पानी में डुबो कर गोलगप्पे खाने लगा मेहंदी उसे इंसानों की तरह खाते देखती रही ना तो किसी को बन्दर भगाने बुलाया और ना ही अपने हिस्से के गोलगप्पे समाप्त होने की चिंता की।एक दिन एक लड़की घर आई उसका हाथ बुरी तरह फ्फका हुआ था पता लगा बिल्ली ने काटा था।उसे देख अजीब सी अनुभूति हुई।एक मरीज आया जिसे कुत्ते ने काट लिया था,उसको इंजेक्शन लगवाने की सलाह मिली ,14 सुई, अरे बाबा रे,मेहंदी को तो एक सुई से ही डर लगता था।उससे कड़वी गोलियां नहीं नहीं निगली जाती थीं, कभी बुख़ार आने पर जबरन खिलाईं जाने पर वो उलटी कर देती थी,तब पापा सिरींज भर लेते और ना ना करने पर भी उसे सुई लगवानी ही होती थी।वो तो पापा के प्रति उसका स्नेह होता था जो इंजेक्शन का दर्द सहन कर लेती थी क्योंकि उसके बाद डॉ साहब उसको कोई अच्छी सी चीज दिला कर उसके लाड़ भी करते थे।इसके अतिरिक्त मधुमक्खी, मक्खी,मच्छर तथा विद्यालय जाते हुए रस्ते में दिखने वाले मुर्गे,सूअर,गाय, भैंस,बकरी ,तितली तथा कई चिड़िया ,कौवे,तोते व विभिन्न पशु पक्षियों को मेहंदी पहचानने लगी थी,किसी को देख सिहर जाती थी एवं किसी को देख खुश हो जाती थी।कुल मिला कर प्रकृति की विभिन्नता से परिचय प्राप्त हो रहा था। 

Saturday, 31 March 2018

२६जनवरी का कार्यक्रम(१७)

२६जनवरी का  कार्यक्रम (१७)
   मेहंदी ने खूब उत्साहपूर्वक घर पर बताया कि वो सरस्वती वंदना में सबसे आगे खड़ी होगी और एक और सामूहिक नृत्य में उसे चुना गया है,प्रतिदिन विद्यालय में अभ्यास भी कराया जायेगा।घर पर भी वो अभ्यास के दौरान बताये गये स्टेप्स दोहराती रहती।एक दिन पापा ने कहा पढ़ाई पर भी ध्यान देती रहना परीक्षा के दिन नृत्य काम नहीं आयेगा।मेहंदी के दिल को बात लग गयी वो पहले की तरह जीजान से पढ़ाई में लग गयी।एक शाम विद्युत आपूर्ति ना होने पर वो मोमबत्ती जला कर पढ़ रही थी ,पढ़ते पढ़ते इतनी लीन हो गयी कि उसके खुले केश मोमबत्ती की ज्वाला से झुलसने लगे उसे पता ही ना चला,बड़े भाई किसी कार्य से आये और चिल्ला उठे मेहंदी के बालों में आग लग गयी और जल्दी से मेहंदी को मोमबत्ती से परे किया।आग से कोई अन्य नुकसान तो नहीं हुआ किन्तु एक तरफ के बाल बहुत जल गए तब मम्मी ने आव देखा ना ताब झट से मेहंदी का मुंडन करा दिया।अगले दिन स्कार्फ़ पहना कर विद्यालय भेज दिया।मैम ने जब अभ्यास कराना शुरू किया तो स्कार्फ उतारने को बोला मेहंदी के नानकुर करने पर खुद ही स्कार्फ़ खींच दिया और गंजा सर देख कर आवक रह गईं।विद्यालय की  छुट्टी होते ही मेहंदी के घर गयीं और बोलीं भाभीजी ये क्या कर दिया मैंने तो सुन्दर होने के कारण इसे सबसे आगे खड़ा किया था,अब गंजी लड़की कैसी लगेगी,आप ने ये क्या किया, अब तो इसे कार्यक्रम में नहीं रख पाऊँगी। मम्मी ने पूरी बात बताई तो मैम सर ठोंक कर रह गईं।मेहंदी को पढ़ाई में तल्लीन होने की सज़ा पूरे दिन स्कार्फ़ पहनने तथा कार्यक्रम से बाहर होने की मिली।

