रैबीज की विभीषिका(२०)
मेहंदी एक दिन विद्यालय से आयी तो मम्मी की आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे,पापा बहुत तसल्ली से कह रहे थे शशि हिम्मत रखो तैयार हो जाओ।मम्मी ने हरी काइया साड़ी पहनी जिस पर सफेद फूलों की कढ़ाई थी ये साड़ी मेहंदी को बहुत पसंद थी लेकिन इस के साथ मम्मी का रोता मुखड़ा बिलकुल सही नहीं लग रहा था।पहली बार मेहंदी ने मम्मी को रोते हुये देखा था,बड़ा विचित्र लग रहा था अपनी हंसमुख मम्मी को रोते हुये देखना।मम्मी पापा ने सभी बच्चों को भी तैयार कर दिया,मेहंदी की समझ में ही नहीं आ रहा कि रोते हुए कहाँ जाने का कार्यक्रम है।बड़े भैया ने उसे बताया कक्कू मामा नहीं रहे। नहीं रहे अर्थात? मर गये- कैसे? कुत्ते के काटने से, कुत्ते के काटने से भी कोई मरता है क्या भला? कई सवालों के ज़बाब तो वक्त के प्रवाह संग बाद में मिले।कक्कू मामा पालतू गाय के लिये चारे पानी की व्यवस्था कर रहे थे तभी एक सड़क के कुत्ते ने आकर उन्हें काट लिया नानी ने डॉ को बुलाया, उन्होंने 14 एन्टी रैबीज इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी।नानी कक्कू मामा को अपने साथ ले जाकर इंजेक्शन लगवाने लगीं। वो इंजेक्शन बेहद दर्दनाक होते हैं,एक या दो इंजेक्शन के बाद मामा ने कह दिया कि वो खुद जाकर इंजेक्शन लगवा लिया करेंगें नानी को परेशान होने की जरूरत नहीं है।उन्होंने इंजेक्शन का कॉर्स पूरा नहीं किया, इससे रैबीज वायरस उनके शरीर में पनपते रहे।उनके कॉलेज का टूर आगरा गया वहां रस्ते में यमुना नदी के अथाह जल को देख उन्हें दौरा पड़ गया( रैबीज में जल देख कर फिट पड़ते हैं) उनकी बुरी हालत हो गयी जीभ बाहर लटकने लगी, प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना था कि उनकी शक्ल भी कुत्ते जैसी लगने लगी थी। आनन फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया वहाँ डॉ ने उन्हें एक इंजेक्शन दिया उसके बाद वो चिरनिद्रा में लीन हो गये। कक्कू मामा सभी मामाओं में से बच्चों को बहुत प्यार करते,अपनी बाइक पर घुमाते ,77 (कोला) पिलाते तथा अन्य कई मनोरंजन करते। उनके जाने का ख़ालीपन बहुत समय तक सबको सालता रहा, शायद बहुत समय से भी अधिक किन्तु वक़्त के गुजरने के साथ हम दुःखद स्मृतियों का जिक्र करना बंद कर देते हैं तथा उस दुःख के साथ जीना सीख जाते हैं।
मेहंदी एक दिन विद्यालय से आयी तो मम्मी की आँखों से झर झर आँसू बह रहे थे,पापा बहुत तसल्ली से कह रहे थे शशि हिम्मत रखो तैयार हो जाओ।मम्मी ने हरी काइया साड़ी पहनी जिस पर सफेद फूलों की कढ़ाई थी ये साड़ी मेहंदी को बहुत पसंद थी लेकिन इस के साथ मम्मी का रोता मुखड़ा बिलकुल सही नहीं लग रहा था।पहली बार मेहंदी ने मम्मी को रोते हुये देखा था,बड़ा विचित्र लग रहा था अपनी हंसमुख मम्मी को रोते हुये देखना।मम्मी पापा ने सभी बच्चों को भी तैयार कर दिया,मेहंदी की समझ में ही नहीं आ रहा कि रोते हुए कहाँ जाने का कार्यक्रम है।बड़े भैया ने उसे बताया कक्कू मामा नहीं रहे। नहीं रहे अर्थात? मर गये- कैसे? कुत्ते के काटने से, कुत्ते के काटने से भी कोई मरता है क्या भला? कई सवालों के ज़बाब तो वक्त के प्रवाह संग बाद में मिले।कक्कू मामा पालतू गाय के लिये चारे पानी की व्यवस्था कर रहे थे तभी एक सड़क के कुत्ते ने आकर उन्हें काट लिया नानी ने डॉ को बुलाया, उन्होंने 14 एन्टी रैबीज इंजेक्शन लगवाने की सलाह दी।नानी कक्कू मामा को अपने साथ ले जाकर इंजेक्शन लगवाने लगीं। वो इंजेक्शन बेहद दर्दनाक होते हैं,एक या दो इंजेक्शन के बाद मामा ने कह दिया कि वो खुद जाकर इंजेक्शन लगवा लिया करेंगें नानी को परेशान होने की जरूरत नहीं है।उन्होंने इंजेक्शन का कॉर्स पूरा नहीं किया, इससे रैबीज वायरस उनके शरीर में पनपते रहे।उनके कॉलेज का टूर आगरा गया वहां रस्ते में यमुना नदी के अथाह जल को देख उन्हें दौरा पड़ गया( रैबीज में जल देख कर फिट पड़ते हैं) उनकी बुरी हालत हो गयी जीभ बाहर लटकने लगी, प्रत्यक्ष दर्शियों का कहना था कि उनकी शक्ल भी कुत्ते जैसी लगने लगी थी। आनन फानन में उन्हें अस्पताल ले जाया गया वहाँ डॉ ने उन्हें एक इंजेक्शन दिया उसके बाद वो चिरनिद्रा में लीन हो गये। कक्कू मामा सभी मामाओं में से बच्चों को बहुत प्यार करते,अपनी बाइक पर घुमाते ,77 (कोला) पिलाते तथा अन्य कई मनोरंजन करते। उनके जाने का ख़ालीपन बहुत समय तक सबको सालता रहा, शायद बहुत समय से भी अधिक किन्तु वक़्त के गुजरने के साथ हम दुःखद स्मृतियों का जिक्र करना बंद कर देते हैं तथा उस दुःख के साथ जीना सीख जाते हैं।
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