Sunday, 19 February 2017

सच्ची होली

होली के रंग नहीं रंगते मुझे
जबसे रंगी हूँ तुम्हारे प्यार में

रंगीन पानी नहीं भिगोते मुझे
जबसे भीगी हूँ तुम्हारे साथ में

भंग का खुमार नहीं छाता मुझे
जबसे मदमस्त हूँ तुम्हारी बातों में

टेसू की सुगन्ध नहीं महकाती मुझे
जबसे सुवासित हुई तुम्हारे ख्वाबों में

वर्ष की एक बार की खुशियाँ नहीं भाती मुझे
जबसे हर पल चहकती हूँ तुम्हारी वफा में

किसी रंग की चाहत ही ना रही अब मुझे
जबसे रंगा है तुमने एक चुटकी सिंदूर में

अब वही पल लगेगा सच्ची होली मुझे
जब पुनः भरोगे मेरी माँग जग से विदा में

                                     मीनाक्षी मेहंदी

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