Sunday, 25 March 2018

उतना लीजिये थाली में ,जो ना जाये नाली में(१६)

"उतना लीजिये थाली में ,जो ना जाये नाली में"

     मेहंदी के बाबा उसके चाचाजी व चाची जी के साथ पुश्तैनी घर में रहते थे कुछ दिनों के लिए रहने आये।सब बच्चे बाबा से खूब खुश थे उनसे तरह तरह की बातें करते,मेहंदी तो मितभाषी थी बाबा से कम ही बोलती।बाबा भी उसे कम ही तजव्वो देते थे।बाबा की एक अजीब आदत थी जब वो खाना खाते तो ख़ूब बड़े बड़े ग्रास प्रत्येक सब्जी से निकालते थे।मेहंदी की मम्मी हमेशा से खाना ना छोड़ने और जितना खा सकते हो उतना ही लेने की सलाह देती थीं।सभी सदस्य इसका पालन भी करते थे,अपवाद स्वरूप ही कभी भोजन कोई थाली में छोड़ता था।बाबा को ऐसा करते देख उसके मुख से निकल गया कि बाबा तो आधा खाते हैं आधा बर्बाद करते हैं,बसजी बाबा का पारा चढ़ गया जरूर इसकी माँ ने सिखाया होगा वरना ये तो बोलती ही नहीं है।गुस्से में उन्होंने खाना खाने से भी इंकार कर दिया।मम्मी मनाती रह गयी पर वो मुँह फुलाये बैठे रहे
डॉ साहब के आने पर उन्हें सब बताया।अपनी लाड़ली के लिए तो वो कुछ सुन ही नहीं सकते थे उन्होंने अपने पिताजी को समझाया कि शशी बच्चों को खाना बर्बाद करने को मना करती है वही मेहंदी ने सीखा है, ग्रास निकलते हुए उसने पहली बार देखा तो उसे लगा आप खाना छोड़ रहे हो,इसलिए ऐसा कह दिया फिर मम्मी से नई थाली परोस कर लेन को कहा और प्रेम से अपने सामने खिलाया तब बाबा माने।बूढ़े बच्चे एक समान होते हैं इसलिये ही कहा जाता है।मेहंदी अपने बाबा से थोड़ा और सहमी रहने लगी कि कहीं मुँह से गलत ना निकल जाये तथा ये भी सोचती रही कि गलती तो उसकी थी पर बाबा अपनी बहू से इतना नाराज़ क्यों हुए,आखिर किसी की भी गलती का ठीकरा बहू के ऊपर ही क्यों फूटता है।

Monday, 19 March 2018

बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)

           बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)
    घर में आते ही सबका चहेता बन गया बुद्धधु बक्सा।मेहंदी तो संध्या समय जब कार्यक्रम आते तभी विद्यालय से मिला गृहकार्य करती।लिखते लिखते टीवी के बिलकुल पास पहुँच जाती तब डॉ साहब को समाचार देखने में व्यवधान होता और वो चुटकी लेते अरे बेटी ज़रा दूर से टीवी देखो वरना प्रतिमा पुरी टीवी में खींच लेगी।मेहंदी वाकई में डर जाती उसे लगता पापा कह रहे हैं तो सच ही होगा।मेहंदी को प्रतिमा पुरी कोई मदन पुरी नामक फ़िल्मी खलनायक की बहन ही लगती थी बाद में तो अमरीश पुरी का पर्दापण भी फिल्मों में हो गया पहले हो गया होता तो दोनों की ही बहन लगतीं। फिर तो नये नये टीवी एंकर व समाचार वाचकों को मेहंदी पहचानने लगी और वो सब रोज के जीवन का एक हिस्सा ही बन गये।रोज रात का खाना टीवी के सामने ही होता, चित्रहार या फिल्म तो सप्ताह में एक ही बार आते थे रोज के समाचार तथा कृषिदर्शन भी देख लिए जाते थे।शायद वो कार्यक्रम देखने से अधिक चलती व बोलती तस्वीरों की दीवानगी होती थी।कवि सम्मेलन या क्रिकेट मैच देखने का शौक भी पापा के साथ साथ मेहंदी को भी हो गया।लेकिन पढ़ाई में कोई कोताही नहीं होती थी,कभी भी अधूरे या गलत काम के लिए अध्यापिका से मेहंदी डाँट नहीं पड़ी।कुल मिला कर बुद्धधु बक्से के साथ रह कर डॉ साहब के बच्चे बुद्धधु नहीं बन रहे थे।

