Tuesday, 27 February 2018

पिता - सुरक्षा कवच (११)

   " पिता-सुरक्षा कवच"
   डॉ साहब मिलनसार तथा व्यवहारिक हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति थे अतः उनका मित्रता का दायरा भी विस्तृत था,हालाँकि रोगियों से फुर्सत कम ही मिलती थी फिर भी व्यवसायिक तथा व्यक्तिगत जीवन में संतुलन बनाए रखते थे।उनके घर आने जाने वाले मित्र 4 बरस की मेहंदी को भी ख़ूब लाड़ किया करते थे।ऐसे ही एक डॉ मित्र ने एक बार मेहंदी के पेट पर बर्थमार्क छूकर एक ऐसी अप्रत्याशित बात कही जो मेहंदी को बड़ी अटपटी लगी उसने पापा को बताई ।पापा ने ध्यानपूर्वक सुना और उसके बाद वो अंकल कभी घर नहीं आये, क्यों नही आये ये जानने की आवश्यकता मेहंदी को कभी अनुभव नही हुई वो तो खुश थी कि अटपटे अंकल अब नहीं आते हैं।साथ ही पापा पर दृढ़ विश्वास कायम हो गया कि उसके पापा उसकी हर परिस्थिति में रक्षा करने की क्षमता रखते हैं, उस दिन से मेहंदी की हर छोटी बड़ी समस्या को पापा की अदालत में ही पेश किया जाने लगा और मेहंदी को उनके फैसले से कभी निराश नहीं होना पड़ा।इतनी छोटी आयु में ही उसे समझ आ गया कि पापा ही उसका सुरक्षा कवच हैं।उसके पापा ही उसके मित्र भी थे जिन्हें वो निसंकोच सब बता देती थी।
टिप्पणी: हर पिता को ऐसा ही होना चाहिये बच्चों की बातों को उपेक्षित ना कर पूरे ध्यान से सुन समाधान करना चाहिये, पिता या माता बच्चों से दोस्ताना व्यवहार करेंगें तो बच्चे गलत संगत में जाने से बच सकते हैं विशेषकर एकल परिवारों में .....



No comments:

Post a Comment