बुद्धधु बक्से का आगमन(१४)
एक छोटे से बक्से से आती आवाज रेडियो में तो सुनते ही थे किंतु एक छोटे से बक्से में चलते फिरते चित्र, गाने और फिल्में देखने की दीवानगी ही कुछ और होती थी।बड़े बच्चों सभी को भाता था ये बक्सा,चित्रहार की दीवानगी तो चरम पर होती ही थी पर रविवार को प्रसारित होने वाली फ़ीचर फिल्म की दीवानगी का आलम तो निराला ही होता था।उस समय मोहल्ले क्या शहर में ही कुछ प्रतिष्ठित लोगों के यहाँ ही टीवी सेट होता था।ऐसे में टीवी वाले परिवार में रविवार शाम बच्चों का जमघट लग जाया करता था।मेहंदी और उसके भाई भी सामने रहने वाले डॉ परिवार के यहाँ रविवार को फिल्म देखने पहुंच गए,उन्हें आदर पूर्वक सोफे पर बैठा दिया गया।सारे परिवार के लोग व उनके परिचित भी चाव से चलचित्र देखने लगे।उनके घर का पूरा जीना बच्चों से भर गया।किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर आवाज सुन कर ही खुश थे।कोई गम्भीर मूवी आ रही थी जिसमें संवाद कम थे,अपेक्षित आनंद ना आने पर जीने में भरे बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया जिससे सब झल्ला उठे।डॉ साहब ने सबसे शांत रहने को कहा किन्तु शोर में कोई कमी नहीं आयी जब डॉ साहब का धैर्य जबाब दे गया तो वो हंटर उठा लाये व हवा में उसे फटकारने लगे।जीने से सब नदारद हो गये ।मेहंदी के बालमन को लगा कहीं उसके साथ भी ऐसा व्यवहार ना हो वो उठ कर घर आ गयी।पापा ने फ़िल्म खत्म होने से पहले आने का कारण पूछा तो उसने सब बयां कर दिया,पापा उसके भोलेपन पर हँस पड़े।तब तक दोनों भाई भी फिल्म देख कर आ गए और मेहंदी को चिढ़ाने लगे कि हम तो पूरी फिल्म देख कर आये तू क्यों आ गयी।डॉ साहब ने अगले दिन ही बुद्धधु बक्सा क्रय कर लिया कि मेरी लाडली अपने घर पर ही टीवी देखेगी, पूरी रिश्तेदारी में शायद उन्हीं के घर सबसे पहले टीवी आया था।
एक छोटे से बक्से से आती आवाज रेडियो में तो सुनते ही थे किंतु एक छोटे से बक्से में चलते फिरते चित्र, गाने और फिल्में देखने की दीवानगी ही कुछ और होती थी।बड़े बच्चों सभी को भाता था ये बक्सा,चित्रहार की दीवानगी तो चरम पर होती ही थी पर रविवार को प्रसारित होने वाली फ़ीचर फिल्म की दीवानगी का आलम तो निराला ही होता था।उस समय मोहल्ले क्या शहर में ही कुछ प्रतिष्ठित लोगों के यहाँ ही टीवी सेट होता था।ऐसे में टीवी वाले परिवार में रविवार शाम बच्चों का जमघट लग जाया करता था।मेहंदी और उसके भाई भी सामने रहने वाले डॉ परिवार के यहाँ रविवार को फिल्म देखने पहुंच गए,उन्हें आदर पूर्वक सोफे पर बैठा दिया गया।सारे परिवार के लोग व उनके परिचित भी चाव से चलचित्र देखने लगे।उनके घर का पूरा जीना बच्चों से भर गया।किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था पर आवाज सुन कर ही खुश थे।कोई गम्भीर मूवी आ रही थी जिसमें संवाद कम थे,अपेक्षित आनंद ना आने पर जीने में भरे बच्चों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया जिससे सब झल्ला उठे।डॉ साहब ने सबसे शांत रहने को कहा किन्तु शोर में कोई कमी नहीं आयी जब डॉ साहब का धैर्य जबाब दे गया तो वो हंटर उठा लाये व हवा में उसे फटकारने लगे।जीने से सब नदारद हो गये ।मेहंदी के बालमन को लगा कहीं उसके साथ भी ऐसा व्यवहार ना हो वो उठ कर घर आ गयी।पापा ने फ़िल्म खत्म होने से पहले आने का कारण पूछा तो उसने सब बयां कर दिया,पापा उसके भोलेपन पर हँस पड़े।तब तक दोनों भाई भी फिल्म देख कर आ गए और मेहंदी को चिढ़ाने लगे कि हम तो पूरी फिल्म देख कर आये तू क्यों आ गयी।डॉ साहब ने अगले दिन ही बुद्धधु बक्सा क्रय कर लिया कि मेरी लाडली अपने घर पर ही टीवी देखेगी, पूरी रिश्तेदारी में शायद उन्हीं के घर सबसे पहले टीवी आया था।
No comments:
Post a Comment