Friday, 16 March 2018

बुद्धधु बक्से का आगमन(१४)

         बुद्धधु बक्से का आगमन(१४)
    एक छोटे से बक्से से आती आवाज रेडियो में तो सुनते ही थे किंतु एक छोटे से बक्से में चलते फिरते चित्र, गाने और फिल्में देखने की दीवानगी ही कुछ और होती थी।बड़े बच्चों सभी को भाता था ये बक्सा,चित्रहार की दीवानगी तो चरम पर होती ही थी पर रविवार को प्रसारित होने वाली फ़ीचर फिल्म की दीवानगी का आलम तो निराला ही होता था।उस समय मोहल्ले क्या शहर में ही कुछ प्रतिष्ठित लोगों के यहाँ ही टीवी सेट होता था।ऐसे में टीवी वाले परिवार में रविवार शाम बच्चों का जमघट लग जाया करता था।मेहंदी और उसके भाई भी सामने रहने वाले डॉ परिवार के यहाँ रविवार को फिल्म देखने पहुंच गए,उन्हें आदर पूर्वक सोफे पर बैठा दिया गया।सारे परिवार के लोग व उनके परिचित भी चाव से चलचित्र देखने लगे।उनके घर का पूरा जीना बच्चों से भर गया।किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर आवाज सुन कर ही खुश थे।कोई गम्भीर मूवी आ रही थी जिसमें संवाद कम थे,अपेक्षित आनंद ना आने पर जीने में भरे बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया जिससे सब झल्ला उठे।डॉ साहब ने सबसे शांत रहने को कहा किन्तु शोर में कोई कमी नहीं आयी जब डॉ साहब का धैर्य जबाब दे गया तो वो हंटर उठा लाये व हवा में उसे फटकारने लगे।जीने से सब नदारद हो गये ।मेहंदी के बालमन को लगा कहीं उसके साथ भी ऐसा व्यवहार ना हो वो उठ कर घर आ गयी।पापा ने फ़िल्म खत्म होने से पहले आने का कारण पूछा तो उसने सब बयां कर दिया,पापा उसके भोलेपन पर हँस पड़े।तब तक दोनों भाई भी फिल्म  देख कर आ गए और मेहंदी को चिढ़ाने लगे कि हम तो पूरी फिल्म देख कर आये तू क्यों आ गयी।डॉ साहब ने अगले दिन ही बुद्धधु बक्सा क्रय कर लिया कि मेरी लाडली अपने घर पर ही टीवी देखेगी, पूरी रिश्तेदारी में शायद उन्हीं के घर सबसे पहले टीवी आया था।
    

Thursday, 1 March 2018

होली की नादानी(१३)

