होली के रंग नहीं रंगते मुझे
जबसे रंगी हूँ तुम्हारे प्यार में
रंगीन पानी नहीं भिगोते मुझे
जबसे भीगी हूँ तुम्हारे साथ में
भंग का खुमार नहीं छाता मुझे
जबसे मदमस्त हूँ तुम्हारी बातों में
टेसू की सुगन्ध नहीं महकाती मुझे
जबसे सुवासित हुई तुम्हारे ख्वाबों में
वर्ष की एक बार की खुशियाँ नहीं भाती मुझे
जबसे हर पल चहकती हूँ तुम्हारी वफा में
किसी रंग की चाहत ही ना रही अब मुझे
जबसे रंगा है तुमने एक चुटकी सिंदूर में
अब वही पल लगेगा सच्ची होली मुझे
जब पुनः भरोगे मेरी माँग जग से विदा में
मीनाक्षी मेहंदी
जबसे रंगी हूँ तुम्हारे प्यार में
रंगीन पानी नहीं भिगोते मुझे
जबसे भीगी हूँ तुम्हारे साथ में
भंग का खुमार नहीं छाता मुझे
जबसे मदमस्त हूँ तुम्हारी बातों में
टेसू की सुगन्ध नहीं महकाती मुझे
जबसे सुवासित हुई तुम्हारे ख्वाबों में
वर्ष की एक बार की खुशियाँ नहीं भाती मुझे
जबसे हर पल चहकती हूँ तुम्हारी वफा में
किसी रंग की चाहत ही ना रही अब मुझे
जबसे रंगा है तुमने एक चुटकी सिंदूर में
अब वही पल लगेगा सच्ची होली मुझे
जब पुनः भरोगे मेरी माँग जग से विदा में
मीनाक्षी मेहंदी
अति सुन्दर रचना।
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