Monday, 19 March 2018

बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)

           बुद्धधु बक्से से लगाव (१५)
    घर में आते ही सबका चहेता बन गया बुद्धधु बक्सा।मेहंदी तो संध्या समय जब कार्यक्रम आते तभी विद्यालय से मिला गृहकार्य करती।लिखते लिखते टीवी के बिलकुल पास पहुँच जाती तब डॉ साहब को समाचार देखने में व्यवधान होता और वो चुटकी लेते अरे बेटी ज़रा दूर से टीवी देखो वरना प्रतिमा पुरी टीवी में खींच लेगी।मेहंदी वाकई में डर जाती उसे लगता पापा कह रहे हैं तो सच ही होगा।मेहंदी को प्रतिमा पुरी कोई मदन पुरी नामक फ़िल्मी खलनायक की बहन ही लगती थी बाद में तो अमरीश पुरी का पर्दापण भी फिल्मों में हो गया पहले हो गया होता तो दोनों की ही बहन लगतीं। फिर तो नये नये टीवी एंकर व समाचार वाचकों को मेहंदी पहचानने लगी और वो सब रोज के जीवन का एक हिस्सा ही बन गये।रोज रात का खाना टीवी के सामने ही होता, चित्रहार या फिल्म तो सप्ताह में एक ही बार आते थे रोज के समाचार तथा कृषिदर्शन भी देख लिए जाते थे।शायद वो कार्यक्रम देखने से अधिक चलती व बोलती तस्वीरों की दीवानगी होती थी।कवि सम्मेलन या क्रिकेट मैच देखने का शौक भी पापा के साथ साथ मेहंदी को भी हो गया।लेकिन पढ़ाई में कोई कोताही नहीं होती थी,कभी भी अधूरे या गलत काम के लिए अध्यापिका से मेहंदी डाँट नहीं पड़ी।कुल मिला कर बुद्धधु बक्से के साथ रह कर डॉ साहब के बच्चे बुद्धधु नहीं बन रहे थे।

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