                होली की नादानी(१३)
    होली के रंगारंग उत्सव पर मौसी और ममेरी बहन आये थे।डॉ साहब के मित्र ख़ूब उत्साहित कि साली साहिबा आयीं हैं उनके साथ होली खेलने को मिलेगी।
    मेहंदी और ममेरी बहन को होली से बहुत हो डर लगता था।वो तरह तरह के लाल हरे रंग पुतवाना फिर उन्हें हटाना, बड़ा ही बोरिंग काम लगता था।तो उन दोनों ने तय किया कि होली नहीं खेलेंगें किन्तु किसी को बतायेंगें भी नहीं कि हमें होली पसन्द नही है।सुबह होते ही डॉ साहब व भाइयों ने रंग घोलना और हुड़दंग मचाना शुरू कर दिया।मम्मी ने उन सब को बाहर भेजा ये कहकर ,जब खाना बन जायेगा तब घर में रंग शुरू करना।दोनों बहनें खाना बना कर निबटी ही थीं तभी डॉ साहब के दोस्तों की टोली आ गयी।ममेरी बहन और मेहंदी घबरा गईं अब तो ये सब हमे पोत देंगें क्या करें।मेहंदी को ध्यान आया घर में एक ख़ूब बड़ा सन्दूक है जिसमें रजाई गद्दे रखे रहते हैं,उसके पीछे इतना स्थान था कि दोनों छिप जातीं।वही छिप कर वो बाहर से आता हुड़दंग सुनती रहीं और डरतीं भी रहीं, कोई उन्हें यहाँ ढूंढ ना ले।जब छिपे छिपे दोनों थक गयी तो धीरे धीरे बाहर निकल कर आयीं,तो क्या देखा ख़ूब रंग हो गया है तथा सब नहाने और धुलाई आदि में व्यस्त हैं। बाहर से आये सब चले गए हैं, उन दोनों से किसी ने पूछा भी नहीं कि कहाँ थी रंग क्यों नही लगाया है।उन दोनों को रंगों से बचने की ख़ुशी भी हो रही थी और दुःख भी हो रहा था कि कोई उनके साथ होली खेलने के लिए लालायित ही नहीं था और वो व्यर्थ में ही छिपी रहीं।कभी कभी ऐसा भी होता है दुनिया के डर कहीं और नहीं हमारे भीतर ही छिपे होते हैं हम खुद को डराते रहते हैं तथा इस कारण जग के कई निराले रंगों का सामना करने से वंचित रह जाते हैं।

Wednesday, 28 February 2018

आम का धमाल(१२)

आम का धमाल(१२)
   मेहंदी को आम बहुत पसंद थे, पके हुये रस से भरे हुये आम।एक दिन वो आम उठा कर आँगन में आ गयी इत्मीनान से खाने के लिए ,अभी एक टुकड़ा ही चखा था कि ना जाने कहाँ से एक बन्दर आ गया और आम छीनने लगा किन्तु मेहंदी तो मेहंदी थी उसने भी आम नही दिया ।अब दृश्य कुछ यूँ बना मेहंदी आम खाते हुए आगे आगे और उसका फ्रॉक पकड़े हुए बन्दर पीछे पीछे।मम्मी पूजा कर रही थी मेहंदी ने उन्हें आवाज़ दी .....मम्मी बन्दर से बचाओ।या तो माँ ने सुना नहीं या उनके लिए पूजा अधिक महत्वपूर्ण थी।मेहंदी की चीखें सुनकर पापा और बड़े भाई कर आये तथा सारा माजरा समझ कर मेहंदी से कहा कि आम फेंक दो। पर नही आम का लोभ इतनी आसानी से कैसे छूट जाये,आख़िर पापा और भाई ने बन्दर को भगा दिया तब मेहंदी ने चैन से आम खाया। एक सवाल किन्तु मेहंदी के जहन में घूमता रहा यहीं पास में पूजा करती मम्मी ने उसकी आवाज नही सुनी और अंदर दूर कमरे में बैठे पापा व भाई ने सुन ली।क्या एक माँ के लिये सन्तान से बढ़कर भी कोई और महत्वपूर्ण कार्य हो सकता है।माँ क्यों नही आयीं उसे बचाने........आख़िर क्यों...?

