Tuesday, 14 February 2017

प्यार तो प्यार ही होता है

                      प्यार तो प्यार ही होता है
प्रेम अंतरबोध से उत्पन्न निर्मल,कोमल भावना है जो निस्सीम,निश्छल और निष्कपट है।
   प्रेम स्वभावभेद,उम्रभेद,रूचि और विचारों की भिन्नता जैसी सारी दीवारों को तोड़ कर बहने वाला एक महाप्रवाह है।यह व्यवस्था,समर्पण,सहनशीलता का निर्गमन नहीं अपितु स्वतः स्फूर्ति से नदी जैसा उछलता कल कल निनाद करता दोनों तटों को स्पर्श करता,उफनता संगीत है।
    प्रेम एक दिप्तीपुंज है जिसकी आभा का विस्तार आकाश है तो धरातल पृथ्वी,प्रेम संगीत के सुर के समान सहज ह्रदय की गहराइयों से पैदा होता है।
    नाम और सम्बन्ध से परे उस उजले चेहरे के समान है जो हमेशा हँसता रहता है।
     प्रेम को कितने भी शब्दों और कल्पनाओं से आच्छादित करने का प्रयत्न किया जाये यह पूर्ण नहीं हो पाता है,जो इसके अहसास की स्निग्ध छाया का रसपान करता है वही इसकी विशालता को समझ सकता है।
    शिशु से किशोर,वयस्क और वृद्ध होने की इस विकास -क्रिया के साथ साथ प्रेम के स्वरूप उसकी परिभाषाएँ उसको प्रकट करने की अनुभव करने की प्रक्रिया भी परिवर्तित होती रहती है।
      कभी वो तिमिर को हर जग को उदभासित करने वाली रश्मि सा स्फूर्तिदायक बन जाता है,कभी मध्याह्न की तप्त कर देने वाली ऊष्णता बन जाता है,तो कभी ढलते सूरज की अंतिम किरण सा शांत और स्निग्ध......


टिप्पणी-  " कुछ भी हो किन्तु प्यार तो प्यार ही होता है"

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