वसंत-पंचमी की शुभकामनाएँ!
वसन्त-पंचमी के दिन कामदेव, रति और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती-पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानतारूपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करना है।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का दिन ऋतुराज वसन्त के आगमन का प्रथम दिवस माना गया है। शुक्ल पक्ष का पाँचवा दिन अंग्रेजी-कलेण्डर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू-तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है। वसन्त को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। इस ऋतु में मौसम मादकता से परिपूर्ण रहता है। बाग-बगीचों में विविध रंगों के महकते एवं खिलते पुष्प, इन पुष्पों पर इठलाती रंग-बिरंगी तितलियाँ, गुनगुनाते भौंरे तथा पक्षियों का कलरव इन सभी का सामंजस्य वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा बना देने में अग्रणी है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने स्वयं को वसन्त माना है। वसन्त का तात्पर्य है हर्षोल्लास से परिपूर्ण होना। कहा जाता है इस ऋतु में श्रीकृष्ण स्वयं भूलोक पर आते हैं। व्रजक्षेत्र में वसन्त ऋतु के समय राधा-गोविन्द-उत्सव पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
अचूक हैं कामदेव के बाण : ऋतुराज वसन्त कामदेव के सखा (मित्र) है। वसन्तराज ने ही कामदेव के धनुष का निर्माण किया है , इसीलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर रहित है। अर्थात कामदेव जब अपने धनुष से बाण चलाते है तो बाण के धनुष से छूटने की ध्वनि नहीं होती है। कामदेव के अन्य नाम `अनंग` और `मार` भी है। `अनंग` का अर्थ होता है बिना शरीर धारण किये हुए। भगवन शिव द्वारा भस्म किये जाने के बाद द्वापर में इन्हें पुन: शरीर प्राप्त हुआ, तब तक ये बिना शरीर के ही रहे थे। इसी कारण इन्हें `अनंग` नाम मिला। `मार` अर्थात ये इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसन्त ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।
वसन्त-पंचमी प्राकृतिक सौन्दर्य, शृंगार, प्रेम और नवसृजन का ऐसा अनोखा पर्व है, जो मनुष्यों में ही नहीं , बल्कि संसार के समस्त प्राणियों और वनस्पतियों में अद्भुत सुन्दरता एवं उन्माद का संचार करता है। शुभकामनाएँ!
वसन्त-पंचमी के दिन कामदेव, रति और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाना है, जबकि सरस्वती-पूजन का उद्देश्य जीवन में अज्ञानतारूपी अन्धकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करना है।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि का दिन ऋतुराज वसन्त के आगमन का प्रथम दिवस माना गया है। शुक्ल पक्ष का पाँचवा दिन अंग्रेजी-कलेण्डर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू-तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है। वसन्त को ऋतुओं का राजा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। इस ऋतु में मौसम मादकता से परिपूर्ण रहता है। बाग-बगीचों में विविध रंगों के महकते एवं खिलते पुष्प, इन पुष्पों पर इठलाती रंग-बिरंगी तितलियाँ, गुनगुनाते भौंरे तथा पक्षियों का कलरव इन सभी का सामंजस्य वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा बना देने में अग्रणी है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने स्वयं को वसन्त माना है। वसन्त का तात्पर्य है हर्षोल्लास से परिपूर्ण होना। कहा जाता है इस ऋतु में श्रीकृष्ण स्वयं भूलोक पर आते हैं। व्रजक्षेत्र में वसन्त ऋतु के समय राधा-गोविन्द-उत्सव पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है।
अचूक हैं कामदेव के बाण : ऋतुराज वसन्त कामदेव के सखा (मित्र) है। वसन्तराज ने ही कामदेव के धनुष का निर्माण किया है , इसीलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है। इस धनुष की कमान स्वर रहित है। अर्थात कामदेव जब अपने धनुष से बाण चलाते है तो बाण के धनुष से छूटने की ध्वनि नहीं होती है। कामदेव के अन्य नाम `अनंग` और `मार` भी है। `अनंग` का अर्थ होता है बिना शरीर धारण किये हुए। भगवन शिव द्वारा भस्म किये जाने के बाद द्वापर में इन्हें पुन: शरीर प्राप्त हुआ, तब तक ये बिना शरीर के ही रहे थे। इसी कारण इन्हें `अनंग` नाम मिला। `मार` अर्थात ये इतने मारक हैं कि इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। वसन्त ऋतु को प्रेम की ही ऋतु माना जाता रहा है। इसमें फूलों के बाणों से आहत हृदय प्रेम से सराबोर हो जाता है।
वसन्त-पंचमी प्राकृतिक सौन्दर्य, शृंगार, प्रेम और नवसृजन का ऐसा अनोखा पर्व है, जो मनुष्यों में ही नहीं , बल्कि संसार के समस्त प्राणियों और वनस्पतियों में अद्भुत सुन्दरता एवं उन्माद का संचार करता है। शुभकामनाएँ!
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