Tuesday, 27 February 2018

पिता - सुरक्षा कवच (११)

   " पिता-सुरक्षा कवच"
   डॉ साहब मिलनसार तथा व्यवहारिक हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे अतः उनका मित्रता का दायरा भी विस्तृत था,हालाँकि रोगियों से फुर्सत कम ही मिलती थी फिर भी व्यवसायिक तथा व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखते थे।उनके घर आने जाने वाले मित्र 4 बरस की मेहंदी को भी ख़ूब लाड़ किया करते थे।ऐसे ही एक डॉ मित्र ने एक बार मेहंदी के पेट पर बर्थमार्क छूकर एक ऐसी अप्रत्याशित बात कही जो मेहंदी को बड़ी अटपटी लगी उसने पापा को बताई ।पापा ने ध्यानपूर्वक सुना और उसके बाद वो अंकल कभी घर नहीं आये, क्यों नही आये ये जानने की आवश्यकता मेहंदी को कभी अनुभव नही हुई वो तो खुश थी कि अटपटे अंकल अब नहीं आते हैं।साथ ही पापा पर दृढ़ विश्वास कायम हो गया कि उसके पापा उसकी हर परिस्थिति में रक्षा करने की क्षमता रखते हैं, उस दिन से मेहंदी की हर छोटी बड़ी समस्या को पापा की अदालत में ही पेश किया जाने लगा और मेहंदी को उनके फैसले से कभी निराश नहीं होना पड़ा।इतनी छोटी आयु में ही उसे समझ आ गया कि पापा ही उसका सुरक्षा कवच हैं।उसके पापा ही उसके मित्र भी थे जिन्हें वो निसंकोच सब बता देती थी।
टिप्पणी: हर पिता को ऐसा ही होना चाहिये बच्चों की बातों को उपेक्षित ना कर पूरे ध्यान से सुन समाधान करना चाहिये, पिता या माता बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करेंगें तो बच्चे गलत संगत में जाने से बच सकते हैं विशेषकर एकल परिवारों में .....



Friday, 23 February 2018

खाल तुम्हारी हड्डी हमारी(१०)

                खाल तुम्हारी हड्डी हमारी"
   मेहंदी सरल स्वभाव की थी किंतु पढ़ने में कुशाग्र थी, इसके भाइयों को पढ़ाने आचार्यजी आते थे वो जो सवाल भाइयों को करने देते थे उन्हें मेहंदी उनसे पहले ही झट बता देती थी।पिता तो अपनी होनहार बाला पर वारी वारी जाते थे।एक बार आचार्यजी ने कुछ सवाल करने को दिये जिन्हें मेहंदी ने झट बता दिया किंतु छोटे भाई ने लिख कर भी गलत कर दिया।आचार्यजी का पारा चढ़ गया और उन्होंने कहा कि छोटी बहन ने ऐसे ही बता दिया और तुमसे लिख कर भी सही ज़बाब नहीं आया तथा एक झापड़ लगा दिया, छोटे भैया को भी आक्रोश आ गया उन्होंने कुर्सी पर खड़े होकर कस कर चपत आचार्यजी के लगा दी।उन्होंने मम्मी को बुलाया व सब हाल बताया मम्मी कुछ कहतीं तभी जीना चढ़ते हुए पापा की पदचाप गूँजी। वस्तुस्थिति पता चलने पर डॉ साहब ने अपने बेटे को ख़ूब पीटा ये कहते हुए कि गुरु पर हाथ उठाता है तेरी हिम्मत कैसे हुई गुरूजी पर हाथ उठाने की। आचार्यजी तो स्वयं डॉ साहब का गुस्सा देख हैरान हो गये और कहने लगे जाने दीजिए नासमझ बालक है धीरे धीरे समझदार हो जायेगा।
   डॉ साहब ने कहा कि आज से इसे जितना पीटना हो पढ़ाने के लिए पीटियेगा ये कुछ नहीं कहेगा । खाल तुम्हारी हड्डी हमारी , जितनी सख़्ती ज़रूरी हो पढ़ाने के लिये वो आजमाइयेगा। उस दिन के बाद भैया का चुलबुलापन तो बरक़रार रहा किन्तु वो पढ़ाई में भी मन एकाग्र करने लगे।

Sunday, 11 February 2018

झूला बना जिंदगी व मौत का झूला(९)

