Saturday, 27 January 2018

डॉक्टर व डाकू (५)

डॉक्टर व डाकू
मेहंदी जब शिशुवस्था में ही थी उसके पिता की नियुक्ति ऐसे क्षेत्र में हो गयी जहाँ उस समय डाकुओं का वर्चस्व था।सर्दियों की एक गहन रात्रि को द्वार पर दस्तक हुई
माँ तो तीन बच्चों के लालनपालन में थकी गहन निद्रामग्न थीं,डॉक्टर साहब ने द्वार खोला तो डाकू खड़े थे।व्याकुल होते हुए डॉ साहब ने पूछा क्या काम है
उन्होंनें कहा अपने औजार उठा और हमारे संग चल ।चमचमाते रामपुरी के फल को देख प्रतिरोध करना मूर्खता थी और वो हमेशा मानते थे हमारा कार्य रोगी को ठीक करना हो भले ही वो कोई भी हो।
     आँखों पर पट्टी बांध अपने अड्डे पर ले गए उनके एक साथी को गोली लगी थी। डॉ साहब ने सावधानीपूर्वक गोली निकाल दी।डाकू प्रसन्न होकर एक नोटों से भरी सन्दूकची ले आये तथा बोले जितने मर्जी हो ले लो।डॉ साहब ने नानुकर करी तो एक बड़ी घनी मुछों वाला (जो शायद उनका सरदार था) बोला अपनी खुशी से दे रहे है संकोच मत करो।डॉ साहब ने सोचा यदि अधिक नोट उठाये तो इन्हें लगेगा मैं लालच में आ गया और कम उठाये तो भी चिढ़ सकते हैं ,पशोपेश में डॉ साहब ने एक मुट्ठी नोट भर जेब में धर लिए।
       आँखों पर पुनः पट्टी बांध वापसी हो गयी।सुबह जागने पर पत्नी से किस्सागोई की तो वो कांप गयी।कहने लगीं मुझे क्यों नही जगाया। तब उन्होंने हंस कर कहा तुम रात भर चिंतित रहतीं इसलिये.....रात के लाये रूपये पत्नी को सौप दिए,जब गिने तब वो लगभग एक महीने के वेतन के बराबर थे।डॉ साहब ने परिहास किया वाह ऐसे मरीज मिलते रहें।
     पत्नी ने उनके मुँह पर ऊँगली रख दी और कहा मुझे आपकी सलामती से अधिक कुछ नहीं चाहिये प्रभु ना करे आप पर कभी भी कोई विपदा आये।
    ये किस्सा फिर तो परिजनों को बताने हेतु रोमांचक वार्तालाप बन गया।मेहंदी ने बड़े हो जब ये किस्सा सुना तो अपने पापा से पूछा आप क्यों गये आपको नहीं जाना चाहिए था।तब उसे गोदी में ले बड़े प्यार से डॉ साहब ने समझाया कि हम पढ़ाई पूरी करके शपथ लेते हैं कि इलाज करने में कोई भेदभाव नहीं करेंगें।मरीज तो मरीज होता है और हमारे पास बेहद आस लेकर आता है ।हमें अपना काम करना चाहिए और उन्हें न्याय प्रक्रिया के तहत दण्ड मिलेगा ।

1 comment:

  1. इसलिए, डाक्टर को भगवान मानते हैं।

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