Friday, 23 February 2018

खाल तुम्हारी हड्डी हमारी(१०)

                खाल तुम्हारी हड्डी हमारी"
   मेहंदी सरल स्वभाव की थी किंतु पढ़ने में कुशाग्र थी, इसके भाइयों को पढ़ाने आचार्यजी आते थे वो जो सवाल भाइयों को करने देते थे उन्हें मेहंदी उनसे पहले ही झट बता देती थी।पिता तो अपनी होनहार बाला पर वारी वारी जाते थे।एक बार आचार्यजी ने कुछ सवाल करने को दिये जिन्हें मेहंदी ने झट बता दिया किंतु छोटे भाई ने लिख कर भी गलत कर दिया।आचार्यजी का पारा चढ़ गया और उन्होंने कहा कि छोटी बहन ने ऐसे ही बता दिया और तुमसे लिख कर भी सही ज़बाब नहीं आया तथा एक झापड़ लगा दिया, छोटे भैया को भी आक्रोश आ गया उन्होंने कुर्सी पर खड़े होकर कस कर चपत आचार्यजी के लगा दी।उन्होंने मम्मी को बुलाया व सब हाल बताया मम्मी कुछ कहतीं तभी जीना चढ़ते हुए पापा की पदचाप गूँजी। वस्तुस्थिति पता चलने पर डॉ साहब ने अपने बेटे को ख़ूब पीटा ये कहते हुए कि गुरु पर हाथ उठाता है तेरी हिम्मत कैसे हुई गुरूजी पर हाथ उठाने की। आचार्यजी तो स्वयं डॉ साहब का गुस्सा देख हैरान हो गये और कहने लगे जाने दीजिए नासमझ बालक है धीरे धीरे समझदार हो जायेगा।
   डॉ साहब ने कहा कि आज से इसे जितना पीटना हो पढ़ाने के लिए पीटियेगा ये कुछ नहीं कहेगा । खाल तुम्हारी हड्डी हमारी , जितनी सख़्ती ज़रूरी हो पढ़ाने के लिये वो आजमाइयेगा। उस दिन के बाद भैया का चुलबुलापन तो बरक़रार रहा किन्तु वो पढ़ाई में भी मन एकाग्र करने लगे।

4 comments:

  1. डा० साहब! बिल्कुल ठीक निर्णय लिया। पत्थर को पारस बनाने के लिए भी घिसना पड़ता है।

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    1. धन्यवाद सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिये

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  2. क्या जरूरत थी मेंहदी को होशियारी दिखाने की, भैया की वाट लगवा दी।

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  3. मेहंदी इतनी मासूम है वो नही सोचती कि क्रिया की क्या प्रतिक्रिया होगी

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