     लवली से दोस्ती होने के साथ ही मेहंदी उसके साथ ही विद्यालय से घर वापस आने लगी।जाती भाइयों के साथ थी और आती लवली के साथ।एक दिन लवली उसे अपने घर ले गयी उसके बरामदे में झूला लगा  हुआ था,ये देख मेहंदी तो ख़ुशी से नाच उठी,फटाक से झूले पर बैठी और खूब झोंठे लिये।लवली के घर में उपस्थित चाची व उसकी मम्मी ने भी उसे ख़ूब लाड़ किया और कहा जब मन हो झूला झूलने आ जाया करो।चाहो तो छुट्टी में रोज़।जी आंटीजी मेहंदी तो प्रसन्न हो गयी किन्तु लवली को मेहंदी के इतने लाड़ अच्छे नहीं लगे।वो मेहंदी से कतराने लगी।उधर वंश मेहंदी के लिए रोज सीट रखता कोई उस सीट पर बैठने की कोशिश करता तो उससे हाथापाई भी करता किन्तु मेहंदी उससे अधिक लवली से बात करने को लालायित रहती थी।एक दिन सुबह विद्यालय जाने से पूर्व मेहंदी ने मम्मी को बता दिया कि मैं आज देर से आऊंगी लवली के घर झूला झूलने जाऊंगी।उस दिन भी लवली  मेहंदी को उपेक्षित करती रही परन्तु  मेहंदी को इतनी समझ ही कहाँ थी,उसने लवली से कहा कि वो उसके घर चलेगी झूलने,लवली ने बेमन से अच्छा कह दिया किन्तु छुट्टी में जल्दी से बाहर चली गयी।वंश मेहंदी का हाथ पकड़े छुट्टी में बाहर निकला पर वो तो लवली को ही ढूंढ रही थी तभी उसे लवली आगे जाती हुई दिखी,मेहंदी वंश के मना करने के पश्चात भी आनन फ़ानन हाथ छुड़ा कर भागी और सामने से आती किसी गाड़ी से टकरा कर गिर गयी।मूर्छित होते होते मेहंदी ने सुना कोई कह रहा था अरे ये तो डॉ नरेश की बेटी है और जब मेहंदी को होश आया तो पापा उसके उपचार में लगे थे।सौभाग्यवश मेहंदी को अधिक चोट नही आई थी किन्तु उस दिन से वंश सहम गया था शायद उसे लग रहा था कि उसकी हाथ पकड़ने की जिद की वजह से मेहंदी भागी वरना वो हल्के हल्के जाती और उस दिन से वंश की मासूम मोहब्बत  सहम कर ख़ामोश हो गयी।
      

Monday, 5 February 2018

विद्यालय का प्रथम दिवस(८)



मेहंदी की शिक्षा दीक्षा प्रारम्भ हो गई, उसकी पढ़ने में बेहद रूचि थी।जब भाई पढ़ने जाते थे तब वह भी विद्यालय जाने के लिये रोती थी।आखिर वो दिन आया जब वो पहले दिन विद्यालय गयी।इतने सारे बच्चे एक साथ वो तो घबरा कर भैया के पीछे प्रार्थना की पंक्ति में लग गयी,भैया ने बताया नर्सरी की पंक्ति दूसरी है पर वो नहीं हटी।भैया उसे उसकी कक्षा में सबसे आगे की सीट पर बैठा आये। पास में बैठी लड़की लवली व लड़के वंश से परिचय हुआ मेहंदी ल शब्द का उच्चारण र कह कर करती थी उसने लवली को रवरी कह दिया ये सुन लवली का मुँह बन गया पर भोली मेहंदी उसे अपनी सहेली मानने लगी। उनकी कक्षा अध्यापिका के बड़े बड़े नाखून देख कर मेहंदी का तो जैसे खून ही जम गया।पर जब अध्यापिका(जिन्हें सब मैम कह रहे थे) ने अपने हाथों की विभिन्न मुद्राएं बना कर ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार सिखाई उसका भय भी जाता रहा।ये तो उसने घर पर भी सीखी थी जब उसके भाइयों को घर पर सर पढ़ाने आते थे तब।उसने वो कविता एक्शन सहित दोहरा ली।मैम भी खुश हो गईं।पता लगा कि वंश मैम का बेटा है,मेहंदी से हाथ मिला कर उसने उसे अपनी दोस्त बना लिया और कहा कि तुम्हारे लिये सबसे आगे की सीट रोज रखूँगा। इस तरह एक प्यारा दिन विद्यालय में बिता कर मेहंदी घर आकर पापा की प्रतीक्षा करने लगी और उनके आने पर सारी बातें विस्तार से बताईं । ट्विंकल ट्विंकल सुनाई उसका उत्साह देख डॉ साहब भी निहाल हो गये।

