इधर उधर टहलते श्रीमान ,कदमों में ना लगती जान
घूंट भर चाय मुख में भरी ,सुबह है बिलकुल ऊब भरी
आज डपटेंगे हॉकर को,शीघ्र लाया करे अख़बार को
भीतर भीतर खीज रही हैं,श्रीमतीजी चीख रही हैं
बच्चे ये शैतान बड़े हैं,कपड़े और बर्तन ढेर पड़े हैं
शायद अब भी आ जाये ,वरना ढूंढेंगी दूसरी बाई
संगी साथियों साथ उछलता,उसकी चाल में है चपलता
वो विद्यालय जा रहा है ,अति प्रसन्न नज़र आ रहा है
जानता,आज समाप्त परीक्षा,कल से मनभावन छुट्टियां
आहट पर खिड़की से झाँका,कभी द्वार पर आकर ताका
ह्रदय है उद्देलित बड़ा,गणना की हिसाब लगाया
कितने दिवस व्यतीत हुए हैं,प्रियतम का पत्र नहीं आया
सड़क पर छुपा हुआ है,एक इमारत को घूर रहा है
अल्प समय की बात है,अभी होती काली रात है
मौका ताड़ कर अच्छा सा,कार्य आरंभ होगा चोर का
चतुर कुशल एक दुकानदार,कर्म है उसका व्यापार
गर्मी,सर्दी या बरसात,जोटता रहता है हरदम बाट
होती रहे सदा ही बिक्री,आते रहें सदा ही ग्राहक
चिंतामग्न है वो किसान,सही समय पर वर्षा होगी?
सही मात्रा में धूप मिलेगा,सरकार ऋण माफ़ करेगी?
लहरायेंगे मेरे खेत खलिहान?मिलेगी खूब फ़सल महान?
मंदिर जा करता है भक्ति,प्रसन्न हो हे दिव्यशक्ति
मिले मायाजाल से मुक्ति,निकले कुछ ऐसी युक्ति
प्रकट हों प्रभु दे दें ज्ञान,भक्त की इच्छा बस भगवान
असफल रहा गर ये जोड़ तोड़,दूंगा मैं ये दल छोड़
सफलता से होगा गठजोड़,नेता हूँ लोकतान्त्रिक देश का
ना मिली कुर्सी उम्मीद करूँगा,होंगें मध्यावधि चुनाव
लम्बी बेहद है सूची ये,छाई समस्त जगत में ये
जीवन के हर मोड़ पर,प्रातः,दोपहर,संध्या व रात्रि तक
प्रत्येक को प्रतीक्षा रहती,ये अविराम अनवरत चलती।
मीनाक्षी मेहंदी
टिप्पणी: ये उस दौर की रचना है जब तकनीक ने हमारे जीवन में बहुत अधिक घुसपैठ नहीं की थी विशेषकर स्मार्ट फ़ोन तकनीक ने....
No comments:
Post a Comment