Wednesday, 31 January 2018

स्थानांतरण(७)

स्थानांतरण के संग स्थान ही नहीं बदलता रहता बदल जाता है समूचा परिवेश,मन के जुड़ाब,आबोहवा आस पड़ोस, घर की संरचना,पुनः नये घर को विन्यासित करना जहाँ नई उमंग देता है वहीं पीछे छोड़ दिए गए घर और पड़ोस की यादें मन को झकझोरती रहती हैं।लड़कियाँ तो मायके को छोड़ ससुराल आती हैं पर मायके से सम्बन्ध जुड़ा रहता है किंतु स्थानांतरण के पश्चात तो कुछ परिजन जो बहुत निकट हो गए होते हैं दुबारा कभी मिलते है कभी नहीं भी मिलते जैसे यात्रा के समय कुछ सहयात्रियों से अच्छी जान पहचान हो जाती है और फिर वो अपने रास्ते हम अपने रास्ते।
        मेहंदी तो शैशवावस्था में थी पता नहीं उसे उस परिवार की हुड़क लगी होगी या नहीं जिन्हें सौंप कर माँ सारे घर के कार्य निबटा लिया करती थीं।शिशु कुछ कह नहीं सकता एवं बड़े होने पर तो उसे स्वयं भी नहीं पता होता कितने परिजनों का स्नेह उसे मिला है।पता नहीं डाकू वाली घटना का प्रभाव था, दुर्घटना के बाद अपनों के निकट होने की आवश्यकता अनुभव करना या कुछ अन्य कारण, डॉ साहब का स्थानांतरण अपने गृहजनपद के निकट ही हो गया।कुछ लोगों से बिछड़ने की पीड़ा तथा अपने रिश्ते नातों के करीब आने की ख़ुशी के साथ नई जगह अपनी गृहस्थी सज़ा दी गयी।मेहंदी के जीवन का भी नया अध्याय शुरू होने वाला था।अब बाल्यावस्था में कदम रखने के संग ही विद्यार्थी जीवन का भी शुभारम्भ होने वाला था।

दुर्घटना(६)

नित्य सैकड़ों हज़ारों सड़क दुर्घटनाएं होती रहती है, समाचारपत्रों में पड़ते रहते हैं किन्तु जब अपने पर बितती है तो उसकी विकरालता का अनुभव होता है।
      डॉ साहब कार्यालय के कार्य से कुछ सहकर्मियों के संग कार्यालय की कार व चालक के साथ लखनऊ जा रहे थे।अचानक सामने से आती दूसरी कार से टक्कर हो गई।भीषण दुर्घटना थी,चालक के सिवा सभी को गम्भीर चोटें आईं।डॉ साहब के भी हाथ की हड्डी टूट गयी तथा और भी घाव हो गए।चालक ने ही हिम्मत करके सबको लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया।सबका ध्यान रखा जाने लगा किन्तु चालक के अंदरूनी रक्तस्राव होता रहा जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी,सबके लिए यह स्थिति अप्रत्याशित थी कि जिसके कारण सबको सही समय चिकित्सा मिली वही इस जग में नहीं रहा, बहुत ही दुःखद.....यही जीवन की भंगुरता है ।
     डॉ साहब के सभी रिश्तेदार आ गए सब जोर देने लगे अपने घर के निकट ही स्थानांतरण करा लो।फ़िलहाल डॉ साहब सीधे हाथ में बंधे प्लास्टर के साथ घर आ गए तथा कई कार्य उलटे हाथ से करने लगे जिन्हें करने का उन्हें इतना अभ्यास हो गया कि सीधा हाथ सही होने के पश्चात भी उलटे हाथ से करते रहे जैसे दांत मांजना और दाढ़ी बनाना।मेहंदी जब बड़ी हुई थी तो उसे पापा को उलटे हाथ से कम करते देखना बड़ा अच्छा लगता था और उनके हाथों पर पड़े टाँकों के निशान भी वो रोज छूती थी।
    

Saturday, 27 January 2018

डॉक्टर व डाकू (५)

डॉक्टर व डाकू
मेहंदी जब शिशुवस्था में ही थी उसके पिता की नियुक्ति ऐसे क्षेत्र में हो गयी जहाँ उस समय डाकुओं का वर्चस्व था।सर्दियों की एक गहन रात्रि को द्वार पर दस्तक हुई
माँ तो तीन बच्चों के लालनपालन में थकी गहन निद्रामग्न थीं,डॉक्टर साहब ने द्वार खोला तो डाकू खड़े थे।व्याकुल होते हुए डॉ साहब ने पूछा क्या काम है
उन्होंनें कहा अपने औजार उठा और हमारे संग चल ।चमचमाते रामपुरी के फल को देख प्रतिरोध करना मूर्खता थी और वो हमेशा मानते थे हमारा कार्य रोगी को ठीक करना हो भले ही वो कोई भी हो।
     आँखों पर पट्टी बांध अपने अड्डे पर ले गए उनके एक साथी को गोली लगी थी। डॉ साहब ने सावधानीपूर्वक गोली निकाल दी।डाकू प्रसन्न होकर एक नोटों से भरी सन्दूकची ले आये तथा बोले जितने मर्जी हो ले लो।डॉ साहब ने नानुकर करी तो एक बड़ी घनी मुछों वाला (जो शायद उनका सरदार था) बोला अपनी खुशी से दे रहे है संकोच मत करो।डॉ साहब ने सोचा यदि अधिक नोट उठाये तो इन्हें लगेगा मैं लालच में आ गया और कम उठाये तो भी चिढ़ सकते हैं ,पशोपेश में डॉ साहब ने एक मुट्ठी नोट भर जेब में धर लिए।
       आँखों पर पुनः पट्टी बांध वापसी हो गयी।सुबह जागने पर पत्नी से किस्सागोई की तो वो कांप गयी।कहने लगीं मुझे क्यों नही जगाया। तब उन्होंने हंस कर कहा तुम रात भर चिंतित रहतीं इसलिये.....रात के लाये रूपये पत्नी को सौप दिए,जब गिने तब वो लगभग एक महीने के वेतन के बराबर थे।डॉ साहब ने परिहास किया वाह ऐसे मरीज मिलते रहें।
     पत्नी ने उनके मुँह पर ऊँगली रख दी और कहा मुझे आपकी सलामती से अधिक कुछ नहीं चाहिये प्रभु ना करे आप पर कभी भी कोई विपदा आये।
    ये किस्सा फिर तो परिजनों को बताने हेतु रोमांचक वार्तालाप बन गया।मेहंदी ने बड़े हो जब ये किस्सा सुना तो अपने पापा से पूछा आप क्यों गये आपको नहीं जाना चाहिए था।तब उसे गोदी में ले बड़े प्यार से डॉ साहब ने समझाया कि हम पढ़ाई पूरी करके शपथ लेते हैं कि इलाज करने में कोई भेदभाव नहीं करेंगें।मरीज तो मरीज होता है और हमारे पास बेहद आस लेकर आता है ।हमें अपना काम करना चाहिए और उन्हें न्याय प्रक्रिया के तहत दण्ड मिलेगा ।